हाल के दिनो में ही प्रदर्शित संजय लीला भंसाली की फिल्म " गोलियों की रास-लीला... राम-लीला" देख रहा था.. की फिल्म के दृश्यों में बड़ी खूबसूरती से फ़िल्माई गयी कुछ बॅक-ग्राउंड पैंटिंग्स पे नज़लें ठहर सी गयी...| अरे ये तो राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स हैं.. मन ही मन मैं चहक पड़ा। फिर तो अगले कुछ दृश्यों से लेकर लगभग समूचे फिल्म में ही.. उनकी पेंटिंग्स छाई रही..| मेरा मन मानो फिल्म की विषय-वस्तु को छोड़ बीते दिनो की उन अमूल्य कृतियों को देखने में ही लगा रहा| ...कुछ पलों के लिए लगा आख़िर क्यों आज भी इन कला-कृतियों की कद्र बनी हुई है... फिल्म मेकिंग के स्तरहीन संवाद और मंचन में इनकी मौजूदगी.. किस सूत्र-धार का काम कर रही है..| इसका सटीक जवाब बस यही है की आज भी हमारे वेद और पुराणो में संग्रहित पौराणिकता अपने दिव्य ढाल लिए हमें संरक्षित कर रही है|

करीब आज से तीन-चार साल पहले फ़ेसबुक पे एक रिटाइर्ड फ़ौज़ी ने मेरी कलात्मक रुझानो को देख... राजा रवि वर्मा के नाम की फ़ेसबुक पेज बनाने का रिक्वेस्ट भेजा था..| ये नाम मेरे लिए अपरिचित सा था.. सो मैं नाम को गूगल पे सर्च किया.. तो दंग रह गया.. की अब तक मैं भारत के महानतम चित्रकार के नाम से परे था..| लेकिन फिर उनकी बनाई रामायण और महाभारत की कुछ दुर्लभ चित्रों की अनुभूतियों का स्पर्श तो मैं बचपन से ही करता रहा हूँ... गीता प्रेस गोरखपुर से निकली कल्याण मासिक पत्रिका के सौजन्य से..| प्रख्यात फिल्मकार और टीवी सीरियल के जरिए देश में एक क्रांति लाने वाले रामानंद सागर ने जब ‘रामायण’ सीरियल बनाया था तो उस समय तक लोगों ने हिंदू देवी-देवताओं का जीवंत और वास्तविक रूप पहले कभी नहीं देखा था.... तब इस सीरियल ने लोगों पर काफी प्रभाव छोड़ा था। इतिहास में कुछ इसी तरह का माहौल उस दौर में भी देखने को मिला था जब विश्वविख्यात चित्रकार राजा रवि वर्मा ने भारतीय साहित्य और संस्कृति के पात्रों का चित्रण किया था। चित्रकार राजा रवि वर्मा पहले भारतीय चित्रकार थे, जिन्होंने पश्चिमी शैली के रंग-रोगन-सामग्रियों और तकनीक का प्रयोग भारतीय विषय वस्तुओं पर किया। उनकी चित्रकारी ने हिंदू देवी-देवताओं की ऐसी अद्भुत छवियां पेश करनी शुरू की, जैसी पहले कभी नहीं की गई थीं| http://en.wikipedia.org/wiki/Raja_Ravi_Varma

भारतीय इतिहास में राजा रवि वर्मा का नाम ऐसे चित्रकार के रूप में लिया जाता है जिन्होंने पश्चिमी शैली का प्रयोग कर भारत के मिथकीय चरित्रों में अपनी कल्पना के सुंदर रंग भरे. शुरुआत में उनकी कलाकृतियों को लोगों ने स्वीकार नहीं किया लेकिन बाद में कई लोग उनकी चित्रकारी शैली से काफी प्रभावित हुए. उन्होंने अपनी चित्रकारी में सरस्वती, दुर्गा, नल-दमयंती तथा दुष्यंत-शकुंतला जैसे पौराणिक चरित्रों पर आधारित देवी-देवताओं के चित्र खूबसूरती से उकेरे. उनकी चित्रकारी शैली को अगर देखें तो यह बिलकुल ही यथार्थ चित्रण से हटकर है. उन्होंने अपनी कला को बेहद ही सीमित दायरे में रखा। कला के इस महान आचार्य ने अक्टूबर 1906 में दुनिया से अलविदा कह दिया. भारतीय चित्रकला में उनके योगदान को देखते हुए केरल सरकार ने उनकी याद में राजा रवि वर्मा पुरस्कार शुरू किया जो प्रति वर्ष कला एवं संस्कृति के क्षेत्र की किसी होनहार शख्सियत को दिया जाता है। राजा रवि वर्मा की बनाई पेंटिंग्स में जो सबसे प्रसिद्ध पैंटिंग रही.. वह थी " Lady in the Moon - Light .. " http://ravivarma.org/
आपकी सभ्यताओं पे हमले होते ही रहेंगे.. और शायद तभी हम आज के समाज में कलाकारों का घोर अभाव देख रहें हैं| मानवीय संवेदनाओं का प्रसफूटन रुक सा गया है... अपनी नैसर्गिक कला और प्रतिभाओं को दिखाने वाले मैदान ही नज़र नहीं आते.. तो.. ओजस्वी मदन कहाँ मिलेंगे... तो शायद "गोलियों को रासलीला.. रामलीला" की जगह "राजा रवि वर्मा की चित्रलीला.. रामलीला.." ही दिखने को मिल जाती..|