आज के अख़बार में पढ़ा, किसी बच्चे ने पूछा की ब्राम्हांड की खोज किसने की ? जबाव था... हर वो बच्चा जो इस दुनिया में जीवन लेता है और अपने ज्ञान के सृजन से रचता और बसाता है| पर ज्ञान के सृजन का सूत्र कौन देता है... शिक्षक...!!! एक ऐसा ज्ञान केन्द्र जो खुद में सम्मानित है, अपनी ऊर्जा और अपने तेज से...| दुनिया नहीं बचती नहीं रचती नही बसती अगर शिक्षकों का आभार समाज और जगत को नहीं मिलता| दुनिया को छोड़ अगर मैं अपने भारत की बात करूँ तो राम लक्ष्मण के शिक्षक महर्षि विश्वामित्रा किसी को याद नहीं पर पोस्ट इनडिपेंडेन्स एरा में इस दिवस को सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद में समर्पित किया जाता है| और फिर सामने एक सुंदर चित्र-मुखमंडल पे मल्यार्पण और कर्णप्रिया और दृश्याप्रिया कार्यक्रमों का आयोजन| क्या इतना काफ़ी है... एक नव-भारत की नव-रचना में...| शिक्षा से संबंधित वो सारे प्रयास बेकार हैं जब हम अपनी भारतीय सभ्यताओं में पुरातन तत्वों का आकर्षण ना पिरों सकें, और जब हम डेवेलपमेंट की नयी सीमाओं के सन्निकट हैं तो नये चर्म-रोगों का सामना भी तो साहस से करना होगा....याद रहे की यह रोग दिल और आत्मा तक ना पहुँच जाए| किसी ने कहा आप आज जहाँ हैं वो बिहार है... कुछ दिनों बाद आप का कर्मास्थल पूर्वांचल ना बन जाए... निवास स्थल सीमानचल ना बन जाए... और पैत्रीक स्थल अंगाचल ना बन जाए.... जब की आज से पहले १८५७ की तस्वीर कुछ ऐसी थी की... यह बंगाल था, फिर बिहार और ओड़ीसा बने ... अब तो झारखंड नये अस्तित्वा में आ चूका है| लेकिन फिर यह कोई नहीं कहता की यह एक दिव्यनचल है.... ब्राम्हंचल है... अध्यातमानचल है| यह बताने वाला एक शिक्षक ही है.... जो समग्र ज्ञान लिए खुद में पुरातन है, हर दिवस में चलयमान है.... आपके जीवन का सम्मान है| ये है तो एक सम्रिध राष्ट्र निर्माण है.... नहीं तो धृतराष्ट्र महान है|
~ विप्र प्रयाग घोष
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