जीवन-रथ के उपक्रम में, मानवीय सेवा या आज के सन्दर्भ में इसे मानवीय इंजिनियरिंग कह लें तो इसमें कोई अतिशयोक्ति का भाव नहीं..| बचपन से ही ऐसे भावों से आप वंचित ही रहतें है... और खास कर तब जब आप विशेषतः इस बॅक ग्राउंड से नहीं आते हैं तो...| फिर इस विधा की विशेष पढ़ाई के बाद.. खुद को अपने बॅक ग्राउंड या सामाजिक व्यवस्था से जोड़ने की कवायद...| जहाँ इस विधा के ज्ञानार्जन के दौरान उन चरम पक्षों के उदीयमान भावों को समझना... तो फिर अपने सफ़र में उन भावों को स्पष्ट धरातल से जोड़ने की कला का स्वतः आविर्भाव..|
बक्सर कार्यानुभव के दौरान खुद को उस संस्थान के वैज्ञानिक प्रबुद्धजनों से परस्पर दैनिक वार्तालाप की प्रक्रिया में... इस ज्ञान का बोध होना की... रियल कॉम्पीटिशन तब संभव है..जब डेवेलपमेंट प्रोग्रेस एक समान हो| वर्षों से देश और विदेश की उत्कृष्ट सेवा के बाद अपने राज्य और समाज को देखना... तब विभेद कर जाता है, जब अपनी ज़मीन संकीर्ण जातीय, वर्गीय और धर्म भेदो में बटी पड़ी हो...| किसी राज्य के डेवेलपमेंट का सीधा संबंध उस राज्य की विशिस्ट शिक्षा योजनाओं को सुचारू रूप से कार्यान्वित करने से होता है... तभी आज दक्षिण-पस्चिम भारत के विकसित राज्य हमारे बिहार से वर्षों आगे चल रहें हैं... और आज भी हमारी पीढ़ी खुद को ससक्त करने से बेहतर अन्य राज्यो के मॉडेल मानसिकता में विभोर है..|
अपने बिहार के दस वर्षों के कार्यानुभव में खुद को कुछ कठोर निर्णयों में पिरोते हुए... आज अपने बिहार के इंजिनियरिंग संसाधानो और सॅन्सथानो में आई आशातीत बढ़ोतरी से जहाँ थोड़ी खुशी होती है...वहीं इन संसाधनो को यथावत बनाए रखने की चिंता भी...| आज ज़रूरत है तो बस जागृत होने की जहाँ " वसुधैव कुटुम्बकम" के हित को बस " सर्वजन हिताय..सर्वजन सुखाय.." के मंत्रों से ही प्रज्वलित कर सकतें हैं|
नागपुर के जिस कॉलेज में पढ़ने को मिला... वो वहाँ से निकलने तक.. निर्माणाधीन ही रहा... पर आज वो महाराष्ट्र के कुछ गिने चुने ऑटोनोमस इंजिनियरिंग कॉलेज के क़तारों में है... और इस शिखर को छूने के लिए ऑटोनोमस सेंसो का बहुतायत में समागम होना भी एक विशेष परिलक्षण है...| ...तो फिर उन परिलक्षणों को हम अपने राज्य के डेवेलपमेंट प्रोसेस में जोड़ने की प्रक्रिया को गति क्यों नहीं दे पाते..| हमारी भी अपनी व्यवस्था हो सभी वर्गो के लिए... अन्य राज्यों की तरह अपनी अपनी प्राइवेट यूनिवर्सिटी हो... जातीय राजनीतिक कटिबद्धों से परे... अपने खुद के प्रबुद्ध डेवेलपमेंट मॉडेल को लिए... बस सार्थक कर्मों को देखा जाय.... तो फिर आप ही मानद उपाधियाँ वितरित करते नज़र आएँगे...|
बिहार के अपने अध्यापन कार्यानुभव के दौरान इंजिनियरिंग शिक्षण संस्थानो में हुई बढ़ोतरी ने मेरे एक मन के बोझ को भी कुछ हल्का करने की कोशिश की..| मेरी दिली ख्वाहिश Construction Engineering ... पढ़ने की थी.. लेकिन मेरे कार्यानुभव में पूर्णिया से लेकर बक्सर तक के सफ़र.. और फिर कुछ विशिष्ट संस्थानो में कुछ सेवा-दान के अवसरों ने अपनी एक दुर्लभ Constructive sense को create किया| इसके लिए कुछ प्रचंड दुरवास अनुभूतियों से लिप्त हो.. थोड़ा मुनि दुरवासा-चरित्र के वरण को भी जाना पड़ा| स्वीकारोक्ति की प्रतीक्षा तो तिरस्कार के विष को भी पीना पड़ा..| फिर बक्सर की दिव्य-धरा पे जा के ही इस अभिव्यक्ति साहित्य को पुरातन बल भी मिला| धन्यवाद उन शिक्षाविदों वैज्ञानिकों को जिसने इस मृत आत्मा को जीवन का अमृत दिया | लोग कहते ये कैसा इंजिनियरिंग ... मैं बस यूं कह जाता...
ये तो है मेरे प्रयासों का एक इंजिनियरिंग निर्माण....
ये तो है मेरे प्रयासों का एक इंजिनियरिंग निर्माण....
ये तो है मेरे प्रयासों का एक इंजिनियरिंग निर्माण....
*** आज अपने देश के अन्य राज्यों में IIT/IIM जैसी नई संस्थाओं के खोलने पर ज़ोर दिया जा रहा है.. तो फिर इन राज्यों में चल रहे पुराने संस्थाओं का क्या..? मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बिना सिचे... हाइब्रिड बीजों के फलों और फसलों की खेती कैसे की जा सकती है|
*** तकनीकी संस्थाओं में विदेशी भाषाओं की पठन पाठन के साथ साथ.. हमारे बिहार के युवा वर्ग को अन्य विकसित राज्यों की तरह एक भयमुक्त एवं सुसंस्कृत माहौल की शख्त आवश्यकता है|
विप्र प्रयाग घोष
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