..आ अब लौट चले ..यहाँ अब सब डिजीटल है
ब्रायन सिलास की धुने सज रहीं थी.. मुझे सजा रहीं थी.. आधे-अधूरे ही सही.. वॉक मैन के वॉल्यूम को थोङा धीमा कर.. अंग्रेज नवाबो की बस्ती में था। अब वे विरान पङे थे.. लोहे के दरवाजों पे लगे तालों के ताल में सोए हूए से। एक बूढे चौकीदार को देखा.. गेट की उस लाईट लैंप की बत्ती को साफ करते हुए.. वो वर्षो से यह करता आ रहा है.. कहता मेरे साथ ही इसकी रौशनी भी जाएगी..। पहले तो हर रोज यहाँ जलसा होता था.. मोलिन रुज था मोलिन रुज.. बङे-बङे लोग आते यहाँ..। ..अब एक यही तो है जो कहीं नही जाती.. नहीं तो बाकी चीजें आती जाती रहती हैं.. फिल्म वाले शुटींग को ले जाते हैं..। बङी मुश्किल मैने उसे अंदर ले जाने को मनाया.. थोङी बख्शीस भी दी। ..एक टूटे कांच वाली खिङकी से जो देख पाया था उस पियानो को.. फायर प्लेस के आगे.. बीच दीवार पे जंगली भैंसे का मुखौटा.. विन्टेज झाङ-फानूस.. शीशे बंद बङी सी वाल क्लॉक.. और पुराने पेंटिग्स.. हाँ. एक अजीब सी महक भी तो थी वहाँ..। वर्ष २००२ के ओशो आश्रम पूणे के बगल वाले इन ब्रिटिश कॉलोनियों से गुजरते वक्त याद आया था.. मेरे बचपन का डॉन बोस्को स्कूल और उसके पीछे वाला पीटर विलीयम का पुर्णियॉ वाला बंगला भी..। ..मगर आज अंग्रेज तो चले गए ..बस बदलते वक्त का डिजीटल छोङ गए..।
www.vipraprayag.blogspot.in
ब्रायन सिलास की धुने सज रहीं थी.. मुझे सजा रहीं थी.. आधे-अधूरे ही सही.. वॉक मैन के वॉल्यूम को थोङा धीमा कर.. अंग्रेज नवाबो की बस्ती में था। अब वे विरान पङे थे.. लोहे के दरवाजों पे लगे तालों के ताल में सोए हूए से। एक बूढे चौकीदार को देखा.. गेट की उस लाईट लैंप की बत्ती को साफ करते हुए.. वो वर्षो से यह करता आ रहा है.. कहता मेरे साथ ही इसकी रौशनी भी जाएगी..। पहले तो हर रोज यहाँ जलसा होता था.. मोलिन रुज था मोलिन रुज.. बङे-बङे लोग आते यहाँ..। ..अब एक यही तो है जो कहीं नही जाती.. नहीं तो बाकी चीजें आती जाती रहती हैं.. फिल्म वाले शुटींग को ले जाते हैं..। बङी मुश्किल मैने उसे अंदर ले जाने को मनाया.. थोङी बख्शीस भी दी। ..एक टूटे कांच वाली खिङकी से जो देख पाया था उस पियानो को.. फायर प्लेस के आगे.. बीच दीवार पे जंगली भैंसे का मुखौटा.. विन्टेज झाङ-फानूस.. शीशे बंद बङी सी वाल क्लॉक.. और पुराने पेंटिग्स.. हाँ. एक अजीब सी महक भी तो थी वहाँ..। वर्ष २००२ के ओशो आश्रम पूणे के बगल वाले इन ब्रिटिश कॉलोनियों से गुजरते वक्त याद आया था.. मेरे बचपन का डॉन बोस्को स्कूल और उसके पीछे वाला पीटर विलीयम का पुर्णियॉ वाला बंगला भी..। ..मगर आज अंग्रेज तो चले गए ..बस बदलते वक्त का डिजीटल छोङ गए..।
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