Wednesday, 10 October 2018

प्रतीक्षा..



"..इट्स अर्जेन्ट" आपका आभारी देवदत्त राय।

पढते ही हैरान था कि कैसे समय के साथ एक एक कर सब गुम हो जाते हैं.. आपकी आईडेन्टिटी, पुरानी पहचान, विश्वास, मन की लगन, चुस्त दुरुस्त हेल्थ.. पुराने कॉन्टैक्ट्स, दोस्त, महफिल.. लेकिन नहीं बदलते तो ये इंटरनेट वाले ईमेल आईडी.. आखिर ये कैसे जिंदा रह गया अब तक..!!

[बीते दिनों की ढेर सारी कारगुजारियाँ एक एक कर दृश्य-पटल पे उभरने सी लगी]

..काश की पुरानें टेलिफोन नंबरों व ऐडरेस के साथ ये भी गुम हो गए होते। नंबर मिले ना मिले.. मगर जिंदा मिले इन ईमेलों के तरह आज का सोया इंसान भी कहीं ना कहीं जीता-जागता मिल ही जाता है। तमाम डिफरेंसेज.. ताम-झाम.. परेशानियाँ.. सब के सब एक झटके में गायब। आपकी तमाम कोशिशों.. एक अॉनेस्ट वर्क-प्रोफाइल का तब तो.. हुजूरे आला की नजरों में कोई मेल न था.. और अब जाके भेजते हैं ईमेल।

[कैफे से निकल हल्की बुंदाबांदी से बचते अपना छाता निकाला और खुद में बक बक करते निकल पड़े फिश मार्केट की ओर..]

  एक आवाज पीछे से जो आयी.. "दादा.. चाय पत्तियों का नया स्टॉक आया है.. आईऐ ना.. आपके आने का ही इंतज़ार कर रहा था कल से.."

[फिश मार्केट जाने वाली गली के मुहाने पे ही एक चाय का स्टॉकिस्ट]

"अरे हारुन भाई.. अब भी क्या टेस्ट बचा है अपना.. अब तो उमर पचास पार हो गई भाई.. ये पान खाते खाते तो वो जी का टेस्ट भी गया औऱ हुनर भी.. ऐसे आज तो लेट हो गया.. १२ बजने को हैं.. कल सुबह आऊँगा.. ऐसे ये बताओ स्टॉक असम वाला लाऐ हो कि दार्जीलिंग वाला.. वैसा ही मुड बनाकर आऊंगा ना"

[ दादा अपने दिनों में दार्जीलिंग के एक फेमस टी कंपनी में कार्यरत थे। स्टेट मैनेजरी के साथ एक माहिर टी टेस्टर होने का नाम शुमार था इनका..]

"..देखो रोमा ..इलिस नहीं मिला जो ये कातला लाया हूँ ..आज थोड़ा लेट हो गया कैफे में ..अच्छा तुमने कुछ खाया था कि नहीं ..मुझे लेट हो तो खा लिया करो ..आज पढा कि ज्यादा खाली पेट रहने से ही स्टोन होता है"

[दादा रोज ऐसा ही किया करते.. अपनी गलतियों को नॉलेज ज्ञान से नहला दिया करते.. और धर्मपत्नी रोमा सबकुछ समझती लेकिन कुरेद ही जाती]

"..क्या कर रहे थे कैफे में इतनी देर तक ..इधर से देखती हूँ डेली जाने लगे हो ..इतना ही शौक है तो एक वाय फाई इंटरनेट कनेक्शन ही ले लो ..अरिंदम भी कब से बोल रहा है ..घर पे एक वाय फाई कनेक्शन ले लो ..घर बैठे ही माँ बाबा से लाईव विडियो चैटिंग हो जाया करेगा उसका और फिर ये डेली इंटरनेट कैफे जाकर टाईम वेस्टिंग से भी तुम बचा करोगे"

"कैफे नहीं है वो रोमा.. कन्टेन्टमेंट की जगह है मेरे लिए.. संतुष्टि मिलती है मुझे.. केबिन में कुछ देर ही सही खुद में तो रहता हूँ.. आज भी मैं मैनेजर ही लगता हूँ.. अपना केबिन और अपने फरमान.. और फिर डेस्कटॉप कम्प्यूटर की बात ही अलग है.. मुझे ज्यादा सुट करती है.. याद है मेरे टी स्टेट वाले दिनों में जब पहली बार एक कम्प्यूटर आया था तो उसे मेरे केबिन में ही रखवाया था.. दत्त साहब ने.. और फिर एक बार गर्मियों की छुट्टी में जब अरिंदम को साथ लिए तुम वहाँ आयी थी.. उस वक्त अरिंदम कुछ पाँच- छ: साल का रहा होगा.. तो सबसे पहले पेंट ब्रश से एक चाय के पत्ते को बनाया था उसने.. मेरे उस कम्प्यूटर पे.."

"हाँ.. याद है उस समय तक तो सब ठीक ही था.. वहाँ.. एकदम ही पीसफुल था सबकुछ.."

"और फिर.. मेरी केबिन के सामने वो शीशे वाली बड़ी सी खिड़की और ऊँचे ढलानों पे दुर जाता चाय का बागान.. अरिंदम उस खिड़की से लगे टेबल पे खड़ा हो सबकुछ कितना देर तक निहारा करता.. और फिर बादल भी तो खुद में समेट लेते उस मंजर को.."

"हाँ, अरिंदम खुब एन्जोय किया उन दिनों को.. और फिर वहाँ के फुर्सतों में मेरे हाथ भी कितने चला करते थे.. खुब हाथ से बीन बीन के स्वेटर पहनाया था तुम दोनों बाप बेटे को।
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..चलो अब हो गया आज के कोटे का टी स्टेट चालीसा कि और भी कुछ बाकी है ..जाकर जल्दी से फ्रेश हो जाओ ..चावल दाल रेडी है ..बस अब जल्दी से फिश फ्राय करती हूँ।"

"गीजर अॉन तो है ना!!"

"नहीं.. अॉन कर लो.. पता है इस बार बिजली का बिल कितना आया है.. और बिल जमा करने का लास्ट डेट भी कल तक ही है.."

[कुछ देर बाद..]

"..हाँ क्या कहा था तुमने ..बिजली का बिल और फिर वाय फाई लगवाने में बिल नहीं आऐगा ..बस यही होगा ना कि तुम घंटों बैठे बेटे से बातें किया करोगी और फिर दो तीन दिन बाद मन भी भर जाऐगा.. जैसे अरिंदम को घंटो फुर्सत रहती है वहाँ.. कभी सिंगापुर तो कभी न्यूयार्क.. अरे अब उसके लायक लड़की ढूँढना चालू करो.. पता चला लाईव चैट करते करते वहीँ कोई सिंगापुरी बोमाँ से तुम्हें दर्शन भी करवा दे.."

"नहीं.. नहीं.. ऐसा नहीं है वो.. मैं जानती हूँ उसे.. और वो भी मुझे अच्छी तरह समझता है.."

"अब वो हमारा जमाना गया.. जब मेरे डैड तुम्हें देखने गए थे नदी पार करके.."

"..तो क्या गलत किया था ..एक मैनेजर को कौन दुर की राजकुमारी मिलने वाली थी ..फिर बाबा तो बहुत अच्छे थे ..तुम लकी थे कि तुम्हारे डैड इतने अन्डरस्टैंडिंग नेचर के थे.. नहीं तो पड़े पड़े वही की एक चाय वाली मिलती तुम्हें.."

"चाय वाली से क्या मतलब.. जहाँ जॉब हो तो वहीं रहना पड़ेगा ना.. और फिर तुम भी पढी लिखी थी.. मैने कब रोका तुम्हें.. तुम भी तो यहीं रही माँ बाबा के साथ.. सबकी अपनी अपनी जिम्मेदारियाँ हैं.. और फिर ऐसी सोच से ही सब ठीक भी रहा"

"..हाँ मेरा बीएड एम एड हो गया इस कारण ..नहीं तो प्राईवेट जॉब को कौन जाने.. चलो खाना रेडी है ..आ जाओ।"

[खाने के टेबल पे..]

"..आज पता है लौटते वक्त एक आर्ट गैलरी दुकान पे एक पेंटिंग दिखी ..ठीक वैसी ही पेंटिंग जैसा मैने भी कभी बनाया था अपने टी स्टेट वाले उस हट में ..खूब पेंटिंग्स बनाया करता था खाली समय में ..कभी कभी रात हो जाती तो मेस से खाना वहीं मँगवा लेता ..पता नहीं इतने सालों बाद किसके देखरेख में होगा वो सब.."


  "इतनी ही चिंता लगी रहती है तो घूम क्यों नहीं आते एक बार.. और फिर वहाँ होगा भी कौन? तुम्हारा तो एक अच्छा खासा समय बीता हैं वहाँ.. दत्त साहब अभी कहाँ रहते हैं.. अब तो उम्र भी हो गई होगी उनकी.. उनका एक लड़का तो लंदन में था ना.. और उनकी एक लड़की भी तो थी.. अक्सर परेशान रहा करते थे दत्त साहब.."

"..अअ हाँ.. हाँ.. पर तुम्हें ये सब कैसे पता?"

"..तुमने ही तो बताया था.. वहाँ से वापस आने के बाद.. फिर तुम्हें भी तो हटा दिया था.."

"..हटाया नहीं था ..मैनें ही रिजाईन की थी ..हटाया होता तो !!"

"..तो क्या ..फिर तो तुम गए ही नहीं दुबारा"

"..हाँँ रोमा ..हम करना कुछ चाहते और हैं ..हो कुछ और जाता है ..और फिर खुद का विश्वास ही तो है जो जीये जाता है कभी रिजाईन नहीं देता ..और फिर जब समय ही नकाब ओढ ले तो नकाबपोशी में सब कुछ झुठला ही दिया जाता है।
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...बोलो तो मैं उठूं ..दही है क्या फ्रिज में!!"

"..हाँ है ..देती हूँ ..रात ही जमाया था ..अरिंदम भी खूब पसंद करता है दही ..कल ही बोल रहा था ..मिल तो जाता है वहाँ भी पर घर वाला टेस्ट कहाँ!!"

"..इसलिऐ तो कहता हूँ उसके टेस्ट का भी ख्याल रखो ..नहीं तो आज के डेट में बच्चे समझौते को जीने लगते हैं।"

"..चुप करो ..ऐसा कुछ नहीं होने वाला"

"..कतला ताजा था आज का ..मजा आ गया ..अब नींद अच्छी आऐगी"

"..शाम को हो सके तो बेकरी से ब्रेड और टोस्ट लेते आना"

"..ओके मैडम"

[ हर दिन की तरह डेली रुटीन के एक पहर की स्वस्थ प्रक्रिया का संध्या काल में प्रवेश कुछ ऐसा ही होता था मिस्टर एंड मिसेज सोहम सेन के घर.. फिर शाम को थोड़ा ईवनिंग वाक् ..कॉफी हाउस की गपबाजी और लोकल न्यूज का पूरा ब्योरा लिए हाथ म टेलीग्राफ न्यूज पेपर व डेली निड्स के कुछ सामानों के साथ घर को वापसी..]

"सुनती हो सान्याल साहब मिले थे कॉफी हाउस में.. तुम्हें याद कर रहे थे.. उनकी लड़की आ रही है कल पुणे से.. वहाँ के फर्ग्युशन काँलेज से मास कम्युनिकेशन में मास्टर्स कर रखा है.. बहुत खूश थे.. उनकी वाईफ भी तो थी ना तुम्हारे साथ स्कूल में.."

"हाँ.. हाँ.. वो तो अभी शायद प्रिंसिपल हो गई हैं.. हाँ याद है उनकी लड़की संयुक्ता नाम है उसका.. बड़ी प्यारी है.. अरिंदम से तो दो तीन साल की ही छोटी है.. दोनों एक ही रिक्शे में तो स्कूल जाते थे"

"..हाँ सान्याल साहब बता रहे थे दुर्गा पूजा में तुम्हारे पार्टिशीफेशन के बारे में.. खूब ड्रामा प्ले होता था उस वक्त"

"..हाँ टाईम भी मिल जाता था और फिर अरिंदम भी काफी कुछ सीखा था वहाँ के ड्रामा प्लेज से.. और फिर गिटार सिखने तो वो वहीं जाता था हर एक संडे.. दुर्गा बाड़ी में ही एक मास्टर साहब आते थे ..फिर नाईन्थ टेन्थ के बाद तो सब छूट ही गया उसका.."

"..मैं जो आ गया था उस वक्त ..फिर वो टाईम भी इम्पोर्टैंट था उसके लिए ..मैथ साईंस के कितने कन्सेप्ट ईजी कर दिऐ थे मैने"

"..हाँ वो तो है ..तुमसे दुर तो था ही और फिर आते ही तुम टीचर बन गए थे उसके"

"..टीचर क्या बना था ..याद है जब तुम्हारा बीएड कम्प्लीशन पे था ..उसे छोड़ आई थी मेरे पास ..और उसके वो दो-तीन महिने फादर अगस्तस स्कूल के ..बस उन्हीं नन्हीं यादों को जीता गया था मैं ..अरिंदम के वहाँ से लौट जाने के बाद भी अक्सर चला जाता था स्कूल कैंपस में.."




  "..हाँ था तो वो भी एक फेमस स्कूल ..हाई प्रोफाइल लोगों के बच्चे ही थे उस स्कूल में"

"..आज भी वैसा ही होगा ..वो तो दत्त साहब को सबलोग वहाँ जानते हैं इसलिये अडमिशन हो पाया था उस वक्त ..लेकीन जो भी हो वो तीन महीने मैं खूब एन्जॉय किया था ..बिल्कुल ही डिफरेंट प्रोजेक्ट था मेरे लिए और वो भी तुम्हारे बगैर"

"खुब घूमें थे बाप बेटा दोनों.. इतनी फोटोज् हैं उस वक्त की.. मैं तो कहीं नजर ही नहीं आती हूँ। आते वक्त तो एक अटैंची पुरा एल्बम से भरा था तुम दोनों का.."

"..हहा ..दत्त साहब भी फैन हो गए थे इसके ..रोज इसे बुलाकर केक खिलाते थे और फिर एक डॉक्टर भी डिपूट किये थे ..बोलते थे बच्चों के हेल्थ से कोई समझौता नहीं अगर माँ पास में ना हो तो ..क्या पर्सनालिटी थी उनकी और एक दार्शनिक भाव में डूबे सिगार गुर गुराते रहते"

"..मुझे तो वो सत्यजीत रे ही लगते ..जब भी उनसे मिली तो डर ही लगता मुझे ..जैसे उनके जेब से हीरे को निकाल भागने आयी हूँ"

"..ऐसे तुम्हें मानते तो बहुत थे बिल्कुल अपनी बेटी की तरह ..काश की तुम वहाँ रह पाती ..उन्हें अच्छा लगता था जैसे उनका अपना बेटा ही हो बोमाँ के साथ ..उनका बेटा तो लंदन ही रह गया और बेटी भी दूर ही थी उस वक्त "

"..अब तो कोई होगा ना साथ में"

"..पता नहीं ..मैं तो अब कुछ सोचता भी नहीं हूँ वहाँ के बारे में ..बस कुछ अच्छी भावनाऐं आज भी हैं साथ में
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..और हाँ वो जगह ..जहाँ से अरिंदम टॉय ट्रेन देखा करता था ..मैं रोज उसे वहाँ लिए जाता था ..खूब एन्जॉय करता था ..एक दिन पूछ बैठा "डैडी हमारे पास टॉय ट्रेन क्यों नहीं है घर जाने को?" "ये जीप हैं ना!!" "तो फिर भी इससे स्टीम क्यों नहीं निकलती है" हहाहा.. ढेर सारे सवाल थे उसके पास" "इसलिये उन तीन महीनों में मैने उसे आसपास की बहुत सारे प्वाइंट दिखाऐ.. ये सब जरुरी है क्रियेटिविटी जो बढती है।"


" हाँ याद हैं उसके कोश्चीयन अनसर्स.. सुनों खीर बना रही हूँ आज रात को.. सब्जी में क्या खाओगे।"

"ज्यादा कुछ नहीं.. कद्दु की हल्के मशाले में सब्जी बना लो और साथ में पराठे हो सके तो.. और फिर फिश भी तो होगा ना फ्रिज में"

"..वो अब कल खाना ..खीर के साथ ठीक नहीं रहेगा"

[खाने के बाद शयन कक्ष में]

"..सो गई क्या?"

"..नहीं तो ..बोलो कुछ बात है क्या?"

"..नहीं इधर से मन ठीक नहीं लग रहा ..सोचता हूँ अरिंदम कुछ दिनों के लिए आ जाता तो ठीक रहता ..बहुत दिन हो गए ..गये हुऐ उसके ..वो भी मेरी ही तरह है नेचर लवर ..कहाँ दूर कंक्रिटनुमा शहरों में माथापच्ची करता होगा।"

"..हाँ ऐसा तो तुम सोचते हो ना ..सबके अपने चैलेंजेस हैं लाईफ में ..कमी तो मुझे भी खलती है
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..और सुनों मैं तो बताना ही भूल गई थी ..कल शाम को छोटी मासी आ रही है ..आज फोन आया था"

"..ओह तुमने मुझे बताया नहीं और उनका पैर का दर्द तो ठीक है ना ..नहीं तो आज सान्याल साहब बता रहे थे एक तेल के बारे में ..तुम्हें भी लाकर दुंगा ..बोल रहे थे काफी ईफेक्टिव है।"

[कुछ देर बाद..]

"रोमा.. सो गई क्या?"

"..बोलो"

"..रोमा आज सुबह से ही मैं थोड़ा बेचैन सा हूँ"

"क्यों.. क्या हुआ.. सब ठीक तो है ना!!"

"..हाँ ..ठीक तो है ..लेकिन आज वर्षों बाद मुझे दत्त साहब का ईमेल मिला"

"क्या बोल रहे हो.."

"..हाँ ..मुझे तो समझ में ही नहीं आ रहा ..बस इतना लिखा था कि बीते वर्षों में तुम्हारी कमी काफी खली.. स्वास्थ्य भी बहुत ठीक नहीं रहता है ..हो सके तो एक बार आ जाओ ..इट्स अर्जेन्ट"

"ओ माय गॉड.. फिर तो वो तकलीफ में हैं.. इसलिये इधर से मुझे भी बहुत कुछ वहीं का याद आ रहा था.. और फिर तुम तो अभी भी वहीं के हो.. यही टेलेपैथी है ..तो फिर क्या सोच रहे हो"

"..सोचना क्या है ..तुमसे पूछ रहा हूँ ..क्या करना ठीक रहेगा?"

"..तुम्हारा तो मन ही वहाँ से जुड़ा हुआ है ..नहीं जाओगे तो हमेशा तुम्हें सताऐगा ..और फिर तुम आज जो कुछ भी सपोर्ट ले पा रहे हो वहीं की वजह से ..क्या करोगे अब.."

"..वही अबतक तो नहीं सोच पाया था ..लेकिन कल जब मासी आ रही है तो सोचता हूँ सुबह की ट्रेन पकड़ निकल ही जाऊं"

"..तो फिर ऐसा ही करो ..मैं चार बजे का अलार्म लगा देती हूँ ..ट्रेन तो मिल ही जाऐगी ना सुबह में"

"..हाँँ ..और सुनों थोड़ा निमकी भी पैक कर देना और सत्तु के पराठे भी"

"..हाँ हाँ ..हो जाऐगा ..तुम कल वहाँ जा रहे हो सुनकर मुझे ही शांति मिल रही है और हाँ अपना कैमरा मत भूलना ..अरिंदम ने जो लाकर दिया है और छाता भी ले लेना.. टॉर्च भी.. मेडिसिन्स मैं प्लास्टिक वाले डब्बे में बैग के साईड में रख दुंगी.. अब सो जाओ ..गुड नाईट"

"..हूं गुड नाईट"


[..सुबह के चार बजने को ही हैं और मैं बज उठूंगा ..फिर मिसेज सेन किचेन को जाऐंगी और मिस्टर सेन अपने बैग को कसते नजर आऐंगे ..मैं भी कुछ दिनों के लिए फ्री हो जाऊंगा ..फिर हाल फिलहाल कोई नया अलार्म सेट नहीं किया जाऐगा ..मैं भी टिक टिक करता अपने अंदाज में चलता चला जाऊँगा और ये भी अपने रास्ते ..बिल्कुल आजाद  ..जब तक आमने सामने हैं तब तक एक फिक्र मौजूद रहेगी दोनों के बीच ..और फिर दूर जाते ही एक बेफिक्री की हुनरमंदी भी गले आ लिपटेगी .. बस एक इंतजार ..जो आने को है  ..ट्रिंग ट्रिंग ..ट्रिंग ट्रिंग ..ट्रिंग ट्रिंग 🔔🔔🔔 ]

"उठ गए.. चाय बनाऊँ.."

"..हाँ ..नींबु वाली चाय बनाना"

[कुछ देर बाद..]

"..वो मेरी स्केच बुक और पेंसिल्स कहाँ पे है ..मैने तो यहीं आलमीरे में रखी थी"

"..वहीं पे होगी ..बुक्स के नीचे वाली रैक पे देखो ..फिर इन्हें कहाँ लिए जाओगे ..इतना वक्त मिलेगा तुम्हें"

"..फिर कभी क्या जा पाऊंगा वहाँ!! ..और हाँ मेरा माऊथ अॉर्गन।"

"..वो शो केश में है ..मफलर जैकेट और कैप हैंड बैग में रख दी हूँ ..और जमायन भी एक शीशी में है ..ज्यादा पान वान मत खाना बाहर की ..जरुरत पड़े तो जमायन फाँक लेना।"

"..तीन चार सेट कपड़े ले लिया हूँ ..और कैमरे की बैटरी चार्ज तो है ना"

"..लो हो गई होगी तो अब ट्रेन में चार्ज कर लेना ..चार्जर भी साथ ले ही लो ..मोबाईल का चार्जर मत भूलना ..लंच साईड वाले चेन पॉकेट में है और तुम्हारा बन्नी भी रख दिया है ..हहा"

"बन्नी भी रख दिया.. याद था तुम्हें ..टू गुड ..चाय अच्छी बनी है और सूनो अरिंदम को बता देना मेरे इस विजीट के बारे में ..वो खुश हो जाऐगा।"

"..हाँ बता दूंगी ..बस अपना ख्याल रखना।"

[..और कुछ घंटे बाद मिस्टर सेन अपने सफर में थे ..बीते दिनों की मैनेजरी ठाठ को पुख्ता करने ..थोड़े हताश भी ..इतने दिनों बाद अब तो दस साल होने को आऐ ..और फिर अपने एसी चेयर कार में बैठे चौंक से पड़े]

"..कैश ट्रांसफर हो गया है तुम्हारे एकाउंट में ..वापसी पे भी मेरी ही मोहर लगेगी ..रिजाईन तुम्हारा है मेरा नहीं ..नाऊ लीव पिसफुली वीद योर फैमिली" दत्त साहब के वो अंतिम बोल थे..

[ट्रेन खुले दो ढाई घंटे हो चूके थे और सूबह की टूटी हूई नींद भी पूरी हो चूकी थी.. नौ दस बजे की तेज सनलाईट को देखने जैसे ही उन्होंने पर्दे को हटाया कि..]


[ चाय बगान का हरा भरा नजारा सामने था.. वर्षों बाद उनका पुराना कवर निकल सा रहा था.. सर घुमा घुमाकर उस चलते मंजर को बदस्तूर देखे जा रहे थे.. जैसे कोई पहचानने वाला बाहर खड़ा इशारा कर रहा हो.. फिर जैसे एक हाथ हैंड बैग की ओर बढा और मफलर के साथ प्रिंस कैप निकाल लाया.. अचरज में इधर उधर देख धीरे से अपने मैनेजरी रोल में आते दिखे.. फिर आँखों से अपना पावर ग्लास हटा पूरानी कीमती रे बैन के काले ग्लास वाले फ्रेम को बनती नई तस्वीर में उतार दिया.. और बचते बचाते कैमरा मोड अॉन कर लगे मोबाईल में देखने.. फिर भला कुदरती मार से कौन बच पाऐ इन निकलते सफेद बालों के सैडो फिल्ड में ..ब्लैक एंड व्हाइट के कशमकश में दिली जज्बे छुपाऐ.. छुक छुक..]

"..सेन ..स्टेशन गेट से निकलते ही ठीक सामने रोड के दुसरी तरफ जो चाय की दुकान मिलेगी ना तुम्हें ..तुम सीधा वहाँ आ जाना कहना रॉय टी एस्टेट को जाना है ..अपना ही खास आदमी है वो" रह रहकर दत्त साहब की आवाज मानों कौंध सी जाती।

[ सेन साहब भी पुराने यादों में खोऐ.. कभी अपनी पहली जॉय्निंग को याद करते तो फिर एक अच्छे खासे लंबे अनुभव को आँखें बंद किऐ खोये चले जाते.. फिर अचरज इस बात की भी.. कि इतने दिनों बाद एक बदले माहौल में कौन पहचानेगा उन्हें.. बिल्कुल खामोशी से नए वक्त से सामना करने के लिए थोड़ा खुद को फेश एंड शूट एट्टीट्युड की सेल्फ पोजिशनिंग करते तो.. थोड़ा खुद को साईक्लॉजिकल रिचार्जिंग देते..]


[..ट्रेन अपने स्टेशन को रुकते ही ..मफलर को अपने नाक के थोड़ा उपर सरका के प्रिंस कैप को इंटैक्ट कर आँखों के साथ मिजाज को दुरुस्त किया और गॉगल्स लगा अपने बैग को लिए सेन साहब स्टेशन पे आ उतरे.. और बाहर की ओर निकलने वाले एग्जिट गेट की ओर चल दिऐ..]

"..देखो ये मेरा इलाका है ..इस बात का ध्यान रखना ..तुम्हारे हर कदमों पे अब मेरी ब्रांडिंग है ..ब्रांडिग मेरी रॉयल्टी तुम्हारी ..इसके इजाफे में ही हुनरमंदी है ..फिर मुझे हुनरमंद लोग ही ज्यादा पसंद हैं.."

[दत्त साहब के ऐसे गाईड लाईनें ही सबक थी जो आज भी दिलो दिमाग पे जमी बैठी थी.. हर उस सफर में जो यहाँ से आगे की मंजिल को लिए जाती हैं..
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..स्टेशन से निकल नजरें सीधी सामनें की ओर जा टिकी ..मगर ये तो बिल्कुल ही खाली सी थी ..पहले कितने फास्टफूड, चौमिन व मोमोज की दुकानें हुआ करती थी.. सामने वाली चाय के दुकान के आजु बाजू.. मगर अब तो हरे भरे रंग बिरंगे फूलों के गार्डन सजे पड़े हैं.. सामने वाली वो चहल पहल गुम सी हो गई थी.. अॉटो व टैक्सी वालों की आवाजें.. गाड़ियों के हॉर्न गायब से थे.. ]

" ऐ कूली...!!!"

"..जी साब जी"

"..सुनों ये अॉटो टैक्सीवाले कहाँ मिलेंगे ..पहले तो यहीं मिला करते थे ना"

"..ओ साब जी ..किधर से अया साब ..ये तो पाँच छ: सालों से वो.. मेन रोड के इधर नो इंट्री को हुआ ना ..अब तो टैक्सी सोब उदर ई खड़ा रहता ना ..उदर जाना है साब जी छोड़ दुं"

"..नहीं नहीं ..मेरा लगेज ही कितना है
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..अच्छा ये बताओ वो सामने जो चाय की एक दुकान थी शेरपा की ..वो कहाँ गई और वो जॉनी की सिगरेट शॉप.. कुछ बता सकते हो"

"..कितने दिन बाद आऐ हो साब जी ..मैं तो इधर चार पाँच सालों से हूँ ..शेरपा तो नहीं मालूम साब जी ..हाँ वो सिगरेट शॉप वहीं आगे है ..टैक्सी स्टैंड के पीछे"



[कुछ कदम चलने के बाद.. जॉनी सिगरेट शॉप..]

"..सुनों हैमलेट है!!"

"..क्या समझा नहीं ..क्या चाहिए सर"

"..हैमलेट है ..हैमलेट सिगार"

"नहीं.. वो तो नहीं आती इधर अब.. दुसरी ब्रांड दुं.."

"..ये तो जॉनी की दुकान है ना ..बाहर नाम तो वही लिखा है"

"..हाँ ..नाम तो वही है ..वो इतना फेमस जो था"

"..था!! था.. का क्या मतलब.. तुम जॉनी के कोई रिलेटिव हो क्या??"

"..नहीं ..मैं उसका कोई नहीं ..उसके मरने के बाद मैं ही इस जगह पे दुकान चला रहा हूँ। वो इतना ही फेमस था.. इस जगह पे कि मैने जॉनी सिगरेट शॉप ही नाम रख लिया।"

"..जॉनी कब ..कितने साल हुऐ?"

"..यही कुछ नौ दस तो हो ही गए सर"

"..ओह नो"

"..आप जॉनी को जानते थे सर!!"

"..अ ..हाँ हाँ ..अक्सर आता था ना यहाँ मार्केटिंग के सिलसिले में ..तो कभी कभार उसके साथ ही शामें गुजरा करती थी। वो स्टेशन के सामने थोड़ी बगल हटके.. वहाँ सारी दुकानें हुआ करती थी तब।"

"..फिर तो आप एक अच्छे अर्से से इस जगह को जानते हैं।"

"..हाँ कुछ ऐसा ही समझ लो। और.. वो चाय वाली दुकान.. शेरपा नाम था उसका.. वो कहाँ पे है? कुछ जानते हो?"

"..अरे हाँ ..सर जी। हर एक शाम आता है ना वो इधर.. अब तो वो भी थोड़ा पागल हो गया है सर जी.."

"..क्या??"

"..हाँ सर जी ..शाम को यहीं सामने बैठ माउथ अॉर्गन बजाता है तो लगी भीड़ से कुछ पैसे मिल जाते हैं ..लेकिन बहुत शानदार आदमी था ऐसा यहाँ के पुराने लोग बताते हैं ..टी स्टेट में भी अच्छी पकड़ थी उसकी ..लेकिन पता नहीं क्या हुआ!!"

"..उसके तो तीन चार बेटे थे ना!!"

"..हाँ है ना ..बाकि तीन तो बाहर चले गए ..एक छोटा वाला है जो टी स्टेट की गाड़ी चलाता है।"

"..क्या टी स्टेट!! अच्छा एक काम करो.. मुझे उसके घर का लोकेशन बता सकते हो।"

"..हाँ सर जी ..मैं बताता हूँ ना आप इत्मिनान रहिऐ ..आप बैठना चाहें तो टूल दुं।"

"..नहीं नहीं रहने दो।"

"..चाय वाय मँगवाऊं सर जी!!"

"..हाँ हो सके तो।"

"..हाँ सर जी ..जो चाय लेकर आऐगा ना उसी लड़के को आपके साथ लगा दुंगा ..वो लेता जाऐगा शेरपा के घर पे। अच्छा सिगार कौन सी दुं सर जी.."

" अच्छा गुरखा ही दे दो.. अब कुछ तो यहाँ के जाने पहचाने नाम ही मिल जाऐं.. नहीं तो सारी चीजें एक एक कर गुम होने में लगी है।"

"..लीजिये सर जी ..आपकी चाय भी आ गई। और इधर कितने दिनों का प्रोग्राम है सर जी.."

"..अअअ ..हाँ यही कुछ एक दो दिन का !!
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..अच्छा पैसे कितने हुऐ।"

"..नहीं नहीं रहने दिजीए सर जी.. चाय के पैसे मैं दे दूंगा.. ऐसे भी जॉनी को कुछ तो अच्छा लगेगा।"

"..और सिगार के।"

"..कितने पैकेट दे दूं सर।"

"...अअ ..हाँ दो पैकेट दे दो ..कितने हुऐ।"

"..हाँ ..सर जी दो पैकेट के १९०० हुऐ.. वैसे आप १८०० दे दो।"

[..और वहाँ से निकलते ही पहाड़ों पे बसे घरों व तंग गलियों के बीच के सिढिनुमा शॉर्ट कट रास्ते]

"..पागल हो गया है ..माउथ अॉर्गन बजाता है ..पागल भी क्या माउथ अॉर्गन बजाता है ..फिर तो हिटलर भी पागल ही था जो सभों से माउथ अॉर्गन बजवाता था ..शेरपा पागल या वक्त पागल ..या फिर हिटलर ..फिर यहाँ का हिटलर कौन? ..रॉय साहब हिटलर या कोई नया हिटलर आ गया यहाँ !!
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..हाँ ..और कितने दुर है शेरपा का घर.."



"..बस इस गली के नीचे अगली गली में"

"..क्या इस गली के नीचे!!"

"..वो नीचे जाकर बाँयी ओर पुलिया के बगल वाले स्टोन हाउस में।"

"..क्या स्टोन हाउस ..वहाँ तो डैनियल कोबलर रहा करता था ..जूते बनाने वाला ..और फिर ये जगह कुछ जानी पहचानी सी लग रही है ..मैं पहले सीधे पुलिया के रास्ते आया करता था।
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..अच्छा ..ऐसा करो अब तुम जाओ ..और सुनों ये लो बख्शीस।"

"..सलाम साब जी ..वो रहा स्टोन हाऊस"

"..हाँ ..ठीक है अब मैं चला जाऊँगा।"

[..स्टोन हाऊस पहूँते ही ..ठीक उसके सामने से निकल ..सीधे पुलिया की ओर निकल गए ..जैसे बीते वक्त को फिर से अपनी मुट्ठी में भर लेने को बेचैन ..पुलिया के नीचे बहते झरनें की धार को जी भर देख लेने की प्यास ..वो अक्सर यहाँ आया करते थे ..और फिर बैग से अपने कैमरे को भी निकाल लाऐ ..फिर कुछ फुर्सत भरे क्लिक्स के बाद ..पुलिया के बगल वाले सीमेंटेड बेस पे बैठ गए ..वापस अपने कैमरे को बैग में रखा और फिर बैग में बने चेन वाले पॉकेटों में कुछ खोजनें से लगे ..तब तक एक सिगार जो सुलग चुकी थी ..होठों में दाबे अब तो उनकी बेशकीमती हार्मोनिका माउथ अॉर्गन भी जो मिल चुकी थी। जैसे बरसों के अलगाव को सुलगते सिगार के धुँओं ने कुछ कम करना चालु किया हो..
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..और फिर एक जोर की अंतिम कश के साथ ..मीठे हो चुके होंठो से एक मीठी क्रोंच हार्मोनिका धुन भी निकलती चली जा रही थी.. ये जगह थी ही इतनी सुंदर और ढलते शाम का कवर।]


[..अब तो सेन साहब की क्रोंच हार्मोनिका धुन के साथ एक और धुन संगत में थी।]

"..शेरपा तुम आ ही गए ना ..मैं जानता था दुनियाँ जिसे आज पागल समझती है.. वो कितनों को पागल बना बैठा होगा.. आखिर ये सब कैसे हुआ!!"

"..आप क्या गए कमांडर ..सेहत ही चली गई इधर की ..और फिर आप एक ना एक दिन आऐंगे ..ये तो सिर्फ मैं ही जानता था ..उम्र अपनी गिनतियों से आगे बढती है और सेहत अपनी रफ्तार से ..चलीऐ घर चलीऐ ..अब मैं यहीं रहता हूँ ..वही अपना ठिकाना ..याद है ये जगह!!"

[दोनों खुद में खोऐ सामने पुलिया के नीचे गुजरती धार को देख बातें किऐ जा रहे थे.. जैसे इतने दिनों बाद भी बताने को कुछ ज्यादा बचा ना था.. अपने अंदाजों में खोऐ.. वक्त की कारगुजारियों को रेशमी नक्काशियों में उतरते देखे जा रहे थे..
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..शेरपा ने सेन साहब का बैग थामा और सामने स्टोन हाऊस था ..स्वीट स्टोन हाऊस..]

"..डैनियल कोबलर का स्टोन हाउस ..क्या बात है ..ताज्जुब होता है कि तुम यहीं रहते हो ..वो तो तुम्हें पसंद नहीं करता था।"

"..हहा ..याद है कमांडर वो मुझे कितनी इंग्लिशिया गाली दिया करता था ..आज भी उसके ही बनाऐ जूते हैं साथ में ..जाते जाते हमारे इस गुनाहखाने की चाबियाँ मुझे ही देकर चला गया।"

"..चला गया ..उसका एक बेटा तो न्यूयॉर्क में रहता था ना"

"..हाँ ..वहीं चला गया बेटे के पास ..फिर काम वहाँ भी तो यही है ..अंग्रेजों के साथ उसका बाप यहाँ आया था ..अब वो बेटे के साथ अमेरिकन बन गया ..दो तीन सालों तक तो फोन चिट्ठियाँ भी आती रही ..अब तो वो भी गुम हैं।"

"..खैर तसल्ली तो इस बात की भी होगी उसे कि तुम यहाँ हो ..फिर यादों के आशियाने में तुम जैसा वफादार भी उसे कहाँ मिला होगा ..हर बार खाली बोतल के बाद तुम्हें ही दौड़ाता था विंडसर पैलेस ..और फिर वो तुम ही थे जो भागते जाते और .."

"..देखो है ना बिल्कुल वैसा का वैसा ही ..बहुत संभाले रखा हूँ उसकी अमानत ..हाँ बीते कुछ वर्षों में उसकी बनायी कुछ जूतियाँ बेच खाया हूँ ..नहीं तो पड़े पड़े यहीं मिट्टी बन जाती ये सब"

"..वाऊ ..उसकी मशीनें आज भी चमक रही हैं उसकी मूँछों की तरह"


"..हाँ कमांडर ..चमक तो जाऐंगी स्टेला नैंसी की आँखें भी ..ये जानकर की अब तुम दुबारा यहाँ इन वादियों में आ चूके हो"

"..हाँ हाँ ..पुलिया पे आते ही उसकी याद सबसे पहले आयी थी ..और फिर वो है कहाँ आजकल"

"..वहीं उसी स्कूल में ..अब तो वार्डन बन चूकी है ..पूरा दिन बच्चों के साथ स्कूल में ही बीतता है उसका ..हॉस्टल के बच्चों में रमी रहती है ..और फिर उसने शादी भी कहाँ की"

"..क्यों वो जो लड़का था उसका ब्वॉय फ्रेंड ..रोजाना चर्च जाते थे दोनों ..वो कहाँ गया? ..क्या नाम था उसका?"

"..जॉनी माईकल"

"..हाँ हाँ ..जॉनी माईकल ..वो कहाँ गया।"

"..भाग गया ..स्टेला यहाँ से जाना नहीं चाहती थी और उसे बड़े शहर पसंद थे ..सुनने में आया वो श्रीलंका चला गया ..वहीं किसी होटल में वायलिन बजाता है।"

"..ओह ..फिर तो ये काफी बुरा हुआ।"

"खैर छोड़ो.. सुबह कितने बजे निकलना है स्टेट हाउस.."

"..यही कोई पाँच छ: बजे ..एकदम सुबह सुबह ..बगान के नजारे देखे कितने दिन हो गए अब तो ..तुम चलोगे ना साथ में ..और फिर गाड़ी किसकी है।"

"..गाड़ी भी अपनी है और मालिक भी अपना है ..छोटा बेटा कॉसमॉस ही साथ जाऐगा तुम्हारे ..टी स्टेट की गाड़ी अभी वही चला रहा है।"

"..क्या बोल रहे हो ..मतलब राय साहब की गाड़ी"

"..हाँ ..हाँ वही ..जीप मॉडल राय साहब वाली ..पर अब उसकी देखरेख उनकी बेटी करती है।"

"..कौन अनुराधा ..वो क्या अभी यहीं है ..सब ठीक तो है ना।"

"..हाँ ठीक ही समझो ..चलो अब थोड़ा फ्रेश हो जाओ ..खाना मँगवाता हूँ ..फिर और कुछ चलेगा क्या!!"

"..नहीं नहीं रहने दो ..अब इस उम्र में वो सब कहाँ ..पेशेंट बन चुका हूँ ..बहुत हुआ तो कभी कभार दो चार कश ले लिया करता हूँ ..इतना काफी है दिलंदाजी के लिए ..बाय दी वे हो सके तो कल सुबह तुम भी साथ चल सको तो अच्छा रहेगा।"

"..बेटे के सामने क्या पोल खुलवाओगे मेरी !!"

"..नहीं नहीं तुम खामोश ही रहना ..बक बक सिर्फ मैं करुंगा।"

"..ओके ..डन"

"..लेकिन शेरपा माय डियर ..सुबह वहाँ चलने के पहले एक कड़क चाय जो तुम्हारे हाथ की होगी ..हमेशा की तरह"

"..योर वेलकम कमांडर ..कोशिश तो करूंगा फिर ये सब तो पत्तियों का ही कमाल है"


[..और अगले दिन रॉय टी स्टेट को जाता सुबह सुबह का एक सुहाना सफर ..सेन साहब, शेरपा और शेरपा का ड्राइवर बेटा कॉसमॉस]

"..शेरपा बस यही नहीं बदला है यहाँ ..इसी खूबसूरत नजारे को देखने की इंतजार में तो था इतने दिनों से।"

"..येस कमांडर"

[..स्टेट हाउस को जाते मंजर में ..सेन साहब अपने जूमिंग कैमरे से सुबह के शॉट्स लेते चले जा रहे थे ..और फिर टी स्टेट मेन गेट क्रॉस करते ही.. बाँयी ओर जाती एक शार्प टर्न]

"..मतलब हम गेस्ट हाऊस की ओर हैं ..है ना शेरपा।"

"..येस यू आर राईट कमांडर।"

"..फिर ये रोड कब बनी ..पहले तो पथरीली सी थी।"

"..ये सब कुछ अनुराधा बेबी का कमाल है ..और फिर आगे भी काफी कुछ दिखने को है कमांडर। रॉय साहब को अब कोई फिक्र नहीं ..सबकुछ बेबी रानी के हाथों ही है अब तो।"

"..रॉय साहब ठीक तो हैं ना!!"

"..इसलिये तो तुम्हें बुलाया है ..तबीयत तो अब वैसी नहीं रहती फिर भी ..तुम्हें याद किया है तो कुछ बात तो होगी ही और फिर उन्हें आज की तारीख में आपके जैसा हुनरमंद भी आखिर कहाँ मिलेगा।"

[..गाड़ी स्टेट हाऊस के मेन गेट को आ लगती है और मेन गेट से सटे कमरे से एक चौकीदार निकल आता है।]

"..जी मैडम ने कहा है ..आनेवाले साब का सामान गाड़ी से यहीं उतार देने ..और गाड़ी भी यहाँ से रिटर्न हो जाऐगी।"

[गाड़ी के पास आकर उस चौकीदार ने शेरपा से कहा।]

"..लो भाई कमांडर अब यहाँ से तुम्हारे फिक्रमंदी की बागडोर मेरे हाथों से निकल पड़ी। अनुराधा बेबी का आर्डर है। अब संभालों अपना मिशन.. एक नंबर नोट कर लो.. कुछ काम पड़े तो डायल कर लेना।"

"..हाँ डियर!!"

[सेन साहब ने अपने कोर्ट के भीतर वाले पॉकेट से एक नोट बुकलेट निकाली और शेरपा के दिऐ फोन नंबर को नोट कर अपने बैग व सामानों के साथ उस मेनगेट पे उतर गए।]

"..अच्छा शेरपा थैंक्स ..फिर मिलते हैं ..अपना ख्याल रखना। थैंक्स कॉसमॉस.. टेक केयर योर फादर।"



[..और गाड़ी स्टेट हाऊस के उस मेनगेट से वापस चली गई। गाड़ी के दूर जाते ही सेन साहब ने लंबी साँस ली, मानों एक पुरानी जिन्दगी में फिर से वापसी हो रही हो। पास रखी बोतल से पानी पीने के बाद एक सिगार को मुँह से लगा लिया.. और सिगार के निकलते धुँऐं में पास पहाड़ों में छाऐ बादलों को देखने लगे और एक छोर पे जाके रुक से गए.. की तभी ]

"..साहब जी गेस्ट हाऊस की ओर चलें" चौकीदार ने कहा।

"..हाँ हाँ चलो ..अच्छा सुनों वो ऊपर.. वो तो स्टोन हाऊस ही है ना" सेन साहब ने चौकीदार से पूछा।

"..जी साहब जी ..मगर आपको कैसे मालूम ..अब तो कोई जाता भी नहीं उधर ..वर्षों से बंद पड़ा है.." चौकीदार ने कहा।

"..ओह!!"

"लगता है साहब जी.. आप पहले इधर आऐ हों जैसे.."

"..हाँ हाँ कुछ ऐसा ही समझ लो। तुम कब से हो यहाँ ड्यूटी पर।"

"बस यही साहब जी दो साल हुए.. बगल गाँव का ही हूँ.. पहले बंग्लौर फिर कुछ साल ऊँटी में रहा एक होटल में.. अब वापस घर आ गया तो यहाँ नौकरी मिल गई।"



"अच्छा फिर तुम्हें तो पता होगा राय साहब के बारे में.. सबकुछ तो ठीक है ना.."

"..नहीं साहेब ..हम तो चौकीदार ठहरे तीन चार महीने पहले उनकी तबीयत खराब हुई थी। कलकत्ता से दो तीन डॉक्टर भी यहाँ आऐ थे.. फिर एक दो हफ्ते रहे और फिर वापस चले गए।  अब कुछ समझ में नहीं आता.. वो यहाँ हैं कि कलकत्ता गए। ऊपर जाना की सख्त मनाही है। फिर मैडम साहिबा भी तो यहीं हैं.. कोई कहता बड़े मालिक ऊपर वाले कोठी में हैं तो कोई कहता डॉक्टर सब के साथ कलकत्ता चले गए। वहाँ किसी बड़े से अस्पताल में इलाज चल रहा है.. बाँकि हम ठहरे गुलाम हुजूर तो सब की सुन लेते हैं.. और क्या कहें.."

[बातों बातों में सेन साहब गेस्ट हाऊस वाले अपने कमरे में पहुंच गए।]



"..अच्छा साहब अब मैं चलता हूँ यहाँ का रसोईया आता ही होगा। तब तक आप आराम कर लीजीऐ।"

[सेन साहब तो जैसे अनमने ढंग से पलंग पे रसोईऐ का इंतज़ार कर रहे थे.. कि फौरन कोई उन्हें अपने साथ राय साहब से मिलवाने को लेता जाय.. की तभी..]

"..आ गए साहब ..चाय लेता आऊँ ..और नाश्ते में जो आप कहें।"

"..तो तुम यहाँ के रसोईऐ हो ..पहले तो यहाँ कोई दुसरा था।"

"..जी मैं तो बस एक दो महीनें पहले ही आया हूँ।"

"..अच्छा सुनों राय साहब अभी कहाँ मिलेंगे। तुम्हें कुछ पता है।"

"..साहब जी आप चाय नाश्ता कर लें ..फिर आपको लिए चलुंगा ..नाश्ते में टोस्ट आमलेट लेता आऊँ।"

"..हाँ हाँ ठीक है ..लेकीन थोड़ा जल्दी करना।"

[रसोईये के जाते ही.. सेन साहब ने फिर से अपनी सिगार निकाल ली.. एक अजीब सी बेचैनी उनके चेहरे पे साफ देखी जा सकती थी।

..और फिर नाश्ता करने के बाद वे रसोईऐ के साथ निकल पड़े। चाय पीते वक्त टी-पॉट की भींगी पत्तियां अपने हुनरमंद को वर्षों बाद देख रही थी]



"..सुनो ये वो रास्ता तो नहीं जो राय साहब के बंगले को जाता है ..ये तो स्टोन हाऊस वाला पीछे का रास्ता है ..फिर तुम मुझे इस रास्ते पे क्यों लिए जा रहे हो?"

"..जी साहेब ये मैडम जी का अॉर्डर है ..उन्होंने आपको इसी रास्ते से लाने को कहा है।"

"..कौन अनुराधा !!"

"..जी हाँ साहब अनुराधा मैडम।"

"..लेकिन मुझे जहाँ तक मालूम होता है ..ये रास्ता स्टोन हाउस के पीछे फादर्स सिमेट्री को जाता है।"

"..आपको तो सबकुछ पता है साहब।"

"..बताया ना तुम्हें जब मैं था यहाँ ..उस वक्त तुम यहाँ नहीं थे।"

"..हाँ साहब ये वही अंग्रजों की कब्रिस्तान वाला रास्ता है ..मैं भी इधर पहली बार ही आ रहा हूँ ..मैडम ने ऐसा ही कहा था।"

"..तो क्या हम कब्रिस्तान जा रहे हैं!!"

"..अब साहब मुझे तो ऐसा ही कहा गया है।"

[सिमेट्री के नजदीक आकर..]

"..ये वहाँ साईकिल कौन बच्चा चला रहा है?"

"..ये तो रेयान साहब हैं ..मैडम जी का बेटा।"

"..ओह!!"

"..अच्छा साहब ..अब मैं चलता हूँ ..लगता है मैडम जी यहाँ आ गई हैं ..वो अंदर ही आपका इंतज़ार कर रही होंगी।"

[सिमेट्री के बगल से होकर चलते कदमों में सेन साहब जैसे ठहर से गए हों.. मानों उन्होंने कुछ देख सा लिया हो और मन की एक आशंका बिल्कुल ही दिख पड़ती की.. अनुराधा मैडम खामोश सी सामने खड़ी थी। वर्षों बाद ये सबकुछ देख.. अपने माथे के प्रिंस कैप को सर से उतार हाथों में रख लिया। अनुराधा अपनी खामोशी को छिपाऐ कुछ बोल पाती की.. सेन साहब बोल पड़े..]

"..ऐसा कब हुआ!!"

[..और बड़े ही गमगीन से सिमेट्री कॉर्नर में ठीक बीच वाले क्रॉस को रोते मन से देखने लगे ..उनके साथ अनुराधा मैडम भी नम आँखों को लिए एक टक उस बीच वाले क्रॉस को देखती ही जा रही थी।]

"..पता नहीं क्यों मुझे इस बात का अंदेशा पहले से ही था। जब मैं इस रास्ते होकर आ रहा था.. लेकिन इतना भी नहीं की रॉय साहब को अब कभी ना देख पाऊँ.." सेन साहब ने थोड़ा बिफरते हुये कहा।

"हाँ.. यही कुछ दो हफ्ते पहले ही तो.. बाबा की यही इच्छा थी।" नम आँखों व रुकी हुई आवाज के साथ अनुराधा मैडम ने कहा।

"..और फिर जैसे यहाँ ये सब किसी को मालूम भी नहीं! किसी ने कुछ बताया भी नहीं.. यहाँ तक की शेरपा ने भी कुछ नहीं बताया मुझे.." सेन साहब ने झल्लाते हुए कहा।

"हाँ मैनें ही मना किया था उन्हें.. और ये बात तो केवल मुझे.. शेरपा अंकल और उनके बेटे कॉसमॉस को ही पता है.." अनुराधा ने थोड़े शांत स्वर में कहा।

"..तभी दोनों आते वक्त बड़े खामोश से थे और पुरे रास्ते मैं ही बक बक किऐ जा रहा था। क्या सोचकर आया था.. इतने दिनों बाद ही सही रॉय साहब को देख तो पाऊंगा और फिर वो ईमेल जो मुझे मिला था..!" सेन साहब ने चौंक कर कहा..

"हाँ ये मैने ही भेजा था.. अंत अंत तक वो यही रट लगाते रहे.. सेन को बुलाओ.. सेन को बुलाओ.." अनुराधा ने जवाब दिया।

"समझ सकता हूँ.. रॉय लेकर जीऐ और मरे भी रॉय के साथ ही..। देखो.. क्या शानदार तरीके से जैसे गोद में जा बैठे हों दोनों के। हमेशा कहा करते थे.. सेन मुझे यहीं दफनाना.. दोनों के बीच। वो पास रखी तीसरी ताबुत मेरी होगी.. और तब से उस ताबुत को वहीं पास में छोड़े रखा था काई जमने.. देखते ही समझ गया आते ही.. ओह!!" सेन साहब एक लंबी साँस छोड़ते हुए।

"..तो ये सब बाबा ने आपको पहले से ही बता रखा था ..शेरपा अंकल को भी पता था ये सब।" अनुराधा ने कहा..

"..हाँ फिर मेरे बाद तो ये सब शेरपा से ही कहा होगा उन्होंने ..और उस वक्त होगा भी कौन साथ उनके। फिर आपका भी कलकत्ता आना जाना अक्सर लगा ही रहता था उन दिनों।" सेन साहब ने कहा..

"..हाँ फिर मैं करती भी क्या!! डैडी की जैसी मर्जी रही मैने वैसा ही करते रही.. अपनी खुशी को कहाँ जी पायी.. खैर छोड़िऐ अब ऊपर चलें.." जैसे बातों को टालते अनुराधा मैडम ने कहा।

"..हाँ हाँ चलता हूँ आप ऊपर चलें ..मैं कुछ देर यहाँ रुककर आता हूँ।" सेन साहब ने अनुराधा मैडम को कहा..

[..अपने धीमे कदमों से जहाँ अनुराधा ऊपर अपने मैंशन की ओर बेटे रेयान की नन्हीं अंगुलियों को पकड़े पत्थरों की सीढियों पे चढने लगी ..तो अपने नम आँखों से सेन साहब भी रॉय साहब की ओर बढने लगे। फिर कुछ देर वहाँ शांत रहने के बाद बगल जंगलों के फूल व पत्तों से एक बुके बनाई और रॉय साहब के सिमेट्री के ऊपर चढा आऐ.. और फिर कुछ देर वहीं एक शांत मन से बैठ गए।]

"मुझे इन दोनों की गोद में ही सुला देना.. सेन..!!" एकाएक रॉय साहब कि कही वो बातें जैसे कौंध सी गई हों सेन साहब के जेहन में..

[ हाँ, मिस्टर एंड मिसेज रॉय के नाम से जाने जाते थे दोनों। मिस्टर एडमंड रॉय और मिसेज जेसिका रॉय। अंग्रेज़ी शासन काल में ब्रिटेन के यॉर्कशायर से यहाँ आ बसे थे और फिर रॉय टी-स्टेट के बिजनेस को यहीं से आगे बढाया था। मेरे रॉय साहब का असली नाम तो देव दत्त ही था.. आगे चलकर ये "रॉय" टाईटल जो मिला तो सबलोग इन्हें "देवदत्त रॉय" के नाम से जानने लगे। मैं भी तो इन्हें दत्त साहब ही कहता था.. ये संबोधन मुझे कुछ अपना सा जा जो लगता। रॉय थोड़ा क्रिश्चियन सा लगता.. लेकिन ये "रॉय" सरनेम दत्त साहब को बड़ा ही जज्बाती सा लगता.. और पसंद भी आता। बीते जमाने एडमंड व जेसिका रॉय ने इन्हें गोद लिया था। दत्त साहब के पिता विभूति दत्त यहाँ इसी चाय बगान के एक नेकदिल स्टेट मैनेजर हुआ करते थे। एडमंड व जेसिका को अपनी कोई संतान न थी.. तो दोनों ने अपने स्टेट मैनेजर विभूति दत्त के बेटे देव साहब की परवरिश पूरी तरह से अपनी संतान समझ ही की थी। बड़े होकर दत्त साहब भी एक डेडीकेटेड बेटे समान ही सबका बखूबी साथ भी निभाया। मिस्टर एंड मिसेज रॉय इसी सिमेट्री में बस गए.. और फिर रॉय साहब भी जब कभी मुझे लेकर यहाँ आया करते तो बस यही कहते.. "सेन मुझे भी इन दोनों की गोद में ही सुला देना!!" ..और फिर मैं बिफर पड़ता। एक क्रिश्चियन की तरह गोद में लिए गए और फिर एक क्रिश्चियन की ही तरह हमेशा के लिए लिपट भी गए।
..
....
एक एक कर वो सारी बातें कौंधी जा रही थी.. और फिर एक सुस्त कदमों के साथ सेन साहब भी सिगार के धुंओं में ऊपर मेंशन के रास्ते बढते चले गए।]

"..सेन क्यों इस लैंप पोस्ट पे अपना दिमाग खराब करते हो ..देख लेना एक दिन ये भी तुम्हारी ही तरह जंग खाऐगी और फिर तुम भी कुछ नहीं कर पाओगे!!" रॉय साहब के वे शब्द फिर एक बार गूंज गया सेन साहब के कानों में..

[मेंशन के पीछे की ओर वाले पोर्टिको से लगा.. एक पुराना लैंप पोस्ट.. जिसे सेन साहब पूरी तरह दुरुस्त रखा करते थे.. आज सच में जंग खाऐ जा रहा था। फिर अंदर वाले हॉल को आते ही..]

"..बहुत देर लगा दी आपने ..बाबा से क्या बातें कर रहे थे?" अनुराधा ने कहा।

"..हुं ना ना ..कुछ भी तो नहीं ..ऐसे ही वो लैंप पोस्ट देख रहा था ..कोई केयर टेकर नहीं रहता यहाँ क्या!!" सेन साहब थोड़ा हैरान होकर पूछ पड़े।

"..कौन रहेगा यहाँ अब और फिर यहाँ पे उस अपनेपन की बात ही कहाँ रही। मैं तो माँ के साथ कलकत्ते ही रही और फिर बाबा के साथ एक थापा था। माँ के बाद.. मैं जब यहाँ आयी तो वो भी चला गया।" एक नितांत भाव लिए अनुराधा ने कहा..

"बोमाँ कौन से साल नहीं रहीं थी??" सेन साहब थोड़े अचरज में पूछ बैठे..

"..यहाँ से आपके जाने के करीब तीन-चार साल बाद ही ..उस वक्त मैं माँ के साथ कलकत्ते वाले घर पे थे। बाबा का वहाँ आना जाना लगा रहता था। माँ को यहाँ मन नहीं लगता और बाबा वहाँ जाना नहीं चाहते। फिर आपसे क्या छिपा है!!
..
...
...अच्छा कॉफी तो लेंगे ना आप!!" अनुराधा ने जैसे बात पलटते कहा..

"कॉफी!!" सेन साहब भी जैसे चौंक से गए..

"..क्यों आप तो अक्सर यहाँ कॉफी ही पीने आते थे ना.." अनुराधा ने थोड़ा जोर देते हुए कहा।

"..हाँ हाँ ..मगर तुम्हें आज भी याद है!!" सेन साहब ने थोड़े गर्मजोशी में जवाब दिया।

"..हाँ ..सबकुछ याद है .,फिर भुलुं भी तो कैसे!!" अनुराधा ने कहा..

"..और फिर रेयान!!" सेन साहब एक लंबी साँस लेकर बोले..

"रेयान को मैनें एडप्ट किया है!! अब तो आठ साल हो गए.. माँ तब मेरे साथ ही थी।
..
...वो याद है ना बाबा के फ्रेंड फादर जिम ..तब वो कलकत्ता मिशनरी में ही थे ..और फिर एक दिन गोद में रेयान को लिए घर पे आऐ थे। मुझे बहुत प्यारा लगा था.. और फिर मुझे जरुरत भी थी। माँ भी काफी खुश थी रेयान को देखकर ..बहुत खेला करती थी रेयान के साथ.. " अनुराधा ने जैसे चहकते हुए जवाब दिया।

"..तो क्या बाहर के लोग अब भी यही समझ रहे हैं जैसा मैं समझता यहाँ आया था कि रॉय साहब की आज भी तबीयत खराब है।" सेन साहब ने जैसे मौजूदा हालातों के बारे में बात करनी शुरू की..

"..हाँ ऐसा ही है ..बाबा भी यही चाहते थे और फिर जब तक आप ना आते तब तक तो ऐसा ही करना था। मैं फिर अकेले ये सब कैसे टैकल कर पाती। बाबा के अंतिम समय पे बस शेरपा अंकल और उनका बेटा ही था। कलकत्ता से एक डॉक्टर आऐ थे वो भी गए.. कुछ लोगों को ये पता है कि उनका इलाज कलकत्ते के हॉस्पिटल में चल रहा है। लेकिन फिर शेरपा अंकल अगले दिन सुबह सुबह चर्च वाले दो फादर को लेकर आऐ। सबकुछ फिर उनकी देखरेख में ही हो गया। बाबा जैसा कह कर गए वैसा ही।
..
...
आपको खूब याद करते!!" आँखों में आँसुओं को लिए अनुराधा ने जैसे एक झटके में सबकुछ कह दिया..

"..उन्होंने वो सबकुछ बखूबी किया अपने लाईफटाईम में ..अब तुम्हें भी आगे बढ चलना है ..मैं जानता हूँ तुम्हें ..तुम स्ट्रिक हो पर अब इतनी भी नहीं की एक सादगी में खुद को जीऐ जाओ। मेरा यहाँ कितना अधिकार है ये तो पता नहीं.. लेकिन ऐसा भी क्या कि अब..
..
...
.....माथे की तुम्हारी बिंदी कहाँ है? कब तक जिओगी इस हाल में ..कौन कब तक रहा है और रहेगा हर दम तुम्हारे ..कहीं ना कहीं कुछ अच्छा तो मुझे भी नहीं लगता ..लेकिन फिर भी रेयान के लिए ही सही!!
..
...
.....आगे भी अब सब ठीक हो जाऐगा ..जितनी जल्दी तुम बदल सको तो। आते वक्त ये सुनकर अच्छा लगा कि तुम यहाँ आ गयी हो और स्टेट को थाम लिया है। बस मजबूत बने रहो। मैं जबतक हूँ कुछ बताकर ही जाऊँगा।" सेन साहब ने जैसे अपनी अंदर की भड़ास निकालते अनुराधा को दिलासा दिलाते सबकुछ कह डाला..

"..जबतक हूँ का क्या मतलब। आप क्या फिर से लौट जाऐंगे!!" अनुराधा ने जैसे थोड़ा संभलते हुए कहा..

"..मैं गया ही कब था!!" इतना कहकर सेन साहब उठ खड़े हुए..

"..रुकिऐ तो खाना खाकर जाईऐ और फिर यहाँ से गेस्ट हाऊस तो जाना है आपको ..कितने दिन बाद थोड़े इकट्ठे खाना खाऐंगे ..डाईनिंग टेबल पे ..बाबा के बाद तो जैसे हिम्मत ही नहीं हुई।" अनुराधा ने सेन साहब थोड़ा रोकते हुए कहा..

"..हाँ यही कुछ तो रेस्पेक्ट है ..तुम्हें जितना देना इस जगह को तुमने बखूबी दिया अब तो थोड़ा खुद को भी वही रेस्पेक्ट दो। बाबा को मिस्टर एंड मिसेज रॉय दुबारा नहीं मिले और अब दत्त साहब भी हम सभों को फिर दुबारा नहीं मिलेंगे.. मगर अब रेयान को क्या देना है ये तो तुम्हें सोचना है।" सेन साहब ने थोड़ा समझाते हुए कहा..

"..हाँ मगर आप तो इतने सख्त ना थे।" अनुराधा ने कुछ कुरेदते हुए कहा..

[डाईनिंग टेबल पे..]

"..सख्त बनना पड़ता है ..हालातों से जूझने ..सभों को सख्त बनना पड़ता ही है। चाय बगानों की इन जड़ों को देखो.. सख्त ही तो हैं धंसे पड़े हैं पहाड़ों की इन कड़ी काली मिट्टियों में.. हमें तो बस पत्तियों की हरेपन की तरह ही बने रहना है।" सेन साहब ने एक फिलौस्फर की तरह कहा..


"..और रेयान चाय बगान का फूल ..फिर तो ऐसा ही है ना सबकुछ।" अनुराधा ने एक पॉजिटिव सा जवाब दिया..

"..हाँ बिल्कुल ऐसा ही ..देखो दत्त साहब यहीं तो हैं ..चारों ओर टकटकी लगाऐ देखे जा रहे हैं ..बस इसी तरह हँसा करो।
..
...ठीक है चलता हूँ ..हो सके तो कल अगली सुबह हम टी-स्टेट को जाऐंगे।" सेन साहब ने भी जैसे मुस्कुराते हुए कहा..

"ठीक है लेकिन शाम की एक कॉफी फिर से यहीं पे होगी.." अनुराधा ने टोकते हुए कहा।

"ओके!! कॉफी क्यों चाय क्यों नहीं तुम्हारे हाथ की.. पता तो चले इन पत्तियों का टेस्ट अब कितना बदला है.." और फिर सर हिलाकर सेन साहब गेस्ट हाऊस की ओर चले गए।

[सेन साहब मेंशन से निकलते वक्त कुछ इधर उधर देखते रॉय साहब को याद किऐ जा रहे थे.. जैसे रॉय साहब की कही वो आखिरी बात "..वापसी पे भी मेरी ही मोहर लगेगी ..रिजाईन तुम्हारा है मेरा नहीं!!" आज भी सेन साहब की कानों में गूंज रहा था.. और फिर गेस्ट हाऊस पहुंचते ही..]


..continued 

6 comments:

  1. Its nice the opening story is of a generation which will now meet the thoughts of the another generation where every thing has changed..
    The silent.cool.composed.generation is rejected on the whole by so called fast.pacy.emotionless generation.
    This computer generation forgets that even computer is also a man made device.

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