Thursday, 22 May 2014

आध्यात्मिक सूफिज़म की अनुभूति....

            पानी से भरे आधे गिलास को वैज्ञानिक परिप्रेक्ष् में दिखा ये कहना तो आसान है की इसमें आधा पानी और आधे में हवा है... पर इसकी अनुभूतिओं को फ़िज़ाओं में पिरों पाना, भारतीयता का उत्कृष्ट परिलक्षण है| परिवर्तित काल खंड में सभो की परिभाषाओं के भिन्नताओं को भूनाना ही होगा, लेकिन आज के एमोशनल और प्रोफेशनल परिप्रेक्ष् में आध्यात्मिक सूफिज़म की अनुभूतिओं को नज़रअंदाज भी नहीं किया जा सकता|




वर्ष 2012 मार्च के भागलपुर दर्शन में मेरे कैमरे से खींचे एक तस्वीर में सेमस स्कूल के सामने वाले ब्रिटिश काल के भादुड़ी साहब के बंगले में एक  वृद्ध का कुछ यूँ मिलना... जैसे वर्षो से उन्हें किसी की तलाश रही हो....  फिर उस घर के मालिक से उस घर के इतिहास और भागलपुर के शरतचंद्र की जीवन कथा से जुड़े स्वर्णिम अध्यायों का मिलना  तो खुद में सुखद था|


...तो दूसरा मेरे बक्सर कार्यानुभव 2013 के दौरान बगल के अरियाव ग्राम में संघतीया प्राइमरी स्कूल के ठीक बगल वाली गली में अपने गेट पे बैठे एक मुस्लिम वृद्ध का मिलना.... मानो वर्षों बाद विश्वामित्र के बक्सर में राम के साथ रहीम  भी मिल ही गये... और फिर हम जीवन की विविधता वाली रंगों और अबीरों से थोड़े कबीर भी हो गये..

...फिर यूँ कहें तो ये किनकी बाट जोह रहे हैं... और फिर इन्होने और इनके पुरखों ने किस भारत की चौकीदारी की होगी| स्वराज से सुराज के मंज़िल तो इस अनोखे अनुभूतियों से ही तय किए जा सकते है.... फिर ना कहते है.. जहाँ ना पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि... और जहाँ ना पहुँचे कवि वहाँ पहुँचे अनुभवी... एक स्पष्ट हवाओं के साथ.. अपनी फ़िज़ाओं के लिए... कुछ पारसीयल सबमिशन का बोझ तो कम हो.... सेल्फ़ रियलाइज़ेशन की सार्थकता अपने चरम पे है... नयी व्यवस्था आने को है आने वाले अच्छे दिनो के लिए... कोटि कोटि धन्यवाद उन दिव्य-पुरुषों को जिन्होने इस सार्थकता को थोड़ा बल देने का काम किया| .

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विप्र प्रयाग घोष

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