Monday, 5 November 2018

लौह-पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल.. एक टाईम लाईन समीक्षा..

बड़ी दीदी के स्कूल से आते ही.. नए स्टैंडर्ड के नए किताबों के साथ और उसमें जेनेरल नॉलेज या हिस्ट्री के किताबों से झाँकती सरदार वल्लभ भाई पटेल की तस्वीर.. लौह-पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल। अचरज भरे नजरों से देखता.. और बस देखता ही जाता। बिल्कुल साधारण एक आम व्यक्तित्व। ना कोई टोपी.. ना कोई सफेदकोट गुलाब.. ना हाथों में कोई लाठी या लेफ्टिनेंट ड्रेस। बिल्कुल ही आम.. साधारण धोती, कुर्ता और कंधे पे शॉल.. फिर ये लौह-पुरुष। लोहा कहीं दिखता नहीं.. तो क्या लोहा खाते थे.. शायद ये हो सकता है.. जो हम नहीं खा पाते। दादाजी तो रोज चावल के भूज्जे खाते हैं.. भूजा चना खाते हैं.. कहते हैं इससे दाँतें मजबूत रहती है.. हो ना हो ये लोहे की भूज्जे खाते हों.. हाँ इनकी दाँते भी चमक रही हैं और सर भी चमक रहा है.. हो ना हो ये लोहे की भूज्जे का ही कमाल है।

ये बात तकरीबन १९८३-८४ की थी.. मैं उस वक्त ६-७ सालों का था। फिर एक दिन खबर ये आई की भारत की प्राईम मिनिस्टर इंदिरा गाँधी को गोली मार दी गई है.. निर्मम हत्या.. दुखद निधन.. भारत की दुर्गा.. आईरन लेडी अब नहीं रही.. जबतक सूरज चाँद रहेगा.. इंदिरा तेरा नाम रहेगा.. सबलोग अगल बगल के घरों में जाकर लाईव टेलेकास्ट देख रहे थे.. इंदिरा गाँधी अमर रहें.. मेरे खुन का एक एक कतरा वाला डायलॉग.. इंदिरा गाँधी के पेपर कटिंग्स.. देश विदेशों में श्रद्धांजलि.. फ्रंटलाईन मैगजीन का वो पोस्टर साईज फोटो.. जिसे बाद में मढवाकर ड्राईंग रुम के दिवाल पे सजा दिया गया था.. सतवंत और बेअंत सिंह.. फिल्म शोले वाले गब्बर जैसे हिट थे। दादाजी श्रद्धांजलि हेतु कविता बनाकर सुना रहे थे.. प्रधानमंत्री कार्यालय उस कविता को भेजने की बात बता रहे थे.. देख मैने भी दीदी से पूछा "दीदी ये आयरन लेडी क्या होती है?" "जैसे सरदार वल्लभ भाई पटेल लौह पुरुष थे.. लोहे को इंग्लिश में आयरन कहते हैं।" "समझा.. वो जेन्ट्स थे ये लेडिज थी.. दोनो लोहे खाते थे।" "हाँ.. रे बुद्धु लोहे खाते थे.. चलो अब चुप हो जाओ"।

..चुप ही रहा ..कितने साल चुप रहा। चुप्पी साधे.. कभी कॉमिक्सों की दुनियां तो कभी पेंटिंग.. चित्रकारी। उस दौर के फेमस राजनेताओं में एक बार चन्दशेखर, रामकृष्ण हेगड़े, लालकृष्ण आडवाणी, वी.पी. सिंह आदि नेताओं की पेंसिल स्केच कार्टून भी खूब बनाया करता था। फिर हल्के फुल्के कुछ पेंटिंग प्रतियोगिता के मिलते सर्टिफिकेटों के साथ मैट्रिक पास करते ही.. पेंटिंग की धुन खो सी गई। लेकिन हाँ.. चित्र हमेशा ही रोचक लगते रहे.. और इस कारण पत्र-पत्रिकाओं की ओर रुझान भी बढने लगा। स्पोर्ट्स से रिलेटेड मैगजीन पहली पसंद रहते.. तो फिर इन पसंदों में भी इजाफा होता गया। १९९२ से स्पोर्ट्स स्टार मैगजीन की एक अच्छी खासी क्लेक्शन घर की आलमारी में सँजोयी रखी है। इस दौर में पसंदीदा सचिन तेंदुलकर के कवर पिक्चर वाले मैगजीन मैं खरीदना नहीं भूलता.. और फिर सचिन तेंदुलकर के स्टैट्स पे हिन्दू पब्लिकेशन की स्पोर्ट्स स्टार कवरेज व एडिटोरियल तो मानों शेक्सपीयर ही छा गए हो अपने इंग्लिशिया स्टाईल में। लिटरेचर.. चाहे वो हो इंग्लिश या हिन्दी.. मेरा काफी इम्प्रूव हुआ। फिर तो एक से एक नए मैगजीन.. इंडिया टूडे, आउट लुक, फ्रंट लाईन, स्पोर्ट्स टूडे, स्टार डस्ट, फिल्म फेयर आदि आदि भी इस फेहरिस्त में आते दिखे। नागपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के दिनों में भी.. ट्रेनों के कितने ही सफरों के साथ ये मैगजीन वाला सफर भी जारी रहा।

 ..और फिर एक दिन जो पता चला "सचिन तेंदुलकर" अमेरिकी टाईम मैगजीन के कवर पेज पे आ गए हैं ..लेकीन अफसोस वो मैगजीन जो मेरी पहुँच से बाहर था। ये बात १९९८-९९ की थी.. फिर एक लंबे अंतराल के बाद सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट को अलविदा कहा। मिडिया बाजार अब पत्र पत्रिकाओं से उठ टेलीविजन और मोबाईली सभ्यता में बस चुका था। देश भर की तमाम पत्र-पत्रिकाओं के हेडलाईंस.. कवर पेज.. एडिटोरियल्स.. टीवी इंटरनेटिया चैनल्स व ब्लॉग.. सचिन तेंदुलकर को अपना सलाम ठोकते रहे। सचिन तेंदुलकर का क्रिकेटिया कद तमाम चाहने वालों को "क्रिकेट का भगवान" सरीखे दिख रहा था। अलविदा सचिन.. अलविदा सचिन.. के नारे चारो ओर गुंज रहे थे.. क्रिकेटिया महारथ के इसी समापन पे एक अंतिम कड़ी जो जुड़नी बाकी थी। ..टाईम मैगजीन ने एक बार फिर "सचिन तेंदुलकर" को अपने कवर पेज पे जगह दी.. टाईटल था.. "गॉड अॉफ क्रिकेट"!!!

..सचिन तेंदुलकर के लिए टाईम मैगजीन का ये संबोधन मानों एक बंद होते करामाती संदूक पे गड़ते अंतिम कील के सामान था। संपूर्ण मिडिया जगत की ओर से सचिन तेंदुलकर को मिलने वाला.. वाकई ये एक काफी बड़ा सम्मान था.. जिसे वे और उनके चाहने वाले दिलोजान से अपने सिर का ताज बनाकर ताउम्र शुकुन से रह सकते हैं। अलविदा सचिन फिर मिलेंगे.. कह तो दिया.. लेकीन एक बार फिर टाईम मैगजीन के इस संस्करण से अपनी दुरी बार बार कुरेदती रही। ..इंटरनेट के इस दौर में कॉलेज आवर के बाद शाम के वक्त.. मैं घंटों एक साईबर कैफे में बैठा.. तमाम नए वेबकास्ट को देखा करता। ..कि एक दिन टाईम मैगजीन का टोटल अॉपरेशन करने वाला कीड़ा दिमाग पे बैठ गया ..जैसे मैं सबकुछ देखना चाहता था ..पढना चाहता था। इसके हिस्ट्री से लेकर आज तक के सारे पब्लिशिंग पहलू.. विशेष कर कवर पेज पब्लिशिंग स्ट्रैटेजिक इस्युज्।

टाइम मैगजीन एक साप्ताहिक समाचार पत्रिका है जिसका प्रकाशन अमेरिका के न्यू यॉर्क शहर में सन् १९२३ से होता आ रहा है। इसके साथ ही टाइम मैगजीन के विश्व भर में कई विभिन्न संस्करण भी प्रकाशित होते हैं। यूरोपीय संस्करण टाइम यूरोप.. जिसका पूर्व नाम टाइम अटलांटिक था; का प्रकाशन लंदन से होता है और यह मध्य पूर्व, अफ़्रीका और पूरे लैटिन अमेरिका को कवर करता है। इसका एशियाई संस्करण टाइम एशिया हाँग काँग से संचालित होता है और दक्षिण प्रशांत संस्करण सिडनी से संचालित है.. जिसमें ऑस्ट्रेलिया व न्यूज़ीलैंड सहित प्रशांत महासागर के द्वीप समूह कवर किए जाते हैं। साप्ताहिक समाचार पत्रिकाओं की श्रेणी में टाइम मैगजीन का संचलन विश्व में सर्वाधिक है। वर्ष २०१४ के अनुसार, इसका कुल संचलन ३,२८१,५५७ प्रतियों का है, जो इसे अमेरिका की सर्वाधिक संचलन वाली सभी पत्रिकाओं में दसवाँ, तथा साप्ताहिक पत्रिकाओं में दूसरा स्थान देती है।

अपने शुरुआती दौर में प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध के समय इसके कवर पेज पे प्रायत: अमेरिकी व यूरोपियन राजनायकों के साथ ब्रिटेन के राजघरानों से संबंधित राज सदस्य ही छाए रहे। टाईम मैगजीन का ये पावर पैक कवरेज धीरे धीरे अन्य वर्गो व देशों में एक प्रतिष्ठा का परिचायक बन गया।

 भारतीय परिप्रेक्ष्य में जैसे जैसे महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन तेज हुआ.. तेजी से उभरते जन समर्थन व अंग्रेजी सल्तनत पे एक दबाव के कारण महात्मा गाँधी का एक चितंन व कारुण्य भरा ब्लैक एंड व्हाइट व्यक्तित्व टाईम मैगजीन ३१ मार्च १९३० में पहली बार दिखा..

मगर आपको ये भी सोचकर हैरत होगी कि जिस महापुरुष के अहिंसात्मक रुप आज भी हम ओढे हुए से हैं.. तो गाँधी जी वाले टाईम कवर के पहले टाईम ने प्वाइंटर नामक नस्ल के एक कलर्ड पिक्चर को ३ मार्च १९३० वाले अंक में जगह दी थी.. जो आज भी टाईम मैगजीन के गैलरी में देखा जा सकता है। आज के देखे गए टाईम वॉल्ट में दिख रहे सभी तस्वीरों के बीच हमारे महात्मा गाँधी की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर अन एवेलेबल दिख रही है.. बाकी बचता मनोविज्ञान आपका है।

फिर ब्रिटिश राज पराधीन भारत के समय जो दुसरे भारतीय या युं कहें कि भारतीय मूल से संबंध रखने वाले शख्स.. जिन्हें टाईम ने एक नवाबी शान के साथ अपने कवर पेज पे जगह दी.. वे थे हैदराबाद के निजाम। हैदराबादी निजाम कवर के साथ टाईम का ये प्रकाशन २२ फरवरी १९३७ को प्रकाशित हुआ था। प्रतिष्ठा के दौर के संभवतः वे भारतीय मूल से निकले नवाबी शान को बिखेरते राज रजवाड़ो के बीच टाईम मैगजीन के पहले पसंद थे। अंग्रेजों व अंग्रेज़ी सल्तनत से उनके अच्छे संबंध इससे ही जाहिर होते है।

७ मार्च १९३८ को भारतीय मूल के वे तीसरे शख्स जिनकी तस्वीर टाईम मैगजीन के कवर पे देखने को मिली वो थे आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस.. जिन्होंने भारत की आजादी लिए जर्मनी व जापान के साथ मिलकर एक अच्छी खासी मोर्चाबंदी की थी और अंग्रेजो पे एक अच्छा दबाव बनाया था।

..फिर एक लंबे अर्शे के बाद २७ जनवरी १९४७ को हमारे प्रथम लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का चेहरा टाईम मैगजीन के कवर पे आया। अघोषित आजादी के कुछ महिने पहले सरदार वल्लभ भाई पटेल का टाईम के कवर पेज पे अवतरित होना भी आजादी काल में उनके किऐ प्रयासों को बखूबी बता जाता है।
इसी वर्ष ३० जून १९४७ को महात्मा गाँधी का एक हँसता हुआ चेहरा.. मानों भारतीय आजादी को स्वीकृति देता टाईम के कवर पे चमक उठा। गाँधी जी का टाईम के कवर पे ये दुसरा अवतरण था।

..स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद टाईम ने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े दो अभिन्न शख्स.. पहले पाकिस्तान के पितामह मोहम्मद अली जिन्ना व बाद में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को अपने कवर पेज पे जगह दी थी। स्वतंत्रता के बाद नेहरु जी के किऐ कुछ सकारात्मक कार्यों व युरोपीयन अमेरिकी संबंधों के कारण चार पाँच दफे टाईम के कवर पेज पे दिखते रहे। नेहरु जी बाद कुछ राजनायकों व समाज धर्म सेवियों ने भी टाईम के कवर पेज पे जगह बनाई.. वे थे..
..लाल बहादुर शास्त्री, दलाई लामा, बाबा आमटे, मदर टेरेसा व भारत की एक मात्र घोषित लौह महिला दुर्गा स्वरुपी इंदिरा गाँधी।

भारत वर्ष के इन वीर सपूतों व अंगिकारों को मेरा कोटि कोटि नमन।।

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