Thursday, 13 September 2018

मैं ही अनादि.. मैं ही अनंत हूँ..


मैं ही अनादि.. मैं ही अनंत हूँ..
स्तंभित मनन में, सत्यम चिरंत हूँ..
मैं ही अनादि.. मैं ही अनंत हूँ..।
चैतन्य मुख से.. विकल विह्वल व्यग्र हूँ..
भ्रातृ सुख से.. सकल अग्र हूँ..
कर्म पथ जो दिखता दिश उषा सहदेव संग हूँ..
मैं ही अनादि.. मैं ही अनंत हूँ।
कर्तव्य पथ पे सुजा को सजाता..
नगर नाथ मेरा.. ही मुझको हँसाता..
वृहत आंगन सा हृदयशील मेरा..
कुटूम्बों में बसता.. मन का दीपक जलाता..
मैं चिर अनादि.. मैं ही अनंत हूँ..
स्तंभित मनन में.. सत्यम चिरंत हूँ।
पिता उपेन्द्र सदृश नवीन विपिन की छाया..
उठता गिरता संभलता सिखता मेरा दर्शन..
रहा सदा अतुलित..
माँ सुचारु ममता से मेरा आकर्षण..
प्रथम हाथ से जो कुछ भी मिलता..
बाँट खाता अप्रतिम अंग..
अनुज बासुकी संग छाया.. गोपाल संग दिपाली..
अनुजा मंजु संग नृपेन्द्र, अन्नपूर्णा संग गोपाल, सुन्नो, माया संग मधुकर..
सबका सदा रहा ये जीवन..
सकल मुख पुलकीत पार्श्व मेरा अर्पण..
भाव कुशल संगिनी पार्वती ही मेरा दर्पण..
मैं सदाशिव..
मैं ही अनादि.. मैं ही अनंत हूँ..
स्तंभित मनन में.. सत्यम चिरंत हूँ।
चलता हूँ दिव्य दृष्टि से अपने..
बाँधता हूँ सबके मचलते सपने..
नहीं छोड़ता हूँ अपने भू के प्रण को..
प्रतिज्ञा पे प्राण न्योछावर सदा है..
अनादि हूँ.. वक्त का आदि नहीं हूँ..
स्तंभित मनन में.. सत्यम चिरंत हूँ।
खिलते हैं बागों में फूलों के जैसा..
पुरस्कृत मन प्रथम विदुषी नीलम को जो पाया..
कविता भी आई.. कुछ नीना गुनगुनायी..
नन्हीं गुड़िया मुस्कुराई..
हाथ पकड़ जो नई दुनियाँ दिखाई..
फिर से जीता गया मैं..
एक दिन करनी जो डोली भर विदाई..
संग दिलीप अशोक आशीष व राजीव..
आँखों में भर कर सबको जीता गया मैं..
खुशी के दो आँसू को रोता गया मैं..
गिरते आँसू से पूछो मैं कहाँ हूँ..
मैं हूँ यहीं सबके आँखों में देखो..
स्तंभित मनन में.. सत्यम चिरंत हूँ..
मैं हूँ अनादि.. सर्वांगीत अनंत हूँ।
स्पष्ट वीणा वंदना की गूंजीत..
अदिती रुपा रंजना हुँ मैं..
माथे रवि के चमकता तेज पढ लो..
नित्य रुकता ना ठहरा तु मन का मुसाफिर..
जीतना ही निस्तेज तुम मुझको कर दो..
अमर महेश सच्चिदानंद तरुण गुलाब बन..
लगाता अभिषेक लगता गले सबके घर आंगन..
सिद्धार्थ बन कस्बों पुरों में..
माँ दुर्गा जो जाती सभों को जगाकर..
गोत्र निष्ठा संस्कारों का ढांढस बढाकर..
मैं हूँ यहीं देखो अपने अंदर..
जलता हुआ एक दीपक..
मधुर संवादों में प्रभाष, रविदास, रचित और हिरक..
मैं ही अनादि.. मैं ही अनंत हूँ..
स्तंभित मनन में.. सत्यम चिरंत हूँ।
आज ममतामयी माँ के गोद फिर लौटता हूँ..
सूचित सुचारु से फिर पूछता हूँ..
फिर से वो पालना बिन के रखना..
एक बार फिर से खिलखिलाना चाहता हूँ..
ममता की लोरी सुनना फिर चाहता हूँ..
सती, सुशीला, शंकरी..
सुलोचना, सुधा, सुषमा, सरला, सेवा..
माँ सी से वात्सल्य आश्रय चाहता हूँ..
जगत प्रेम प्रकाश में पुनर्जन्म चाहता हूँ..
मिलूंगा रुधिर सुधीर रवि खुशी पासी रजनी व
नवीन विरेन नोरेन से फिर एक दिन..
तपन संजीव आशीष राजीव..
आनंद प्रवीण विवेक सब एक रहना..
मिलन व विरह दोनों को सहना..
मैं ही अनादि.. मैं ही अनंत हूँ..
स्तंभित मनन में.. सत्यम चिरंत हूँ।
मिलूंगा बचपने में फिर इस घर आंगन..
सजू सोनू मोनू लक्की सेंकी मून टीना बाबू मिठी
प्रिंस दिशू गुनगुन हर्ष कृष्णा चिंटु रिया नायसा त्रिना संग
 फिर से खेला करुंगा..
आशीर्वाद देता हूँ पुत्रवधू प्रियंका सत्यम व स्मिता अभिषेक..
कूल मर्यादा की तुम लाज रखना..
मनोवृत संस्कारों में आत्मजा
बबली राजा संग मिलकर..
देहरी गुणों को और पारिस्कृत करना..
मैं ही अनादि.. मैं ही अनंत हूँ..
स्तंभित मनन में.. सत्यम चिरंत हूँ।
असीम संघर्षों में एक प्रस्फुटित जीवन हूँ..
मैं सबका अनादि.. अब..
अपने अनंत में हूँ।

Dedicated this poem to my grandmother's younger brother.

6 comments:

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    1. Thanks Kaku.. belongingness is the key.. with loads of blessings in it.. Regards

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    2. Thanks Kaku.. belongingness is the key.. with loads of blessings in it.. Regards

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  2. Marvellous expressions. Felt as if I am with maa and baba.

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  3. Tremendous beta,very nice composition,"jitna bhi padhun,har baar kuchh aur naya hi lagta hai",bahut achchhi feelings beta.👍👍👍👍

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