Friday, 30 May 2014

इंजिनियरिंग एक निर्माण कथा....


     जीवन-रथ के उपक्रम में, मानवीय सेवा या आज के सन्दर्भ में इसे मानवीय इंजिनियरिंग कह लें तो इसमें कोई अतिशयोक्ति का भाव नहीं..| बचपन से ही ऐसे भावों से आप वंचित ही रहतें है... और खास कर तब जब आप विशेषतः इस बॅक ग्राउंड से नहीं आते हैं तो...| फिर इस विधा की विशेष पढ़ाई के बाद.. खुद को अपने बॅक ग्राउंड या सामाजिक व्यवस्था से जोड़ने की कवायद...| जहाँ इस विधा के ज्ञानार्जन के दौरान उन चरम पक्षों के  उदीयमान भावों को  समझना... तो फिर अपने सफ़र में उन भावों को स्पष्ट धरातल से जोड़ने की कला का स्वतः आविर्भाव..|
       बक्सर कार्यानुभव के दौरान खुद को उस संस्थान के वैज्ञानिक प्रबुद्धजनों  से परस्पर दैनिक वार्तालाप की प्रक्रिया में... इस  ज्ञान का  बोध होना की... रियल कॉम्पीटिशन तब संभव है..जब डेवेलपमेंट प्रोग्रेस एक समान हो| वर्षों से देश और विदेश की उत्कृष्ट सेवा के बाद अपने राज्य और समाज को देखना... तब विभेद कर जाता है, जब अपनी ज़मीन संकीर्ण जातीय, वर्गीय और धर्म भेदो में बटी पड़ी हो...| किसी राज्य के डेवेलपमेंट का सीधा संबंध उस राज्य की विशिस्ट शिक्षा योजनाओं को सुचारू रूप से कार्यान्वित करने से होता है... तभी आज दक्षिण-पस्चिम भारत के विकसित  राज्य हमारे बिहार से वर्षों आगे चल रहें हैं... और आज भी हमारी पीढ़ी खुद को ससक्त करने से बेहतर अन्य राज्यो के मॉडेल मानसिकता में विभोर है..|

      अपने बिहार के दस वर्षों के कार्यानुभव में खुद को कुछ कठोर निर्णयों में पिरोते हुए... आज अपने बिहार के इंजिनियरिंग संसाधानो और सॅन्सथानो में आई आशातीत बढ़ोतरी से जहाँ थोड़ी खुशी होती है...वहीं इन संसाधनो को यथावत बनाए रखने की चिंता भी...| आज ज़रूरत है तो बस जागृत होने की जहाँ " वसुधैव कुटुम्बकम" के हित को बस " सर्वजन हिताय..सर्वजन सुखाय.." के मंत्रों से ही प्रज्वलित कर सकतें हैं|

नागपुर के जिस कॉलेज में पढ़ने को मिला... वो वहाँ से निकलने तक..  निर्माणाधीन ही रहा... पर आज वो महाराष्‍ट्र के कुछ गिने चुने ऑटोनोमस इंजिनियरिंग कॉलेज के क़तारों में है... और इस शिखर को छूने के लिए ऑटोनोमस सेंसो का बहुतायत में समागम होना भी एक विशेष परिलक्षण है...| ...तो फिर उन परिलक्षणों को हम अपने राज्य के डेवेलपमेंट प्रोसेस में जोड़ने की प्रक्रिया को गति क्यों नहीं दे पाते..| हमारी भी अपनी व्यवस्था हो सभी वर्गो के लिए... अन्य राज्यों की तरह  अपनी अपनी प्राइवेट यूनिवर्सिटी हो... जातीय राजनीतिक कटिबद्धों से परे... अपने खुद के प्रबुद्ध डेवेलपमेंट मॉडेल को लिए... बस सार्थक कर्मों को देखा जाय.... तो फिर आप ही मानद उपाधियाँ वितरित करते नज़र आएँगे...|

बिहार के अपने अध्यापन कार्यानुभव के दौरान इंजिनियरिंग शिक्षण संस्थानो में हुई बढ़ोतरी ने मेरे एक मन के बोझ को भी कुछ हल्का करने की कोशिश की..| मेरी दिली ख्वाहिश Construction Engineering ... पढ़ने की थी.. लेकिन मेरे कार्यानुभव में पूर्णिया से लेकर बक्सर तक के सफ़र.. और फिर कुछ विशिष्ट संस्थानो में कुछ सेवा-दान के अवसरों ने अपनी एक दुर्लभ Constructive sense को create किया| इसके लिए कुछ प्रचंड दुरवास अनुभूतियों से लिप्त हो.. थोड़ा मुनि दुरवासा-चरित्र के वरण को भी जाना पड़ा| स्वीकारोक्ति की प्रतीक्षा तो तिरस्कार के विष को भी पीना पड़ा..| फिर बक्सर की दिव्य-धरा पे जा के ही इस अभिव्यक्ति साहित्य को पुरातन बल भी मिला| धन्यवाद उन शिक्षाविदों वैज्ञानिकों को जिसने इस मृत आत्मा को जीवन का अमृत दिया | लोग कहते ये कैसा इंजिनियरिंग ... मैं बस यूं कह जाता...

ये तो  है मेरे प्रयासों का एक इंजिनियरिंग निर्माण....
ये तो  है मेरे प्रयासों का एक इंजिनियरिंग निर्माण....
ये तो  है मेरे प्रयासों का एक इंजिनियरिंग निर्माण....

 *** आज अपने देश के अन्य राज्यों में IIT/IIM जैसी नई संस्थाओं के खोलने पर ज़ोर दिया जा रहा है.. तो फिर इन राज्यों में चल रहे पुराने संस्थाओं का क्या..? मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बिना सिचे... हाइब्रिड बीजों के फलों और फसलों की खेती कैसे की जा सकती है|
*** तकनीकी संस्थाओं में विदेशी भाषाओं की पठन पाठन के साथ साथ.. हमारे बिहार के युवा वर्ग को अन्य विकसित राज्यों की तरह एक भयमुक्त एवं सुसंस्कृत माहौल की शख्त आवश्यकता है|



विप्र प्रयाग घोष

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Monday, 26 May 2014

क़ुतुब सेंटर देल्ही से बिहार साहित्य दर्शन....

        आपकी अभिलाषा आपके जीवन के मिलने वाले अमूल्‍य साक्षात्कारों में ही निहित होती है| ....और इसे सभो को बखूबी.. एक सकारात्मक भाव से ही लेनी चाहिए|  आज के अख़बार में कुछ यूँ पढ़ने को मिला की आपका वर्तमान ही आपका भविष्य निर्धारित करता है... तो फिर भूत के अस्तित्व का मोल... क्या..?? मन में ऐसे ही उमर घुमर करते कुछ तत्थयों को बरबस प्रकृति में कुछ घोल देने की इच्छा फिर प्रबल हो उठी... जिसने मेरे साहित्य दर्शन के साक्षात्कार को निरंतर शक्ति प्रदान करने का काम किया|

       इंजिनियरिंग के बाद एक मिडिया मॅनेज्मेंट कोर्स 2003 के साक्षात्कार को कैसे भूला दूं| वाकई जादुई था वो साक्षात्कार... प्रश्न तो वर्षों पहले ही पूछे गये थे लेकिन इनकी परतें रह रह कर अपना सुखद दर्शन करवा रहीं हैं| देल्ही के कुतुब सेंटर में स्कूल ऑफ कन्वर्जेन्स मीडीया मॅनेज्मेंट इन्स्टिट्यूट में रिटन टेस्ट क्वालिफाइ करने के बाद इंटरव्यू राउंड की बारी आई| इंटरव्यू लेने वाले जनाब अपने खुले लंबे बाल और सफेद लंबी दाढ़ी लिए मेरे सामने थे| मेरे इंट्रोडक्सन के बाद जैसे उनके चेहरे पे आई एक अजीब चमक देखी थी मैने| उन्होने कहा तो आप पूर्णिया और भागलपुर दोनो जगहों से हैं... तो आपके पूर्णिया के एक प्रख्यात साहित्यकार का नाम बतायें... | मैने फणीश्वर नाथ रेणु का नाम बताया...| फिर झट उन्होने पूछ डाला... की उनकी एक लेख पे आधारित एक फिल्म का नाम तो आप जानते ही होंगे... मैने कहा जी.. तीसरी कसम..| तो फिर ये बतायें की ये किस कहानी से लिया गया है... मेरे पास जो जानकारी थी.. मैं उन्हें मैला आँचल का नाम बता पाया..|

      फिर वो आगे बढ़े और पूछा आपका पूर्णिया पहले बंगाल का एक हिस्सा था... और आपके पूर्णिया में एक महान बंगाली साहित्यकार का भी जन्म हुआ था, जो फणीश्वर नाथ रेणु के साहित्यिक गुरु भी थे.. उनका नाम बता पायेंगे..| मेरे पास कुछ जवाब नहीं था..| अब उनका अगला प्रश्न भागलपुर से था.. उन्होने पूछा... अच्छा ये बतायें की इस साल की एक ह्यूज बजट वाली सूपरहिट फिल्म बनी है आपके भागलपुर की पृष्ठ-भूमि पे.... मैने जवाब दिया गंगा जल...| फिर उन्होने पूछा की यह फिल्म भागलपुर के किस कांड से प्रेरित थी... मैने कहा... अंखफोरवा कांड... |

 
 फिर साक्षात्कार का सिलसिला आगे बढ़ा.... और मेरे सेल्फ़ इंटेरेस्ट और सेल्फ़ मोटिवेशन को भी कुछ खनगाला गया| कुछ दिन बाद फाइनल रिज़ल्ट में खुद को वेटिंग में पाया| फिर कुछ दिनो बाद उस कोर्स के तिरुअनंतपुरम सेंटर के लिए ऑफर मिला... जिसे मैने स्वीकृत नहीं किया| फिर देल्ही से अहमदाबाद कुछ दिन रहने के बाद.. पूर्णिया अपने घर आया...| एक दिन टेली-वीजन पे आ रहे एक डॉक्युमेंट्री पे ध्यान गया की आज भी भागलपुर यूनिवर्सिटी में शरतचंद्र लिखित देवदास पे शोध-कार्य चल रहे हैं| साक्षात्कार के रहश्य की पहली परत खुलने जैसी थी.... | फिर भागलपुर के बनफूल तो पूर्णिया के प्रथम रबींद्र पुरस्कार अवॉर्डई जागोरी फेम सतीनाथ भादुरी को जानने को भी मिला| पाथेर पांचाली के लेखक विभूति भूषण बन्दोपध्याय के पूर्णिया दर्शन की भी झलक मिली| बचपन में मेरे दाँये हाथ की छठी उँगुली का ऑपरेशन करने वाले कवि स्वरूप चिकित्सक डॉ. सत्येंद्र कुमार सिन्हा 'निगम' की कुछ रचनाओं को भी संजोने को मिला|

      वर्ष २००७ मार्च में एक मित्र की शादी में बगल के अररिया जिले के गिद्धवास जाने का मौका मिला| साथ में बचपन के डॉन बॉस्को स्कूल की मित्र मंडली भी थी...| शाम को ही अपनी गाड़ी से  हमसब   बराती बन अररिया की ओर निकले| गाड़ी ज्यों ज्यों अररिया की ओर बढ़ रही थी... मेरी आत्मा यहाँ के फणीश्वर नाथ रेणु के ग्राम हिंगना औराहीं के दर्शन को भी निर्देश दे रही थी| दोस्त की शादी के बाद पौ फटते ही हम सब रेणु ग्राम की ओर निकल पड़े| उस जगह से रेणु ग्राम की यात्रा का वर्णन बरबस उनके मैला आँचल की भूमिका बाँधता ही नज़र आया| शुक्र था मेरे ड्राइवर फूलचंद के साहस का की ६-७ कि.मी. की वो यात्रा टूटे फूटे रास्तों के सहारे २-३ घंटे मे तय कर हम रेणु ग्राम के दर्शन कर पाए| रेणु जी के छोटे पुत्र  से   बातें कर और थोडा समय बिता हम रेणु ग्राम से विदा लिए... तो उस "साहित्य यात्रा के बाद मेरे होंठों पे बस एक नाम आया....तो वो था "मारे गए गुलफाम"।


(रेणु ग्राम में रेणु जी के छोटे सुपुत्र व अपने डॉन बॉसको स्कूल के मित्र मंडली रितेश रंजन पाण्डेय, चूनापुर का श्यामल किशोर राय, आशुतोष सिंह व अमित वर्मा के साथ.. एक यादगार क्षण)



 तो सहसा याद आए... कुतुब सेंटर पे मेरा स्वर्णिम साक्षात्कार लेने वाले शख्श... "बॅनडिट क्वीन".. "साथिया"... "मंगल पांडे..द राइज़िंग " फेम्ड श्री बॉबी सिंह बेदी का.......  


 ~विप्र प्रयाग घोष


Thursday, 22 May 2014

आध्यात्मिक सूफिज़म की अनुभूति....

            पानी से भरे आधे गिलास को वैज्ञानिक परिप्रेक्ष् में दिखा ये कहना तो आसान है की इसमें आधा पानी और आधे में हवा है... पर इसकी अनुभूतिओं को फ़िज़ाओं में पिरों पाना, भारतीयता का उत्कृष्ट परिलक्षण है| परिवर्तित काल खंड में सभो की परिभाषाओं के भिन्नताओं को भूनाना ही होगा, लेकिन आज के एमोशनल और प्रोफेशनल परिप्रेक्ष् में आध्यात्मिक सूफिज़म की अनुभूतिओं को नज़रअंदाज भी नहीं किया जा सकता|




वर्ष 2012 मार्च के भागलपुर दर्शन में मेरे कैमरे से खींचे एक तस्वीर में सेमस स्कूल के सामने वाले ब्रिटिश काल के भादुड़ी साहब के बंगले में एक  वृद्ध का कुछ यूँ मिलना... जैसे वर्षो से उन्हें किसी की तलाश रही हो....  फिर उस घर के मालिक से उस घर के इतिहास और भागलपुर के शरतचंद्र की जीवन कथा से जुड़े स्वर्णिम अध्यायों का मिलना  तो खुद में सुखद था|


...तो दूसरा मेरे बक्सर कार्यानुभव 2013 के दौरान बगल के अरियाव ग्राम में संघतीया प्राइमरी स्कूल के ठीक बगल वाली गली में अपने गेट पे बैठे एक मुस्लिम वृद्ध का मिलना.... मानो वर्षों बाद विश्वामित्र के बक्सर में राम के साथ रहीम  भी मिल ही गये... और फिर हम जीवन की विविधता वाली रंगों और अबीरों से थोड़े कबीर भी हो गये..

...फिर यूँ कहें तो ये किनकी बाट जोह रहे हैं... और फिर इन्होने और इनके पुरखों ने किस भारत की चौकीदारी की होगी| स्वराज से सुराज के मंज़िल तो इस अनोखे अनुभूतियों से ही तय किए जा सकते है.... फिर ना कहते है.. जहाँ ना पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि... और जहाँ ना पहुँचे कवि वहाँ पहुँचे अनुभवी... एक स्पष्ट हवाओं के साथ.. अपनी फ़िज़ाओं के लिए... कुछ पारसीयल सबमिशन का बोझ तो कम हो.... सेल्फ़ रियलाइज़ेशन की सार्थकता अपने चरम पे है... नयी व्यवस्था आने को है आने वाले अच्छे दिनो के लिए... कोटि कोटि धन्यवाद उन दिव्य-पुरुषों को जिन्होने इस सार्थकता को थोड़ा बल देने का काम किया| .

www.yogananda-srf.org

विप्र प्रयाग घोष

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Wednesday, 14 May 2014

स्वच्छन्द प्रकृति का घोषणापत्र....

जिस तरह बदलता मौसम हर दिन एक नये अंदाज़ को जीवित है, ठीक उसी तरह मानवीय संवेदना भी रोज अपने नये नये  प्रेरण ध्रुवों   का आवरण लेती रहती है| आज से ठीक एक साल पहले बक्सर को छोड़ने के बाद मेरा ख्याल कुछ आगे बढ़ने को था| उत्तर प्रदेश के कुछ इंजिनियरिंग संस्थानो मे इंटरव्यू के लिए जाना था| पटना में अपने पुत्र के साथ कुछ सुखद पलों का अनुभव अतुलनीय सा था| इंटरव्यू के १० दिनो के सिड्यूल में पहले बनारस, फिर मथुरा होते हुए न्यू देल्ही भी जाना था... की तभी केदारनाथ धाम में ज़लज़ला का तांडव... आज एक वर्ष होने के बाद भी आक्रांत कर देने जैसा ही है| पूरे उत्तराखंड, उत्तर काशी और गंगा नदी में आए सैलाब की प्रतिछाया जैसे मेरे आगे की ओर बढ़ते कदम को जैसे जैसे जकरने का काम कर रही थी, तो दूसरी ओर परिवार मोह और पुत्रप्रेम की प्रगाढ़ता को इसने थोड़ा बल भी दे दिया था| उस भीषण तांडव में में मेरी पत्नी को काशी (बनारस) और उत्तर काशी में कोई फ़र्क ही नहीं दिख रहा था| प्रकृति का ये कैसा घोषणापत्र था....

तभी टेलीविजन में आए एक समाचार में दिखने को मिला, भागलपुर  के नेता अश्विनी चौबे अपने परिवार के साथ केदारनाथ मंदिर के उस जल सैलाब में फँसे हुए हैं... मानो जीवन और मृत्यु के बीच अध्यात्म अठखेलियान कर रहा हो| प्रकृति के इस अध्यात्म ने मुझे जैसे थोड़ा आत्म-केंद्रित होने का मौका दिया हो| पटना कुछ दिन रहने के बाद मैं फिर पूर्णिया अपने माता पिता के पास आ गया| बक्सर छोड़ने का दुख भी था तो अपने घर पूर्णिया में मिलने वाले सुख और अपने कर्तव्यों को नज़र अंदाज भी तो नहीं कर सकता था| सच कहूँ तो बक्सर ने मेरे भीतर एक योगी के दर्शन को जन्म दे ही दिया था और इस ओर जाने का श्रेय था... जीवन मे परमहंस योगानंद की " ऑटोबाइयोग्रफी ऑफ योगी" का मिलना|

इधर कुछ दिन हुए लोकसभा निर्वाचन २०१४ के लोक शिक्षा हेतु पिछले एक महीने से पूर्णिया में ही रुका हुआ हूँ| एक खबर ने सचमुच एक विहंगम योग को घटित होते दिखाया... की पिछले साल केदारनाथ धाम में फँसे भागलपुर बिहार के नेता अश्विनी चौबे ने .बहूत जद्दोजहद के बाद बक्सर लोकसभा सीट से अपना नामांकन भरा......

विप्र प्रयाग घोष.

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