Tuesday, 24 June 2014

"राजा रवि वर्मा की चित्रलीला.. रामलीला.."

हाल के दिनो में ही प्रदर्शित संजय लीला भंसाली की फिल्म " गोलियों की रास-लीला... राम-लीला" देख रहा था.. की फिल्म के दृश्यों में बड़ी खूबसूरती से फ़िल्माई गयी कुछ बॅक-ग्राउंड पैंटिंग्स पे नज़लें ठहर सी गयी...| अरे ये तो राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स हैं.. मन ही मन मैं चहक पड़ा। फिर तो अगले कुछ दृश्यों से लेकर लगभग समूचे फिल्म में ही.. उनकी पेंटिंग्स छाई रही..| मेरा मन मानो फिल्म की विषय-वस्तु को छोड़ बीते दिनो की उन अमूल्य कृतियों को देखने में ही लगा रहा| ...कुछ पलों के लिए लगा आख़िर क्यों आज भी इन कला-कृतियों की कद्र बनी हुई है... फिल्म मेकिंग के स्तरहीन संवाद और मंचन में इनकी मौजूदगी.. किस सूत्र-धार का काम कर रही है..| इसका सटीक  जवाब बस यही है की आज भी हमारे वेद और पुराणो में संग्रहित पौराणिकता अपने दिव्य ढाल लिए हमें संरक्षित कर रही है|


करीब आज से तीन-चार साल पहले फ़ेसबुक पे एक रिटाइर्ड फ़ौज़ी ने मेरी कलात्मक रुझानो को देख... राजा रवि वर्मा के नाम की फ़ेसबुक पेज बनाने का रिक्वेस्ट भेजा था..| ये नाम मेरे लिए अपरिचित सा था.. सो मैं नाम को गूगल पे सर्च किया.. तो दंग रह गया.. की अब तक मैं भारत के महानतम चित्रकार के नाम से परे था..| लेकिन फिर उनकी बनाई रामायण और महाभारत की कुछ दुर्लभ चित्रों की अनुभूतियों का स्पर्श तो मैं बचपन से ही करता रहा हूँ... गीता प्रेस गोरखपुर से निकली कल्याण मासिक पत्रिका के सौजन्य से..|  प्रख्यात फिल्मकार और टीवी सीरियल के जरिए देश में एक क्रांति लाने वाले रामानंद सागर ने जब ‘रामायण’ सीरियल बनाया था तो उस समय तक लोगों ने हिंदू देवी-देवताओं का जीवंत और वास्तविक रूप पहले कभी नहीं देखा था.... तब इस सीरियल ने लोगों पर काफी प्रभाव छोड़ा था।  इतिहास में कुछ इसी तरह का माहौल उस दौर में  भी देखने को मिला था जब विश्वविख्यात चित्रकार राजा रवि वर्मा ने भारतीय साहित्य और संस्कृति के पात्रों का चित्रण किया था। चित्रकार राजा रवि वर्मा पहले भारतीय चित्रकार थे, जिन्होंने पश्चिमी शैली के रंग-रोगन-सामग्रियों और तकनीक का प्रयोग भारतीय विषय वस्तुओं पर किया। उनकी चित्रकारी ने हिंदू देवी-देवताओं की ऐसी अद्भुत छवियां पेश करनी शुरू की, जैसी पहले कभी नहीं की गई थीं|  http://en.wikipedia.org/wiki/Raja_Ravi_Varma

भारत के मिथकीय चरित्रों पर कृतियां बनाने वाले राजा रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के एक छोटे से गांव किलिमन्नूर में हुआ. उनके पिता एक बहुत ही बड़े विद्धान थे जबकि उनकी माता एक लेखिका थीं. पांच वर्ष की छोटी सी आयु में ही उन्होंने अपने घर की दीवारों को दैनिक जीवन की घटनाओं से चित्रित करना प्रारंभ कर दिया था. उनके चाचा कलाकार राजा राज वर्मा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और कला की प्रारंभिक शिक्षा दी। चौदह वर्ष की आयु में वे उन्हें तिरुवनंतपुरम ले गये जहां राजमहल में उनकी तैल चित्रण की शिक्षा हुई। वर्मा ने चित्रकला की शुरुआती कला चित्रकार रामा स्वामी नायडू से सीखी. यहीं वह तंजौर शैली से मुखातिब हुए. इसके बाद उन्हें ब्रिटिश चित्रकार थियोडोर जेनसन से सीखने का मौका मिला. यहीं से उनके सामने पश्चिम की आधुनिक चित्रकला की एक नयी दुनिया के दरवाजे खुल गए. वर्मा को असली पहचान सन 1873 में ‘मल्लप्पू चुटिया नायर स्त्री’ नामक चित्र से मिली. आस्ट्रिया के वियना में सम्पन्न हुई चित्र प्रदर्शनी में यह चित्र पुरस्कृत हुआ. वर्मा की पेंटिंग को विश्व कोलंबियन प्रदर्शनी में भेजा गया जो 1893 में शिकागो में आयोजित किया गया. वहां उन्हें अपने चित्रकारी के लिए दो गोल्ड मेडल भी मिले.

भारतीय इतिहास में राजा रवि वर्मा का नाम ऐसे चित्रकार के रूप में लिया जाता है जिन्होंने पश्चिमी शैली का प्रयोग कर भारत के मिथकीय चरित्रों में अपनी कल्पना के सुंदर रंग भरे. शुरुआत में उनकी कलाकृतियों को लोगों ने स्वीकार नहीं किया लेकिन बाद में कई लोग उनकी चित्रकारी शैली से काफी प्रभावित हुए. उन्होंने अपनी चित्रकारी में सरस्वती, दुर्गा, नल-दमयंती तथा दुष्यंत-शकुंतला जैसे पौराणिक चरित्रों पर आधारित देवी-देवताओं के चित्र खूबसूरती से उकेरे. उनकी चित्रकारी शैली को अगर देखें तो यह बिलकुल ही यथार्थ चित्रण से हटकर है. उन्होंने अपनी कला को बेहद ही सीमित दायरे में रखा। कला के इस महान आचार्य ने अक्टूबर 1906 में दुनिया से अलविदा कह दिया. भारतीय चित्रकला में उनके योगदान को देखते हुए केरल सरकार ने उनकी याद में राजा रवि वर्मा पुरस्कार शुरू किया जो प्रति वर्ष कला एवं संस्कृति के क्षेत्र की किसी होनहार शख्सियत को दिया जाता है। राजा रवि वर्मा की बनाई पेंटिंग्स में जो सबसे प्रसिद्ध पैंटिंग रही.. वह थी  " Lady in  the  Moon - Light .. " http://ravivarma.org/

मेरे बचपन के दिनो में मुझे भी चित्रकारी में गहरी रूचि थी.. जो सिलसिला दसवीं बोर्ड की परीक्षा तक बदस्तूर रहा| अपने इस शौक के कारण कई बार पिताजी से डाँट भी खानी पड़ती..| चित्रकला से जुड़े इस प्रसंग में एक रोचक घटना भी याद आती है| उस वक़्त मैं सातवीं में पढ़ता था..| उस वक़्त मुझे कॉमिक्स पढ़ना और स्टिकर कलेक्षन का जबरदस्त जुनून था| एक बार एक मिकी माउस के स्टिकर को देख... एक बड़ा सा पोस्टर बना दिया था| फिर कुछ दिनो बाद पूर्णिया के कला-भवन में आयोजित चित्रकला प्रदर्शिनी में मुझे पुरस्कार भी मिला था| लेकिन जिस बात को लेकर चित्रकला की ओर मेरी रुझान को जो प्रथम आघात मिला था.. वो था.. जिस वक़्त मेरी बनाई पोस्टर पे मुझे सम्मानित किया जा रहा था.. उसी समय उस आर्ट-गॅलरी से उस पोस्टर की चोरी भी हो गयी थी..| सम्मान पाके जब मैं आर्ट-गॅलरी की ओर गया तब वहाँ देखा की मेरी पोस्टर और कुछ अन्य चित्रकृतियाँ भी गायब थी..| मैं सदमे में था.. रोना भी आया.. फिर मायूस हो बस अपने प्राइज़ सर्टिफिकेट और मेडल लिए घर को लौटा| ....फिर दो-तीन वर्ष.. मेट्रीक के बाद सरस्वती पूजा के चंदा कलेक्षन के लिए.. महल्ले के ही अपने मित्र के घर गया तो देखा.. मेरी वो पोस्टर उसके घर की दीवारों पे चिपकी हुई है..| मैं वर्षों बाद अपनी उस कला-कृति को निहार रहा था..| फिर मैं बिना कुछ कहे.. उसके घर से निकल गया..|

आपकी सभ्यताओं पे हमले होते ही रहेंगे.. और शायद तभी हम आज के समाज में कलाकारों का घोर अभाव देख रहें हैं| मानवीय संवेदनाओं का प्रसफूटन रुक सा गया है... अपनी नैसर्गिक कला और प्रतिभाओं को दिखाने वाले  मैदान ही नज़र नहीं आते..  तो.. ओजस्वी मदन कहाँ मिलेंगे... तो शायद "गोलियों को रासलीला.. रामलीला" की जगह "राजा रवि वर्मा की चित्रलीला.. रामलीला.." ही दिखने को मिल जाती..|


Vipra Prayag 



4 comments:

  1. SIR I AM HIGHLY IMPRESS TO KNOW ABOUT RAJA RAVI VERMA .YOU HAVE GIVEN VERY USEFUL IMFORATION . THANKS

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