Friday, 14 September 2018

..बादलों से निकलते खिलौने

..बादलों से निकलते खिलौने। 

स्कूल से आकर छत पे गया तो नजर उन सफेद बादलों पे चली गयी.. मैं दूर से ही अपने दादा-दादी को देखता जा रहा था.. वो दूर उन बर्फिले सफेद पहाङो के रास्ते जा रहे थे। बद्रीनाथ.. केदारनाथ के रास्ते तो ऐसे ही होते होंगे ना.. ऐसा ही तो दादाजी ने बताया था..। मैं बस टकटकी लगाए उन बादलों के ओट में छूपे रहस्यों को टटोलता रहता..। करीब महिने बाद जब दादा-दादी तीर्थ से आए.. तो उन बादलों से कुछ खिलौने निकाल लाए.. वो पानी में चलने वाला वो स्टीमर.. और वो बाइस्कोप.. सभी जगहों के फोटोज् हैं इनमें..। दिल्ली का ईण्डिया गेट.. लाल-किला.. कुतूबमिनार.. चाँदनी चौक.. तो आगरे का ताजमहल.. वाह मजा ही आ गया..। बादलों में इतना कुछ छिपा रहता है.. क्या? इन्हीं सवालों को लिए मैं फिर बादलों के सामने था.. अब तो वे खुद खिलौने बने दिख रहे थे..। आई लव यु बचपन..   www.vipraprayag.blogspot.in

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