कुछ दिन हुए हिमाचल प्रदेश में व्यास नदी में २४ छात्रों की अप्राकृतिक रूप से बढ़े जल-स्तर में डूबने से अकाल मृत्यु हो गयी| सारे छात्र भारत के नये बने तेलंगाना राज्य के एक इंजिनियरिंग कॉलेज के छात्र थे| फिर रह रह कर मृत शवों का मिलना.. न्यूज़ और मीडीया रिपोर्ट से मिलती खबरें.. शोक में रोते और चिल्लाते परिजन..| खबरों का ये सिलसिला कुछ और दिन चलेगा.. फिर एक नये हादसों की ओर अपना रुख़ कर लेगा..| केद्र और राज्य सरकारें इसे महज एक मानवीय चूक समझ.. शोक संतृप्त परिवारों के कुछ मुआवजो का एलान कर.. अपना पल्ला झाड़ते ही नज़र आयेंगी|
...फिर जीवन मृत्यु के इस झंझावात में इस विस्मयकारी नुकसान को किस रूप में देखा जाए|
याद रहे की वो सभी मानवीय विधाओं में सर्वश्रेष्ठ इंजिनियरिंग संकाय के छात्र थे| अपने राज्य.. अपनी संस्कृति को छोड़ दूसरे राज्य और उन दृश्यों से जुड़ने आए थे.. जिन्हें वो जिंदगी भर की संपत्ति समझ अपने दिलों में सजो कर रख पाते| ... और शायद ऐसी अतुलनीय संपत्तियों को ही मेरे शब्दों में अध्यात्म कहतें हैं... और इंसानी ज़ज्बात आध्यात्मिक अभिलेखों के इर्द गिर्द ही मूर्त रूप लिए खड़ा नज़र आता है|
अगर प्रकृति के इन कड़वे सत्यों से खुद के अनुभवों को पिरोने की कोशिश करूँ तो.. अपने इस आध्यात्मिक वकालत को थोड़ा जीवंत कर सकूँ| इस संसार में सभों के अपने अपने मनो-विश्लेषण रहे हैं.. और फिर एक अणु की पुष्टि ही परम-आणविक समर्थन ले पाया है| इसी तरह कुछ... मैं भी जब अपने इंजिनियरिंग जीवन की यात्रा को घर से निकला था.. तो बहूत सारे पड़ावों से गुज़रते हुए.. आज जीवन के वृतांत पे आ रुका हूँ| जिस आध्यात्मिक अभिलेखों को देख पला-बढ़ा.. फिर वहाँ पहुँच कुछ नये अनुभवों से जन्मे अभिलेखों की रचना होते देख पा रहा हूँ| .... मेरे इंजिनियरिंग विद्यार्थी जीवन की मेरी पहली पाठशाला होती थी... कोलकाता सियालदह का रेलवे स्टेशन...| भारत के अति-व्यस्ततम रेलवे स्टेशनो में एक.. हज़ारों हज़ार की संख्या में एक साथ आते-जाते लोगो का रेला..| ...और इस अलौकिक दर्शन में मुझको लुभाता.. स्टेशन पे स्थित राम-कृष्ण मिशन का बुक स्टॉल..| ..और उस बुक स्टॉल पे उपलब्ध रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद आदि महान आध्यात्मिक आत्माओं का साहित्य संदेश..| वहाँ से नागपुर की ओर जाने और लौटते वक़्त वो जगह हमेशा ही मेरा मार्ग-दर्शन करती.. और वहाँ मिले कुछ अनमोल आध्यात्मिक व साहित्य कृतियों से मैं खुद को धन्य समझता| उस जगह से मेरी दोस्ती हो गयी थी... और बगल वाले एप्पल जूस सेंटर से भी...| घर से दूर होने पे भी... आपके इस आत्मीयता की वजह क्या होती है..| शायद इसलिए की आपके मनो-भावों को उकेरती जीवन के कुछ मूल्यों का दर्शन आपको सहज मिलती दिख जाती हो.. और आपकी भारतीयता और आपके सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े कुछ पक्षों की संपुष्टि भी हो जाती हो|
बचपन से मुझे जितना जुड़ाव मेरे बंगाली परिदृश्य में रह कर भी ना मिला था... कोलकाता से
होकर गुजरने वाली इन यात्राओं ने पूरी कर दी थी| कटिहार से हाटे-बाज़ारे एक्सप्रेस के लम्हों ने उन तानो को जोड़ने की कोशिश की... जो कभी शरत-रवीन्द्र साहित्य तो कभी सलिल चौधरी.. सचिन देव बर्मन.. काजी नज़रुल के संगीतों से निकले हों| अगर इस बीच कोलकाता दर्शन को कुछ वक़्त मिल जाए तो.. बेलुर मठ और ब्रिटिश राज के अवशेषों से खुद को अभिभूत कर पाता| एक बार तो कोलकाता प्रेसीडेंसी कॉलेज भी घूम आया था.. उस वक़्त वहाँ मेरा एक प्रिय मित्र जो पढ़ाई कर रहा था| बातों बातों मे ही पता चला की आज भी मेरे पूर्णिया के सतीनाथ भादुरी की "ढोढाय चरित-मानस" वहाँ पी.जी. कोर्स में चल रही है| ... जीवन में मिलने वाले ये कुछ ऐसे तत्वों से ही आपका अध्यात्म मिलता चला जाता है.. वहाँ राम का वनवास भी दिखता है तो पांडवों का अग्यात-वास भी..| फिर आध्यात्मिक अनुभवों के ऐसे धरोहरों को बचाने में.. मानवीकी चूक क्यों...!!!!
अपने देश में अगर सबसे ज़्यादा बच्चे अपने गृह-राज्यों को छोड़ दूसरे राज्यों का रुख़ करतें हैं तो वो इंजिनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई के लिए ही..| इन ज्ञान-वर्धन और संवहन में अपने विषयवार ज्ञान के साथ साथ.. जिस महान संज्ञान को वो हासिल करते हैं.. वो है देश और विदेशों की विविध शैलियाँ, धर्माचार, रस्मो-रिवाजों के आए लोगों से सामनजस्य स्थापन में.. जिसे वो कालांतर अपनी सेवाओं से जोड़ पुनः विश्व-कर्म को निकल पड़ते हैं| अपनी आज़ादी के पूर्व और उसके बाद भी विदेशों की ओर भारत की एक अच्छी पौध.. अमेरिका, आफ्रिका, यूरोप महादेशों की ओर माइग्रेट करने लगी..| उसकी ख़ास वजह वहाँ मिल रहे उँचे पगारों और सुख सुविधाओं से नहीं.. बल्कि उनके ज्ञान के मिलने वाले उचित संवर्धन,सनपोषण और मिलने वाले सम्मान से ही था| फिर तो आज भी स्वामी विवेकानंद के अध्यात्म उल्लेखों की पुष्टि उनके शिकागो में दिए भाषण से ही विश्व-जगत को मिलती नज़र आती है|फिर इस कड़ी को आगे बढ़ाते परमहंस स्वामी योगानंद ने भी इसी समाज से उठ अपने योग दर्शन को कॅलिफॉर्निया, अमेरिका में स्थापित किया| फिर अमेरिका में प्रसारित इन अध्यात्म शक्तियों के कारण ही अमेरिका के शिकागो शहर में जन्मा एक यहूदी.. अध्यात्म की खोज में एक दूभर यात्रा के बाद भारत आ... राधानाथ स्वामी के अवतार को स्वीकृत कर पाता है|
आध्यात्मिक अभिलेखों के इन कड़ियों में न जाने ऐसे कितने ही नाम हैं.. जिन्होने
समय समय पे भारतीय आध्यात्मिक प्रतिबद्धताओं पे अडिग रह.. अपने समाज, देश और विदेशों को एक नयी दिशा देने की कोशिश की.. और फिर इस विश्व-निर्माण में भी उन अमूल्य जीवन-यात्राओं ने ही विशेष योगदान भी दिया था| अपने नागपुर इंजिनियरिंग यात्रा में भी औरों के अनुभव की ही तरह... दूसरे राज्यों से आए सहपाठियों.. और महाराष्ट्र की ओजपूर्ण संस्कृति में कुछ दुर्लभ अनुभव मिले.. और इस अभिव्यक्ति में वे मेरे अध्यात्मिक अभिलेख ही नज़र आतें हैं| कभी दोस्तों के साथ.. नागपुर से सटे रामटेक.. कालिदास की काव्य-रचना मेघदूत की रामगिरी का अद्भूत दर्शन का होना.. तो कभी बगल के खिन्द्शि डॅम पे जाना| इंजिनियरिंग परीक्षाओं के समय.. नागपुर के हनुमान टेकरी.. तो पास के क्रिस्चियन लुर्ड माता मंदिर के चरण स्पर्श को जाना| फिर दोस्तों के साथ बाबा ताज्जुद्दीन की दरगाह का सूफ़ी स्पर्श.. तो पंजाबी मित्रों के साथ गुरुद्वारे पे मत्था टेक आना...| घर के बाहर मिले इन अनुभवों को आप क्या कहेंगे.. अपने जीवन का आध्यात्मिक अभिलेख ही ना..| चाहे पुनः अपने अर्ध-विकसित राज्यों की जड़ व्यवस्था मे आकर में इन आध्यात्मिक अभिलेखों को जगह मिले ना मिले... आपका मनो-विश्लेषण आगे बढ़ अपना नेतृत्व करता ही नज़र आएगा|
http://en.wikipedia.org/wiki/Radhanath_Swami
http://en.wikipedia.org/wiki/Tajuddin_Muhammad_Badruddin
...फिर जीवन मृत्यु के इस झंझावात में इस विस्मयकारी नुकसान को किस रूप में देखा जाए|
याद रहे की वो सभी मानवीय विधाओं में सर्वश्रेष्ठ इंजिनियरिंग संकाय के छात्र थे| अपने राज्य.. अपनी संस्कृति को छोड़ दूसरे राज्य और उन दृश्यों से जुड़ने आए थे.. जिन्हें वो जिंदगी भर की संपत्ति समझ अपने दिलों में सजो कर रख पाते| ... और शायद ऐसी अतुलनीय संपत्तियों को ही मेरे शब्दों में अध्यात्म कहतें हैं... और इंसानी ज़ज्बात आध्यात्मिक अभिलेखों के इर्द गिर्द ही मूर्त रूप लिए खड़ा नज़र आता है|
अगर प्रकृति के इन कड़वे सत्यों से खुद के अनुभवों को पिरोने की कोशिश करूँ तो.. अपने इस आध्यात्मिक वकालत को थोड़ा जीवंत कर सकूँ| इस संसार में सभों के अपने अपने मनो-विश्लेषण रहे हैं.. और फिर एक अणु की पुष्टि ही परम-आणविक समर्थन ले पाया है| इसी तरह कुछ... मैं भी जब अपने इंजिनियरिंग जीवन की यात्रा को घर से निकला था.. तो बहूत सारे पड़ावों से गुज़रते हुए.. आज जीवन के वृतांत पे आ रुका हूँ| जिस आध्यात्मिक अभिलेखों को देख पला-बढ़ा.. फिर वहाँ पहुँच कुछ नये अनुभवों से जन्मे अभिलेखों की रचना होते देख पा रहा हूँ| .... मेरे इंजिनियरिंग विद्यार्थी जीवन की मेरी पहली पाठशाला होती थी... कोलकाता सियालदह का रेलवे स्टेशन...| भारत के अति-व्यस्ततम रेलवे स्टेशनो में एक.. हज़ारों हज़ार की संख्या में एक साथ आते-जाते लोगो का रेला..| ...और इस अलौकिक दर्शन में मुझको लुभाता.. स्टेशन पे स्थित राम-कृष्ण मिशन का बुक स्टॉल..| ..और उस बुक स्टॉल पे उपलब्ध रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद आदि महान आध्यात्मिक आत्माओं का साहित्य संदेश..| वहाँ से नागपुर की ओर जाने और लौटते वक़्त वो जगह हमेशा ही मेरा मार्ग-दर्शन करती.. और वहाँ मिले कुछ अनमोल आध्यात्मिक व साहित्य कृतियों से मैं खुद को धन्य समझता| उस जगह से मेरी दोस्ती हो गयी थी... और बगल वाले एप्पल जूस सेंटर से भी...| घर से दूर होने पे भी... आपके इस आत्मीयता की वजह क्या होती है..| शायद इसलिए की आपके मनो-भावों को उकेरती जीवन के कुछ मूल्यों का दर्शन आपको सहज मिलती दिख जाती हो.. और आपकी भारतीयता और आपके सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े कुछ पक्षों की संपुष्टि भी हो जाती हो|
बचपन से मुझे जितना जुड़ाव मेरे बंगाली परिदृश्य में रह कर भी ना मिला था... कोलकाता से
होकर गुजरने वाली इन यात्राओं ने पूरी कर दी थी| कटिहार से हाटे-बाज़ारे एक्सप्रेस के लम्हों ने उन तानो को जोड़ने की कोशिश की... जो कभी शरत-रवीन्द्र साहित्य तो कभी सलिल चौधरी.. सचिन देव बर्मन.. काजी नज़रुल के संगीतों से निकले हों| अगर इस बीच कोलकाता दर्शन को कुछ वक़्त मिल जाए तो.. बेलुर मठ और ब्रिटिश राज के अवशेषों से खुद को अभिभूत कर पाता| एक बार तो कोलकाता प्रेसीडेंसी कॉलेज भी घूम आया था.. उस वक़्त वहाँ मेरा एक प्रिय मित्र जो पढ़ाई कर रहा था| बातों बातों मे ही पता चला की आज भी मेरे पूर्णिया के सतीनाथ भादुरी की "ढोढाय चरित-मानस" वहाँ पी.जी. कोर्स में चल रही है| ... जीवन में मिलने वाले ये कुछ ऐसे तत्वों से ही आपका अध्यात्म मिलता चला जाता है.. वहाँ राम का वनवास भी दिखता है तो पांडवों का अग्यात-वास भी..| फिर आध्यात्मिक अनुभवों के ऐसे धरोहरों को बचाने में.. मानवीकी चूक क्यों...!!!!
आध्यात्मिक अभिलेखों के इन कड़ियों में न जाने ऐसे कितने ही नाम हैं.. जिन्होने
समय समय पे भारतीय आध्यात्मिक प्रतिबद्धताओं पे अडिग रह.. अपने समाज, देश और विदेशों को एक नयी दिशा देने की कोशिश की.. और फिर इस विश्व-निर्माण में भी उन अमूल्य जीवन-यात्राओं ने ही विशेष योगदान भी दिया था| अपने नागपुर इंजिनियरिंग यात्रा में भी औरों के अनुभव की ही तरह... दूसरे राज्यों से आए सहपाठियों.. और महाराष्ट्र की ओजपूर्ण संस्कृति में कुछ दुर्लभ अनुभव मिले.. और इस अभिव्यक्ति में वे मेरे अध्यात्मिक अभिलेख ही नज़र आतें हैं| कभी दोस्तों के साथ.. नागपुर से सटे रामटेक.. कालिदास की काव्य-रचना मेघदूत की रामगिरी का अद्भूत दर्शन का होना.. तो कभी बगल के खिन्द्शि डॅम पे जाना| इंजिनियरिंग परीक्षाओं के समय.. नागपुर के हनुमान टेकरी.. तो पास के क्रिस्चियन लुर्ड माता मंदिर के चरण स्पर्श को जाना| फिर दोस्तों के साथ बाबा ताज्जुद्दीन की दरगाह का सूफ़ी स्पर्श.. तो पंजाबी मित्रों के साथ गुरुद्वारे पे मत्था टेक आना...| घर के बाहर मिले इन अनुभवों को आप क्या कहेंगे.. अपने जीवन का आध्यात्मिक अभिलेख ही ना..| चाहे पुनः अपने अर्ध-विकसित राज्यों की जड़ व्यवस्था मे आकर में इन आध्यात्मिक अभिलेखों को जगह मिले ना मिले... आपका मनो-विश्लेषण आगे बढ़ अपना नेतृत्व करता ही नज़र आएगा|
http://en.wikipedia.org/wiki/Radhanath_Swami
http://en.wikipedia.org/wiki/Tajuddin_Muhammad_Badruddin
वर्ष २००२ में चेन्नई विज़िट के दौरान वहाँ हमारे बिहार के रत्न और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के नाम पे बने हुए "राजेन्द्र भवन" को देखा था| जिस ज़मीन का अलॉटमेंट हमारे द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राजेंद्र बाबू की जीवित रहते ही.. उनके स्मृति चिन्ह सम्मान के लिए किया था| आज हमारे देश के हिंदीभाषी राज्यों से चेन्नई भ्रमण और इलाज के लिए आए लोगों की सेवा में ये भवन अपना योगदान देता आ रहा है| देश के हर राज्यों में देश के दूसरे राज्यों के प्रति ऐसे सकारात्मक पहल से ही हम ऐसे कितने ही कार्य-योजनाओं को एकीकृत कर सकतें हैं| फिर उस चेन्नई दर्शन में चेन्नई स्थित एक गुरुद्वारे में हुए लंगर के सामूहिक भोज में भी अपने दादाजी के साथ शामिल हुआ था| बड़े-बुजुर्गों के अनुभव भी तो आध्यात्मिक अभिलेख ही हैं| ...और फिर जब आज के बदलते माहौल में इन अभिलेखों पे किसी भी तरह का बर्बरतापूर्ण अतिक्रमण हो.. चाहे वो सामाजिक या राजनीतिक पृष्ठ-भूमि से निकले अवसाद हों तो.. कष्ट तो होता ही है..|
http://www.justdial.com/Chennai/deshratna-dr-rajendra-prasad-memorial-trust-%3Cnear%3E-Gopalapuram/044PXX44-XX44-110825122454-C1J5_BZDET?utm_source=adwords&utm_medium=codered
आज सभी प्रबुद्ध जीवंत यात्रियों के साथ घटित होते कुछ ऐसे ही संदर्भों के आध्यात्मिक अभिलेखों की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा..| हमारे देश की युवा-शक्ति ही हमारे कल का अध्यात्म है, इसके संवर्धन और समपोषण के लिए भी उचित नीति-निर्धारण तय किए जाने चाहिए.. जो किसी भी स्तर-हीन राजनीति से परे हो|
विप्र प्रयाग घोष
www.vipraprayag1.blogspot.in
www.vipraprayag2.blogspot.in
http://www.justdial.com/Chennai/deshratna-dr-rajendra-prasad-memorial-trust-%3Cnear%3E-Gopalapuram/044PXX44-XX44-110825122454-C1J5_BZDET?utm_source=adwords&utm_medium=codered
आज सभी प्रबुद्ध जीवंत यात्रियों के साथ घटित होते कुछ ऐसे ही संदर्भों के आध्यात्मिक अभिलेखों की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा..| हमारे देश की युवा-शक्ति ही हमारे कल का अध्यात्म है, इसके संवर्धन और समपोषण के लिए भी उचित नीति-निर्धारण तय किए जाने चाहिए.. जो किसी भी स्तर-हीन राजनीति से परे हो|
विप्र प्रयाग घोष
www.vipraprayag1.blogspot.in
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