Tuesday, 10 June 2014

मेघदूतम.. मॉनसूनम.. क्लाउड कंप्युटम...

एप्पेल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स के लेखों को पढ़ ही रहा था की... अचानक कल रात तेज आँधियों के साथ बारिश होने लगी| फिर अपने कमरे की खिड़कियों को बंद करने के बाद सहसा ख्याल आया की.. मॉनसून तो अभी केरल के तटों पे ही है.. फिर इस बारिश को क्या कहूँ.. क्या नाम दूँ...| लेकिन जो भी है ये... है तो वैसी ही अवधारणायें लिए.. बिल्कुल मॉनसून की प्रखर प्रतिछाया..| फिर स्टीव जॉब्स के लेखों को लेकर आगे बढ़ा ही था की... उन लेखो से निकला एक शब्द " क्लाउड कंप्यूटिंग"... हिन्दी शब्द रूपांतरण में इसे " मेघ संगणना" के रूप में जाना जा सकता है| फिर तो जैसे.. मुझे कुछ दिख सा गया हो... बाहर तेज़ बारिश में मेघों की गरगराहट और हाथों में क्लाउड कंप्यूटिंग विज्ञान.. और फिर कुछ आगे बढ़ते इससे जुटता दिखा महाकवि कालिदास का मेघदूतम संज्ञान भी...| रात के अंधेरे में मिले कुछ ऐसे ही अंतर्मनो को निर्देश देता स्वर मिल ही गया| 

जहाँ महाकवि कालिदास ने मेघदूत में मेघों के माध्यम से विरही मनो के संप्रेषण को अभिभूत किया तो... प्रकृति-पूर्ण मेघो से लबालब मॉनसून ने भारतीय काया को अपने आगमन से निरंतर जीवन देने का... तो ज्ञान विज्ञान के इस कड़ी में स्टीव जॉब्स ने भी क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक द्वारा नये आयामो को छूने का ही काम किया| इसे महज आध्यात्मिक सूफिज़म की अनुभूतियों से ही समझा जा सकता है की... स्टीव जॉब्स एक अमेरिकन होते हुए भी अपने अविष्कारों से दुनिया को बाँधने का काम किया.. तो मॉनसून की भारतीय अभिव्यक्ति भी तो सभी वर्णो.. वर्गो और धर्मों से परे नज़र आती है| महाकवि कालिदास की अद्भूत रचनाओ को भी तो विश्व के महान कवियों और साहित्यकारों का मत प्राप्त है| 


 फिर आज चाहे वो कालिदास की दिव्य रचना मेघदूत हो.. या प्रकृति-पूर्ण मॉनसून का आगमन... या स्टीव जॉब्स संचारित क्लाउड कंप्यूटिंग की गति.. अपने अपने काल-खंडों और जीवन-चक्र से निकल कर आती ऐसी रचनाओं ने मानव जीवन की औषधियों का काम ही किया है| इस संबंध में अपने इस लेख को अपने प्रोफेशन से जुड़ी क्लाउड कंप्यूटिंग पे ही केंद्रित रखना चाहता हूँ.. मेघदूतम और मॉनसून की फुहारें खुद-ब-खुद मिलती चली जाएँगी...

एपल के सीईओ स्टीव जॉब्स जब भी किसी मंच पर आते थे , तो दुनिया चौकन्नी हो जाती थी.. की न जाने इस बार वो कौन सा उपकरण दिखाएंगे जिससे लोगों की जिंदगी बदल जाएगी। आखिर एपल वही कंपनी है, जिसने हमें आईपॉड, मैकिंटोश और आईफोन जैसे उपकरण दिए हैं। उपकरणों के साथ उन्होने ऐसी सर्विस भी दी.. , जिससे लोग अपना सारा डाटा और जानकारी विभिन्न उपकरणों पर एक तरह से रख सकते हैं। चाहे वो फोन का इस्तेमाल कर रहे हों या टैबलेट का या अपने डेस्कटॉप कंप्यूटर का ... उनको वह जानकारी और सॉफ्टवेयर प्राप्त हो सकता है। एपल की इस सर्विस का नाम था आईक्लाउड। लेकिन यह असल में एपल की नहीं, बल्कि क्लाउड कंप्यूटिंग की शक्ति दर्शाती है। सर्विस का नाम कोई भी हो, सर्विस देने वाला चाहे एपल हो, या गूगल, या माइक्रोसॉफ्ट... लेकिन आने वाले दिनों में क्लाउड कंप्यूटिंग की धूम रहेगी और  हमारी जिंदगी बदल देगी ।  आखिर यह क्लाउड कंप्यूटिंग है क्या बला, और इसने दुनिया पर ऐसा कौन सा जादू कर दिया है कि सब इसके भक्त हो गए हैं... ठीक बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह महाकवि कालिदास की रचनायें.. " अभिज्ञान शाकुनतलम".. "मालविकाअग्निमित्रम".. "मेघदूतम" ने आज तक भारतीय साहित्य कोष को अपने दिव्य उपस्थिति से भिंगोये रखा और मानव मन थोड़ा मॉनसून रूपी तृप्त धारा में बह निकला| 

अगर आप सोच रहे हैं कि क्लाउड कंप्यूटिंग बादलों से संबंधित है, तो आप एकदम सही सोच रहे हैं। बस इतना याद रखिए कि इन बादलों में पानी नहीं, बल्कि डिजिटल डाटा- तरह-तरह की जानकारियां तथा उनसे संबंधित अन्य सामग्री भरी होती है। और ये बादल आकाश में नहीं, बल्कि काफी विशालकाय कंप्यूटरों पर... जिन्हें सर्वर कहते हैं ... पाए जाते हैं। क्लाउड कंप्यूटिंग की बात आजकल कुछ ज्यादा हो रही है, पर यह कोई नयी चीज नहीं है। अगर आप इंटरनेट पर गए हैं, तो जाने-अनजाने आपने भी इसका इस्तेमाल किया होगा। विश्वास नहीं होता
तो ई-मेल जैसी साधारण सी इंटरनेट सेवा का उदाहरण ले लें... ज्यादातर लोग ई-मेल अपने कंप्यूटर पर डाउनलोड नहीं करते, बल्कि इंटरनेट पर देख कर वहीं छोड़ देते हैं। आखिर कौन अपने कंप्यूटर के हार्ड ड्राईव को ई-मेल से भरना चाहता है? पर आपने कभी यह सोचा कि यह ई-मेल जो आपने इंटरनेट या वेब पर छोड़ रखी है, आखिर कहां सहेज कर रखी जाती है, ताकि आप जब चाहें तब अपने ई-मेल अकाउंट में जा कर उसे देख लें। जवाब सीधा सा है -क्लाउड पर। आपको शायद यह पता न हो, लेकिन आप लगभग जब भी कोई चीज वेब पर छोड़ते हैं, तो वह डाटा के इन बादलों पर ही रखी जाती है। चाहे वो फेसबुक पर कोई चित्र हो, यू -ट्यूब पर कोई विडियो, या आपके ब्लॉग पर कोई नया लेख। अगर वह आपने वेब पर छोड़ा है तो आप क्लाउड कंप्यूटिंग का प्रयोग कर रहे हैं...  कुछ उनही भावों के तरह..  जिस तरह मान्सून अपनी प्रखरता से आम जन-जीवन.. नदी नालों को मानवोपयोग हेतु  सतत् पाटने का काम करती है तो साहित्य कोष भी अपने अनमीत संचरण से विस्मित मानव मन के सतत ढाल का काम ही करती नज़र आती है.. कुछ कुछ क्लाउड कंप्यूटिंग विज्ञान की ही तरह... |


     कंप्यूटिंग कार्य पद्धति में आपने देखा ही होगा कि आप जो  भी content इंटरनेट पर छोड़ते हैं, उसे किसी भी कंप्यूटर या सेलफोन या टेबलेट जैसे उपकरण पर देख सकते हैं। इसके लिए ऐसी कोई बंदिश नहीं होती कि उस चीज को देखने के लिए एक विशेष प्रकार के उपकरण का ही इस्तेमाल किया जाए। आखिर आप अपनी ई-मेल या फेसबुक का हाल ऑफिस और घर के कंप्यूटर या अपने फोन से भी जान सकते हैं। यही है क्लाउड कंप्यूटिंगकी सबसे बड़ी शक्ति और विशेषता...। यह आपको इंटरनेट पर रखी अपनी सामग्री या डाटा कहीं से भी, कभी भी देखने और बदलने की क्षमता देता है। शुरू-शुरू में क्लाउड कंप्यूटिंग को मात्र वेब पर स्थित एक डाटा भंडार माना जाता था, लेकिन आज इसकी क्षमता इतनी है कि कई विशेषज्ञों के अनुसार आगे यह आपकी
डिजिटल जिंदगी का केंद्र होगा। यह परिवर्तन आया है ऐसे सॉफ्टवेयर की बदौलत जो कंप्यूटर पर नहीं, बल्कि वेब या इंटरनेट पर चलते हैं। कुछ साल पहले किसी सॉफ्टवेयर को इस्तेमाल करने का मतलब होता था उसको अपने कंप्यूटर या सेलफोन पर डाउनलोड करना। इसके बाद वह सॉफ्टवेयर केवल उसी कंप्यूटर या सेलफोन पर चलाया जा सकता था। आज क्लाउड कंप्यूटिंग के जरिये आप वैसे ही सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर सकते हैं, बिना कुछ डाउनलोड किये हुए, लगभग किसी भी उपकरण -फोन, टैबलेट, कंप्यूटर या यहां तक कि टीवी से भी। समझ लीजिए कि क्लाउड ने आपके कंप्यूटर की जगह ले ली है। आप उस पर काम कर सकते हैं, उस पर अपने दस्तावेज, चित्र, विडियो इत्यादि रख सकते हैं और जब भी चाहें किसी भी उपकरण से उनको देख और बदल सकते हैं। 

          उदाहरण- स्वरूप आम तौर पर हम कंप्यूटर पर दस्तावेज बनाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस नाम के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं जिसे हमें कंप्यूटर पर डालना पड़ता है और जिससे बनी फाइलें और सामग्री हमें आम तौर पर कंप्यूटर पर ही छोड़नी पड़ती हैं। अब देखिए, गूगल के गूगल डॉक्स को, जो पूरी तरह इंटरनेट पर चलता है और आपको लगभग वही सुविधाएं देता है जो आपको माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस से मिलती हैं, डाउनलोड करने की कोई जरूरत नहीं है। इससे बनी फाइलें और दस्तावेज इंटरनेट पर ही रहेंगे, जिन्हें आप किसी भी कंप्यूटर या सेलफोन पर देख सकते हैं।  संसार की दर्जनों कंपनियां क्लाउड कंप्यूटिंग के दम और लाभ को देखते हुए इसका उपयोग करने की कोशिश कर रही हैं। रोचक बात यह कि कई क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विस मुफ्त प्राप्त हो सकती हैं।  जैसे-जैसे वेब पर चलने वाले सॉफ्टवेयरों
की संख्या बढ़ती जाएगी, वैसे-वैसे हम चलने लगेंगे डिजिटल बादलों की तरफ । हमारा काम खास उपकरणों पर नहीं, बल्कि हमारे इंटरनेट कनेक्शन पर निर्भर करेगा। जहां इंटरनेट होगा, वहीं हम काम कर पाएंगे या अपना मन बहला सकेंगे। चाहे हमारे पास कंप्यूटर हो या टैबलेट, या सेलफोन, या टीवी, या गेम कंसोल, या इंटरनेट से संपर्क करने वाली एक घड़ी ही क्यों न हो। आपका काम और मनोरंजन होगा, जहां भी इंटरनेट होगा। वह किसी उपकरण से बंधा नहीं होगा।...और फिर उन्मुक्त हो ऐसे ही भाव लिए अपने जीवन की साहित्य कोष की अनुभूतियों को भी यदा कदा थोड़ा जी पाएगा| 

आज क्लाउड कंप्यूटिंग के इस विषय पे लिखते ही भारतीय दर्शन में रचा मन अपने शब्द सम्मिलन लिए  बादलों की उत्कट छाया  मॉनसून के आगमन को.. तो साहित्य सम्राट कालिदास रचित मेघदूत की उत्कृष्ट छवियों को आज भी भारतीय मानस पटल पे उकेरने का प्रयास कर रही है| आज चाहे वो अपनी प्रेयसी से दूर बैठा कालिदास का यक्ष हो.. या मॉनसून की वृष्टि-छाया की आशाओं में लालायित भारतीय किसान..या फिर स्टीव जॉब्स के सपनो से भी आगे जाता हमारे आज का क्लाउड कंप्यूटिंग विज्ञान.. आध्यात्मिक सूफिज़म से उपजे ऐसे अंतलेखों को भारतीयता के साथ मुस्तैदी से जोड़े रखना ही होगा... की कहीं कुछ रोचक मिल जाए..

http://in.reuters.com/article/2014/06/09/uk-india-monsoon-idINKBN0EK15P20140609
http://rajaniyer.blogspot.in/2008/02/kalidas.html
http://www.sanskritebooks.org/2010/10/meghadutam-of-kalidasa-with-sanskrit-commentary-english-translation/

भारत के ऐसे पौराणिक और सीमांतीय राज्यों के कॉलेज और तकनीकी संस्थानो में आज भी ऐसे प्रारूप तैयार नहीं हैं.. की उनके लाइब्ररी में पौराणिक और साहित्यिक विधाओं से जुड़ी लेखों का संग्रह मिल सके.. सच मानिए यह भी कुछ क्लाउड कंप्यूटिंग विज्ञान को धरातल पे लाने ही जैसा है|



विप्र प्रयाग घोष 

www.vipraprayag1.blogspot.in
www.vipraprayag2.blogspot.in

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