Tuesday, 9 October 2018

पहली रोटी गाय की..

  ...अहा ..पहली रोटी गाय की ..इसी समृद्ध भाव में तो बचपन बीता था मेरा ..अपने ज्ञान से ही घर पे गायों की आभा को देखता आया हूँ ..कैसे दादी माँ सुबह उठते ही गायों की रहने वाली जगह गोहाल को चली जाती औऱ उन्हें छूकर ..अपने पास होने का अहसास कराती। उत्साहित गायों व बछङों से भी रहा नहीं जाता.. डकार मार पुंछ उठाए उठ खङे होते.. और फिर दादी उषा-काल की पहली गायों की होती मूत्र-विसर्जन को अपनी हथेली पे लेकर अपने आँखों में छिंटा लेती.. कहती इससे आँखों की ज्योति तेज जो होती है। ..फिर तो दिन से लेकर रात तक उनकी फिक्र सारणियों में गायों की देखभाल का एक विशेष स्थान रहता.. और घर में बने खानों का पहला भाग गायों के लिए पहले ही निकाल कर अलग रख दिया जाता.. औऱ तो और.. गायों के नए बाछी-बछङों के जन्म के बाद तो जी-जान से उनकी सेवा-सुश्रूषा में लगी रहती.. कहती "गाय आरो माय त एक्के होय छै.."। ..सच में ये मेरे जीवन के ऐसे समृद्ध भाव हैं जो शायद ही कभी भुलाए जा सकें..

~ विप्र प्रयाग

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