Wednesday, 14 May 2014

स्वच्छन्द प्रकृति का घोषणापत्र....

जिस तरह बदलता मौसम हर दिन एक नये अंदाज़ को जीवित है, ठीक उसी तरह मानवीय संवेदना भी रोज अपने नये नये  प्रेरण ध्रुवों   का आवरण लेती रहती है| आज से ठीक एक साल पहले बक्सर को छोड़ने के बाद मेरा ख्याल कुछ आगे बढ़ने को था| उत्तर प्रदेश के कुछ इंजिनियरिंग संस्थानो मे इंटरव्यू के लिए जाना था| पटना में अपने पुत्र के साथ कुछ सुखद पलों का अनुभव अतुलनीय सा था| इंटरव्यू के १० दिनो के सिड्यूल में पहले बनारस, फिर मथुरा होते हुए न्यू देल्ही भी जाना था... की तभी केदारनाथ धाम में ज़लज़ला का तांडव... आज एक वर्ष होने के बाद भी आक्रांत कर देने जैसा ही है| पूरे उत्तराखंड, उत्तर काशी और गंगा नदी में आए सैलाब की प्रतिछाया जैसे मेरे आगे की ओर बढ़ते कदम को जैसे जैसे जकरने का काम कर रही थी, तो दूसरी ओर परिवार मोह और पुत्रप्रेम की प्रगाढ़ता को इसने थोड़ा बल भी दे दिया था| उस भीषण तांडव में में मेरी पत्नी को काशी (बनारस) और उत्तर काशी में कोई फ़र्क ही नहीं दिख रहा था| प्रकृति का ये कैसा घोषणापत्र था....

तभी टेलीविजन में आए एक समाचार में दिखने को मिला, भागलपुर  के नेता अश्विनी चौबे अपने परिवार के साथ केदारनाथ मंदिर के उस जल सैलाब में फँसे हुए हैं... मानो जीवन और मृत्यु के बीच अध्यात्म अठखेलियान कर रहा हो| प्रकृति के इस अध्यात्म ने मुझे जैसे थोड़ा आत्म-केंद्रित होने का मौका दिया हो| पटना कुछ दिन रहने के बाद मैं फिर पूर्णिया अपने माता पिता के पास आ गया| बक्सर छोड़ने का दुख भी था तो अपने घर पूर्णिया में मिलने वाले सुख और अपने कर्तव्यों को नज़र अंदाज भी तो नहीं कर सकता था| सच कहूँ तो बक्सर ने मेरे भीतर एक योगी के दर्शन को जन्म दे ही दिया था और इस ओर जाने का श्रेय था... जीवन मे परमहंस योगानंद की " ऑटोबाइयोग्रफी ऑफ योगी" का मिलना|

इधर कुछ दिन हुए लोकसभा निर्वाचन २०१४ के लोक शिक्षा हेतु पिछले एक महीने से पूर्णिया में ही रुका हुआ हूँ| एक खबर ने सचमुच एक विहंगम योग को घटित होते दिखाया... की पिछले साल केदारनाथ धाम में फँसे भागलपुर बिहार के नेता अश्विनी चौबे ने .बहूत जद्दोजहद के बाद बक्सर लोकसभा सीट से अपना नामांकन भरा......

विप्र प्रयाग घोष.

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