केदारनाथ धाम पे आए महा-सूनामी को अब एक वर्ष होने को आए| कल रात ही डिस्कवरी चॅनेल पे उस भीषण त्रासदी पे एक डोकुमएंट्री आ रही थी| फिर तो अब नई सरकार के आने पे भारत की आत्मा गंगा नदी की साफ सफाई के वादे भी पूरे जोरो पे किए जा रहें हैं| ऐसा नहीं की ऐसे वादे पहली बार ही किए जा रहे हैं| इनके पहले भी कितनी सरकारें आई और गयी... राम तेरी गंगा मैली के नाम पे कितने ही कयास लगाए तो.. इसके संरक्षण को भी कितने ही प्रयास किए गये| फिर हम एक नई उम्मीदों के साथ इसके मैलेपन को धोने का बस प्रण ही करते दिखाई दे रहे हैं| कुछ विशेषणो के साथ आज की गंगा को.. कल की विशुद्ध गंगा में बदलने हेतु ... इसके कुछ दुर्लभ परिदृश्य में जाकर ही हम... आने वाली पीढ़ियों के लिए... अपने सफल परिणामों को हासिल कर सकते हैं|
गंगा पे भारत में न जाने कितनी ही फिल्में बनी| १९८४-८५ की एक भोजपुरी फिल्म याद आती है.. जिसका नाम था " गंगा किनारे मोरा गॉव"... उस फिल्म का एक गाना था.. " गंगा किनारे मोरा गॉव हो... घर पहुँचा दे देवी मैया.."| वो गॉव अब मिलता नहीं... न ही वो आवाज़..| मुझे आज भी याद है... गंगा नदी के उस जल-पूर्ण फैलाव की.. जब मैं अक्सर भागलपुर जाता था.. पूर्णिया से अपने दादाजी के साथ..| गंगा नदी के तट को देखने की इच्छा पूरी यात्रा के थकान को महसूस होने ही नहीं देती थी| उस समय भागलपुर जाने के लिए आज का विक्रमशिला सेतु नहीं था| हम या तो पूर्णिया से मोटर बस से या फिर कटिहार से ट्रेन द्वारा बिहपुर पहुँचते... फिर बिहपुर से भगवानपूर घाट का ट्रेन से अद्भुत सफ़र..|
ग्रामीण जन-जीवन का विहंगम दर्शन...| याद है... उस स्वाद का जो वहाँ की फिश फ्राइ और रोटियों में मिलता था| मेरे दादाजी, मेरे इस स्वाद को भाँप गये थे.. और हर बार मुझे उस लज़ीज़ स्वाद का सुख मिलता रहता| वैसे स्वादों की कल्पना बस आप उस परिदृश्य में ही कर सकते हैं| फिर गंगा घाट पे आकर "स्टीमर" नदी के जहाज़ का घंटों इंतेज़ार..| फिर घाट पे मिलने वाले फलों में ककरी और खीरा का स्वस्थ स्वाद...| वो वक़्त स्टीम इंजनो का ही था... चाहे वो गंगा के घाट वाली Narrow Gauge ट्रेन हो या.. पानी पे चलने वाले जहाज़...|
जहाज़ का आकार टाइटॅनिक जैसा तो नहीं... पर वो तो मेरे बचपन का टाइटॅनिक जहाज़ ही था..| आज के गंगा नदी को देख आप उस फैलाव की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं| हां, उस विहंगम भाव की पुष्टी हुई थी... जब मैं २००५ में IIT Guwahati के ट्रैनिंग के दौरान ब्रम्हपुत्र नदी के फैलाव को देखा था.. और उन बड़े जहाज़ों को भी जो कभी भागलपुर के घाटों पे भी देखी जाती थी| एक बार तो हॉलीवुड
फिल्म Pirates of Caribbeans के तर्ज़ पे काढ़ागोला घाट से कहलगॉव जाते वक़्त पानी के जहाज़ पे हुई डकेती की वारदात भी याद है| उस जमाने की ऐसी घटनाओं से ये समझा जा सकता है की... गंगा घाटों पे बसे सभ्यताओं को जोड़े रखने में इस नदी की भागीदारी कितनी रही होगी|
भागलपुर के घाटों में छोटी खंजरपुर के एक घाट को बचपन में बहूत करीब से देखा था| रोज सुबह और शाम वहाँ जाता था... सुबह जहाँ उस घाट पे नहाने के बाद बगल के शिव मंदिर में पूजा कर घर को लौटता.. तो शाम को फिर गंगा की लहरों को निहारने चला जाता... फिर दूर से आते पतवार वाले नावों का समूह... और साथ ही पंछीयों का मंदिर के प्रांगण वाले पीपल के पेड पे लौटना...| अब वर्षों बाद उन घाटों पे कोई नहीं जाता... बस घरों से निकलने वाली नालियों का रुख़ घाट लगे कूड़े करकटो को भिंगोने का काम करती है... नदी का रुख़ भी कटाव के कारण.. घाटों से से कहीं दूर जाता दिखाई देता है... मन का देवदास अब इन घाटों को रोचता नहीं... न तो पारो अपनी गगरी ले पनघट को जाती ही है| घर को लौटते मांझीयों के गीतों को अब सुनने वाला कोई नहीं.. बस बीच मंझधार में फँसते होड़ में... इनसे पार उतरने के कयास लगाए जाते हैं|

आज फिर से गंगा के प्रति नये सरकार की आस्था जहाँ उनके भविष्य में किए जाने वाले कार्यों की Forward Chaining समीक्षाओं से है तो...कल के Backward Chained Knowledge Bank को भी नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता...| २००६-०७ में पटना से कटिहार ट्रेन से आने के दौरान हमारे बगल वाले सीट पे कुछ रिटायर्ड प्रबुद्ध जनो को एक साथ बातें करते देखा था| उनकी बातों की गंभीरता से पता चला की वो गंगा नदी पे होने वाले सुधार और इससे जुड़े पक्षो पे बातें कर रहे थे| फिर मैने कुछ हिम्मत कर अपना परिचय भी सभो को दिया... और उनके समक्ष खुद को ले जाने का साहस बटोर पाया| बातचीत में पता चला वो भारत सरकार के वरिष्ठ रिटायर्ड अफ़सर थे.. जिन्हें नीतीश कुमार बिहार सरकार ने गंगा में लाने वाली कुछ सुधारात्मक प्रक्रियाओं के सिलसिले में कोलकाता और गुवाहाटी से पटना बुलाया था| गंगा बचाओ अभियान और डॉल्फ़िन संरक्षण से जुड़ी बहूत सारे रोचक तत्थयों की जानकारी मिली... तो अपने स्वाद से जुड़ी एक रोचक तथ्य भी... की अगर गंगा नदी में पाई जाने वाली दुर्लभ मछलियों का प्रवास फिर से बंगाल की खाडी से लेकर इल्लहाबाद तक होने लगे.. तभी समझो की गंगा पुनर्जीवित हो पाई| मछलियों का खारे पानी से लेकर मीठे जलश्रोत तक जाने की इस जीवन चक्र को ही.. गंगा में आए सुधारात्मक कार्यों का द्योतक माना जाए| तब ही गंगा नदी के किनारे बसी सभ्यताओं का पुनर्गठन भी हो पाएगा|
http://www.fao.org/docrep/007/ad525e/ad525e0f.htm
इति गंगा जलम.....
Vinayak Ranjan
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