ये कौन चित्रकार है..?
..उन चित्रों में क्या छुपा था मेरा ..जो वर्षों से इन्हें सहेजता फिर रहा हूँ। वक्त के साथ इन चित्रों के साथ रखी कितनी ही चीजें कबाड़खाने को रसीद हो गई.. लेकीन ये हमेशा थोङी अपनी होकर कलेजे से लग जाती.. कह उठती.. आखीर मुझसे ऐसी बेरुखी तो ना करो.. मेरे गालिब..। संगमरमर सा तराशा था इन्हें.. बस एक ही धुन में.. जब तक इन्हें उकेरता रहता.. भूख और प्यास को खिंचे रखती अपने पास..। वे मेरे थे.. सारा दृश्य मेरा जो था। फिर एक समय ऐसा भी आया.. जब उन दृश्यों में खुद को गढने लगा। आज फिर वो गुम हुई आवाज लौटकर आयी.. "डैडी ये देखो मेरा स्केच वर्क.." एक नन्हे चित्रकार ने कहा..।
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