Wednesday, 4 June 2014

परीदृश्य हरण....


कुछ दिनो पहले ही इस अलौकिक पौराणिक चित्र को गूगल सर्च के दौरान देखा| फिर इसे फ़ेसबुक पे अपडेट किया... पहली प्रतिक्रिया कुछ इस तरह आई की ये महाभारत के द्रौपदी चिर हरण का दृश्य रहा हो.. मैने झट इसका उत्तर दिया की महाशय ये देवी सीता का भूमि प्रवेश है| ...फिर पल भर के लिए जो विचार मन में आए की... आख़िर इस दृश्य पे जो प्रतिक्रिया आई.. आख़िर उन्होने इस दृश्य में क्या देखा... और क्या न देखा जो मैं देख पा रहा हूँ| झट में राम को दुशाशन बना दिया... या फिर  आज के भारत में महाभारत ने रामायण को पीछे छोड़ा... या फिर प्रतिकिया देने वाले का रामायण के पक्ष में अल्प ज्ञान..|

कुछ क्षणो के लिए मैं भी यहाँ रुकता हूँ..........



.....मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम में.. राम ने भी न जाने कितने त्याग किए होंगे| कठिन परीक्षा की बलि वेदी पे कितने कठोर निर्णयों पे अड़े होंगे| फिर माता जानकी का सारे कर्मो के बाद... मोह त्याग... जाना फिर अपने उत्सर्जन का मार्ग..| कुछ लगा मानो देवी सीता भी जिस शक्ति लिए इस धरा को आई.. राजा जनक के घर... फिर उसी शक्ति को समा गयी|

कुछ ऐसे ही विचार कौंधे थे... बक्सर 2013 के मेरे कार्यानुभव में| एक बार इंजिनियरिंग कॉलेज के ही एक संघतीया प्राइमरी स्कूल के डेवेलपमेंट प्रोग्रेस के सिलसिले में बगल के गॉव जाने का मौका मिला था| वहाँ पढ़ रहे गॉव के छोटे छोटे बच्चे और उन सभो को पढ़ाती गॉव की ही शिक्षिकाएे...| उस जगह के लिए एक अच्छी पहल थी| पढ़ाने वाली शिक्षिकाएे... कुछने  इंटेरमेडिएट कर रखा था.. तो कुछ ग्रॅजुयेशन कर रही थी| फिर उस जगह से कॉलेज आने के बाद मैने अपने कॉलेज संचालक से कहा की... आज ये गॉव की बेटी हैं.. और खुद पढ़ और पढ़ा भी रही हैं... कालांतर भी क्या वो अपनी   इस उर्जा और ज्ञान को सन्चरीत और संवहित कर पायेंगी| ...... फिर  क्यों न हम आज की   इन सीताओं को भी यहीं शक्ति-वाहिनी बना दें| मेरे मन में नारी सशक्तिकरण के प्रति एक बृहत विहंगम भाव उमड़ता दिखाई दिया| और संभवतः इस लिए भी.. क्योंकि भारत के ऐसे रूढ़िवादी प्रदेशों में ऐसे पहल की सख़्त आवश्कता है| ...और खास कर वैसे प्रदेशों में जहाँ आज भी मानसीकता राजशाही की चादर ओढ़े हुए है| किसी गॉव को अगर आप सुबह सुबह जाने की कोशिश करें.. तो या तो खुद की नज़र बचाते जायेंगे... या नाक बंद किए| आज भी शौच- प्रावधानो का उचित प्रबंध ऐसे प्रबुद्ध प्रदेशों में भी देखने को नहीं मिलता... खास कर महिलाओं के लिए.... और वो भी वैसे प्रदेशों में.. जिन प्रदेशों ने पौराणिक काल से ही भारत वर्ष को दशा और दिशा दोनो देने का काम किया है|

अपने २००३ के अहमदाबाद गुजरात आवास के दौरान, एक बार वहाँ के एक शिल्पकार के साथ एक सम्म्रिध गुजराती परिवार के घर पे गया था... उस घर में उसकी बनाई प्लास्टर ऑफ पॅरिस के कुछ नमूनो को देखने| घर में प्रवेश करते ही लगा, की किसी मंदिर में आ गया हूँ.. सब कुछ व्यवस्थित सा..| उस घर के मालिक जो अपने वृद्धावस्था में थे.. उनसे कुछ बातें हुई..| पता चला वो वहाँ अकेले ही रहते हैं.. मैं काफ़ी आश्चर्य में था..| फिर सामने की दिवाल पे दो तस्वीरें नज़र आई.. बिल्कुल सादगी भरी..| उन्होने ने बताया.. ये उनकी दो बेटियो की तस्वीरें हैं..| मैं थोड़ा सहम सा गया..| फिर उन्होने ने बताया.. उनकी बस दो ही संताने हैं... और दोनो बेटियों ने माउंट आबू स्थित ब्रह्म-कुमारी पंथ को अपना जीवन-दान दिया है..| मैं हैरान था.. इस उम्र में इस मार्ग को जाने की क्या विवशता हुई| आज के सन्दर्भ में जहाँ ये बहूत सारे प्रश्नो का हल है तो... भारत के पौराणिक भू-भागों में इन शोध-विषयों को दरकिनार नहीं किया जा सकता..|

महिलाओं के प्रति हुए कुछ घृणित अपराध आज भी अपना असर बनाए हुए हैं... ज़रूरत है.. राम को पहचानने की.. रामायण खुद बनता नज़र आएगा|


विप्र प्रयाग घोष

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