इंजिनियरिंग के बाद एक मिडिया मॅनेज्मेंट कोर्स 2003 के साक्षात्कार को कैसे भूला दूं| वाकई जादुई था वो साक्षात्कार... प्रश्न तो वर्षों पहले ही पूछे गये थे लेकिन इनकी परतें रह रह कर अपना सुखद दर्शन करवा रहीं हैं| देल्ही के कुतुब सेंटर में स्कूल ऑफ कन्वर्जेन्स मीडीया मॅनेज्मेंट इन्स्टिट्यूट में रिटन टेस्ट क्वालिफाइ करने के बाद इंटरव्यू राउंड की बारी आई| इंटरव्यू लेने वाले जनाब अपने खुले लंबे बाल और सफेद लंबी दाढ़ी लिए मेरे सामने थे| मेरे इंट्रोडक्सन के बाद जैसे उनके चेहरे पे आई एक अजीब चमक देखी थी मैने| उन्होने कहा तो आप पूर्णिया और भागलपुर दोनो जगहों से हैं... तो आपके पूर्णिया के एक प्रख्यात साहित्यकार का नाम बतायें... | मैने फणीश्वर नाथ रेणु का नाम बताया...| फिर झट उन्होने पूछ डाला... की उनकी एक लेख पे आधारित एक फिल्म का नाम तो आप जानते ही होंगे... मैने कहा जी.. तीसरी कसम..| तो फिर ये बतायें की ये किस कहानी से लिया गया है... मेरे पास जो जानकारी थी.. मैं उन्हें मैला आँचल का नाम बता पाया..|
फिर वो आगे बढ़े और पूछा आपका पूर्णिया पहले बंगाल का एक हिस्सा था... और आपके पूर्णिया में एक महान बंगाली साहित्यकार का भी जन्म हुआ था, जो फणीश्वर नाथ रेणु के साहित्यिक गुरु भी थे.. उनका नाम बता पायेंगे..| मेरे पास कुछ जवाब नहीं था..| अब उनका अगला प्रश्न भागलपुर से था.. उन्होने पूछा... अच्छा ये बतायें की इस साल की एक ह्यूज बजट वाली सूपरहिट फिल्म बनी है आपके भागलपुर की पृष्ठ-भूमि पे.... मैने जवाब दिया गंगा जल...| फिर उन्होने पूछा की यह फिल्म भागलपुर के किस कांड से प्रेरित थी... मैने कहा... अंखफोरवा कांड... |
फिर साक्षात्कार का सिलसिला आगे बढ़ा.... और मेरे सेल्फ़ इंटेरेस्ट और सेल्फ़ मोटिवेशन को भी कुछ खनगाला गया| कुछ दिन बाद फाइनल रिज़ल्ट में खुद को वेटिंग में पाया| फिर कुछ दिनो बाद उस कोर्स के तिरुअनंतपुरम सेंटर के लिए ऑफर मिला... जिसे मैने स्वीकृत नहीं किया| फिर देल्ही से अहमदाबाद कुछ दिन रहने के बाद.. पूर्णिया अपने घर आया...| एक दिन टेली-वीजन पे आ रहे एक डॉक्युमेंट्री पे ध्यान गया की आज भी भागलपुर यूनिवर्सिटी में शरतचंद्र लिखित देवदास पे शोध-कार्य चल रहे हैं| साक्षात्कार के रहश्य की पहली परत खुलने जैसी थी.... | फिर भागलपुर के बनफूल तो पूर्णिया के प्रथम रबींद्र पुरस्कार अवॉर्डई जागोरी फेम सतीनाथ भादुरी को जानने को भी मिला| पाथेर पांचाली के लेखक विभूति भूषण बन्दोपध्याय के पूर्णिया दर्शन की भी झलक मिली| बचपन में मेरे दाँये हाथ की छठी उँगुली का ऑपरेशन करने वाले कवि स्वरूप चिकित्सक डॉ. सत्येंद्र कुमार सिन्हा 'निगम' की कुछ रचनाओं को भी संजोने को मिला|
वर्ष २००७ मार्च में एक मित्र की शादी में बगल के अररिया जिले के गिद्धवास जाने का मौका मिला| साथ में बचपन के डॉन बॉस्को स्कूल की मित्र मंडली भी थी...| शाम को ही अपनी गाड़ी से हमसब बराती बन अररिया की ओर निकले| गाड़ी ज्यों ज्यों अररिया की ओर बढ़ रही थी... मेरी आत्मा यहाँ के फणीश्वर नाथ रेणु के ग्राम हिंगना औराहीं के दर्शन को भी निर्देश दे रही थी| दोस्त की शादी के बाद पौ फटते ही हम सब रेणु ग्राम की ओर निकल पड़े| उस जगह से रेणु ग्राम की यात्रा का वर्णन बरबस उनके मैला आँचल की भूमिका बाँधता ही नज़र आया| शुक्र था मेरे ड्राइवर फूलचंद के साहस का की ६-७ कि.मी. की वो यात्रा टूटे फूटे रास्तों के सहारे २-३ घंटे मे तय कर हम रेणु ग्राम के दर्शन कर पाए| रेणु जी के छोटे पुत्र से बातें कर और थोडा समय बिता हम रेणु ग्राम से विदा लिए... तो उस "साहित्य यात्रा के बाद मेरे होंठों पे बस एक नाम आया....तो वो था "मारे गए गुलफाम"।
(रेणु ग्राम में रेणु जी के छोटे सुपुत्र व अपने डॉन बॉसको स्कूल के मित्र मंडली रितेश रंजन पाण्डेय, चूनापुर का श्यामल किशोर राय, आशुतोष सिंह व अमित वर्मा के साथ.. एक यादगार क्षण)
तो सहसा याद आए... कुतुब सेंटर पे मेरा स्वर्णिम साक्षात्कार लेने वाले शख्श... "बॅनडिट क्वीन".. "साथिया"... "मंगल पांडे..द राइज़िंग " फेम्ड श्री बॉबी सिंह बेदी का.......
~विप्र प्रयाग घोष
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