Tuesday, 23 September 2014

" दुर्गाशक्ति, दशहरा, दशानन... इति विश्‍वरूपम...!!! "

मौसम ने फिर दश्तक दे दी है| नयी शक्ति लिए माँ जग को जगा रही है| हम अंधेरे में ही जागने की कोशिश कर रहे है| पौ फटने के पहले फूलों को बटोर रहे हैं, की माँ के चरणो में इसे अर्पित तो करूँ, जीवन के भ्रम को थोड़ा तो दूर करूँ...| ऐसा ही है माँ दुर्गा की शक्ति और दुर्गा पूजा का पावन पर्व| हम सभो के लिए कुछ खाश| साल भर के जोश को मानो यहाँ पुनर्जन्म मिल जाती हो| फिर आज भी साथ अगर अपना बचपना हो तो फिर कहना ही क्या...!!! बचपन के रोमांच को फिर हम दोबारा तो जी नहीं सकते, लेकिन समय समय इसे उकेर तो सकते ही हैं| दुर्गा पूजा की हलचल तो महीने पहले से ही दिख जाती है|जो घर पे हैं तो घर के साफ सफाई का ख्याल, जो घर से दूर हैं उनके अपने घर जाने की हौसला आफजाई का ख्याल भी तो बराबर रखना पड़ता है| माँ दुर्गा की शक्ति है ही ऐसी, आप खुद में रह ही नहीं पाते| आज भी महालया के आते ही याद आता है, पिताजी का रेडियो को ठीक सुबह ४ बजे ही महालया पाठ के लिए ऑन कर देना|


फिर तरह तरह के फूल जिनमें हर-शृंगार, अर्हूल और भी ना जाने कितने फूलों को तोड़ पौ फटते ही दोस्तों के साथ घर को वापस आना| फिर दोस्तों के साथ मधुबनी पूर्णियाँ के ठाकुर बारी में बन रहे माँ दुर्गा की प्रतिमा को देखने जाना| सुबह सुबह ही माँ का पूजा घर को सजाना, पुरोहित जी का दुर्गा पाठ के लिए आना, फिर सामूहिक पुष्पांजलि के साथ शंख और घंटों को बजाना... वास्तव में यही तो है दुर्गा शक्ति का आहवान करना और इनके समीप जाना| फिर ज्यों ही सप्तमी, अष्टमी, नवमी के जागरण को हम देखते हैं, दुर्गा शक्ति स्वरूप दशहरा उत्सव में परिणत हो उठती है| फिर नये नये वस्त्रों में मेले की ओर निकलना| पूजा पंडालों में माँ दुर्गा के विहंगम स्वरूपों का योग होना, वहाँ मिले प्रसादो का भोग, फिर मेले में कुछ खरीद-दारी कर घर को वापस आते हैं| खिलौने, मिठाई और तरह तरह के व्यापार भी होते हैं|  देखते ही देखते ये उत्सव एक महोत्सव का रूप ले लेती है|



फिर इस महोत्सव में सभी संप्रदायों के लोग एक साथ... क्या बूढ़े क्या जवान और क्या बच्चे... अपने नये स्वरूप.. विश्वरूप को धारण कर दशानन " रावण" वध के द्वंश का भी तो आनंद लेते हैं| बुराई पे अच्छाई की जीत का भास कर अपने अपने घर को लौटते हैं.... और फिर उस महोत्सव के विश्वरूपम की छाया को लेकर ही अपने विश्व-कर्म की ओर निकल पड़ते हैं...

|| इति दशहरा... इति विश्व-रूपम...||

विप्र प्रयाग 

No comments:

Post a Comment