..खुद के शैशव-वशीभूत को धारण करना ही शिव-सृजन है.. शिव-अर्चन है। ..मन व्याकुल व उत्कंठित ..शिव धारण की प्रबल इच्छा जो जगी थी। सावन आते ही.. मानो एक देव नृत्य कर उठता है..। सतत् आनन्द का ये नृत्य.. अद्भुत नव सृजन में उद्वेलित..। आनन्द ऐकाकी या सृजनात्मक.. ब्रम्ह या परमानन्द का रूप मैं..। परमानन्द अमूर्त अर्ध-नारीश्वर .. कींचित मैं आनन्दित स्वर तो नहीं.. शिशु तो नहीं.. शैशव तो नहीं.. शिव-सृजन तो नहीं..।
www.vipraprayag.blogspot.in
www.vipraprayag.blogspot.in
No comments:
Post a Comment