Sunday, 16 September 2018

विवशता..

विवशता...

ऐ दिल ऐ नादान
चल आ तुझे आज
दुनियाँ दिखा दूं..

बगैर रोटी के
खाली थाली
एक चम्मच दिखा दूं..
चल आ तुझे एक
नई दुनियाँ दिखा दूं..

सजे बाजार में
बिकतें हैं सबकुछ
सिमटे कोने में
एक रुपसी दिखा दूं..

यहाँ झाँकता है
हर एक मंजर
लिए हाथ अपने
खिलौना ऐ खंजर
नहीं वक्त इतना
देखे खुद का बवंडर

ऐ दिल ऐ नादान
कुछ और दिखा दूं..
भूखे जमीनों पे
समंदर दिखा दूं..

मचता है शोर इतना
वो कमजोर जितना
नहीं जानता है कि
भागे कहाँ से
निकल के अपने
आईने से
है कैद जितना
है कद का जितना
एक ओझल धुंआ सा..

बस इतना ही अपना
सूरज चंदा है जितना
पहाड़ी के पीछे।

www.vipraprayag.blogspot.in

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