मैं खुद को अगर घोषित करूँ तो हमेशा मैं पूर्णियाँ कटिहार व भागलपुर के मध्य की इन अमूल्य कथानक धरोहरों के सम्मुख ही जीना पसंद करूंगा। सर्वप्रथम विभूति भूषण बंदोपाध्याय की लिखी "पाथेर पांचाली" जिसे सुविख्यात निर्देशक सत्यजीत रे ने ब्लैक एंड व्हाइट कैन्वास पे बखूबी उकेरा। वस्तुतः विभूति भूषण बंदोपाध्याय को प्रेरण शक्ति जीवन के इन्हीं क्षेत्रों में आकर मिलती थी। फिर मेरे पूर्णियाँ के जन्में नामचीन बांग्ला साहित्यकार सतिनाथ भादुड़ी की लिखी स्वतंत्र भारत की पहली एंटी करप्शन थीम बेस्ड नॉवेल "जागरी" पे ही राज कपूर की "जागते रहो" फिल्म बनी थी। खास बात ये रही कि सतिनाथ भादुड़ी ने इस फिल्म से किसी भी तरह का क्रेडिट नहीं लिया.. वे मानते थे कि लेखन और फिल्म मेकिंग ये भाव अभिव्यक्ति की दो भिन्न विधाऐ हैं। तीसरी प्रमुख फिल्म बिमल रॉय की बंदिनी, जिसकी शुटिंग कटिहार जिले की मनिहारी गंगा घाट तो जेल दृश्यों की शुटिंग भागलपुर सेन्ट्रल जेल में हुई थी। चौथी साहित्य सम्राट शिरोमणि शरतचंद्र की देवदास, जो पारो व चंद्रमुखी पात्रों से सुसज्जित उनकी खुद की भागलपुर की ही कहानी है.. और यहाँ मिले कड़वेपन के बाद ही वो भागलपुर से कलकत्ता और फिर कलकत्ते से रंगून बर्मा चले गए, और फिर वहीं से अपने लेखों व कहानियों को प्रकाशित करवाया। अंत में पाँचवी; मेरे पूर्णियाँ अररिया हिंगना अंचल के रिपोर्टाज किंग फनिश्वर नाथ रेणु की लिखित कहानी संकन "मारे गए गुलफाम" पे बनी राजकपूर व वहीदा रहमान की फिल्म "तीसरी कसम"।
#PatherPanchali #JaagteRaho #Bandini #Devdas #TeesriKasam
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