Tuesday, 22 October 2019

चहेते जगजीत सिंह की गजल फ्रेम से..🎶🎶🎙

१९८० के दौर में रीलिज होनें वाले बॉलीवुड फिल्मों के लाऊड स्पीकर वाले कान फोड़ू गानों से ठीक अलग कुछ गानें जो अक्सर रात के अंधेरे में हल्के से दस्तक दे जाते। एक कॉमन मैन कल्चर की जद्दोजहद के बीच खुद को तलाशती कितनी ही वजूदें अपने आशियाने में एक बड़े ही खुशमिजाजी से इन्हें पनाह दिऐ रहती। फिर उस वक्त के कुछ फेमस गानें जो दिन के शोर में आज भी बजते से लगते है.. "भँवरे ने खिलाया फूल फूल को.. ले गया राज कुँवर" "अरे कुछ नहीं है आता जब रोग ये लग जाता" फिल्म प्रेमरोग के गानें तो जैकी श्रॉफ स्टारर हीरो फिल्म का "तु मेरा जानु है" और पेंटर बाबु का "पेंटर बाबु आई लव यु"... लेकिन इन गानों से बिल्कुल अलग इंसानी जज्बातों की अंदरूनी कशीश से पिरोयी फिल्म प्रेमगीत, अर्थ और साथ-साथ के गानें और उन फिल्मों के कुछ कॉमन से दिखने वाले कलाकार। बिना किसी रॉक-स्टारनुमा राग आलाप के आखिर ऐसे फिल्मी कलाकार.. लाईफ के कौन से स्टोरीलाईन से निकले किरदारों को निभा रहे थे। क्या एक सभ्य सोसाइटी बिना किसी शोर गुल के इसी प्रकार रहती है.. मुस्कुराती और गाती है। आज भी फारुख शेख, नसीरूद्दीन शाह, कुलभूषण खरबंदा, स्मिता पाटील, शबाना आजमी, दीप्ति नवल जैसे उम्दा कलाकार एक खूबसूरत ख्यालों के इन नज्मों की फेहरिस्त में ही कसे हुए दिखते हैं तो फिर इन्हें इस फिराक में गुलफाम बनाने का काम किस आवाज ने किया था.. तो जेहन में सिर्फ और सिर्फ़ जगजीत सिंह की रुमानी आवाज ही सबसे पहले कौंधती दिखती है। "होंठों से छु लो तुम" फिल्म प्रेम गीत.. "झुकी झुकी सी नजर" "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो" "तेरे खुशबू में बसे खत" फिल्म अर्थ और फिर फिल्म साथ-साथ का "प्यार मुझसे जो किया तुमने" "तुमको देखा तो ये ख्याल आया" जैसे वो तमाम गानें जिन्होने तब के भारतीय मिडिल क्लास लोकेशन वाले दिलों पे अपना झंडा बुलंद किया था।

उस दौर में ये सबकुछ कुछ ऐसा था कि तब के दौर के फिल्मों में गजलों का होंना एक सुपरहिट ऐलिमेंट जैसा था.. और फिर इन्हीं कुछ वजहों से बाद की बाजार, निकाह और उमराव जान जैसी लखनवी अंदाज वाली फिल्मों में सुप्रसिद्ध गजल गायक गुलाम अली के साथ नए उभरते गजल गायक तलत अजीज, भूपिंदर सिंह, पंकज उधास के गाऐ गजलें भी फिल्मों में हाथों हाथ ली गई। बाजार फिल्म में लता मंगेशकर का गाया "दिखाई दिऐ यूं".. भूपिंदर का "करोगे याद तो".. और तलत अजीज का "फिर छिड़ी रात.." आज भी जगजीत सिंह की सुपरहिट अर्थ और साथ-साथ फिल्म के साथ एक कम्पलीट कौम्बो पैक के रुप में याद आती है। निकाह फिल्म में गुलाम अली का कैटेलिस्टिक "चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है.." भी अपने वक्त की माईलस्टोन बनी नजर आती है तो बाद के दिनों में पंकज उधास की गायी नाम फिल्म की सुपरहिट "चिट्ठी आयी है आयी है चिट्ठी आयी है"। १९८१ में आयी उमराव जान की एक गजल "जिंदगी जब भी तेरी बज्म लाती है हमें" तलत अजीज का गाया हुआ.. या यूं कहें इतने सारे समकालीन गजल गायकों के होते हुए भी.. इन सभों के बीच से जगजीत सिंह की गजलें जिस तरह से फिल्मी सर्किट से होती हुई एक मिडिल क्लास कॉमनमैन कल्चर की सौगात बन पायी.. ये खुद में बेमिसाल ही है।

वर्ष १९८८-८९ मेरी बड़ी बहन का कॉलेज में आने के बाद धीरे-धीरे जगजीत सिंह के म्यूजिकल एल्बम कैसेट्स बढते ही चले गए.. या यूं कहें उस वक्त भारतीय युवा वर्ग जगजीत सिंह के गजलों की चादर ओढे ही सोता था। वेस्ट में माईकल जैक्सन था तो भारत में जगजीत सिंह का कल्चर बन निकला था। मेंहदी हसन के बाद अब जगजीत सिंह और साथ में कुछ तलत अजीज के एल्बम कैसेट्स के तादाद भी बढते चले गए.. लेकिन फिर मेरे आरंभिक कॉलेजिया दिनों में जगजीत सिंह की गजलें मानों एक रियल जगत जीतने की तलाश में निकल पड़ी हो। "..एक ब्राह्मण ने कहा है कि ये साल अच्छा है" "..अब मैं राशन की कतारों में नजर आता हूँ" वस्तुत ऐसे एक्सपेरिमेंटल एट्रिब्यूट्स ही जगजीत सिंह को टकराते पैमानों की दिलकश महफिल से निकाल आज की बदलते भारत की सरजमीं पे गजल गायकी के एक मसीहा के रुप में स्थापित कर पाऐ। इनके एल्बम कैसेट्स मुबारक मौकों पर आर्चीस गैलेरी की ग्रीटिंग कार्डों के साथ एक गिफ्ट के रूप में एक विशेष मुकाम हासिल कर चूकी थी.. गजल गायकी का पॉपुलर कल्चर के रुप में इस कदर आगे बढ निकलना अपने तरह का एक आध्यात्मिक सूफिज्म नहीं तो और क्या है!!

https://youtu.be/JbwY0RIV7jo #JagjitSingh

- Vinayak Ranjan 

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