Thursday, 13 September 2018

जङ ममत्व्...।




जङ ममत्व्...। मैं अदृश्य हूँ.. मुझे मत देखो.. देखना है तो मेरे उन द्रव्यों को देखो.. फल हैं.. फूल हैं.. हरी पत्तियां है। मेरी शिखाऐं भी हैं.. आओ थोङा झूल जाओ.. खुद को थोङा भूल जाओ.. कुछ मेरे जैसे तो बन जाओ..। खुद को ना भुलाता तो क्या देख पाते.. ये अभिनव ऋंगार.. नित-नित नए प्रकार..। मैं गर्भ में स्थीर हर दिन लिए एक नवीन अविष्कार..। बांधो न मूझे तुम अपने मोह-पाश में.. मेरा जीवन तो है बस जठर आकाश में.. न रंग.. न रूप.. न काया अपनी.. रह मचलता हूँ.. बस छाया में अपनी। ...हाँ ..अब तो वर्षों बीते.. दिखता नहीं कुछ दिखाने को अपनी.. मैं ही दिखने लगूं तो क्या फिर कुछ देख पाओगे.. अपने-अपने जीवन के तेज को क्या पकङ पाओगे..। मुझे मौन ही रहने दो.. मैं ही जङ हुँ।

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