जेठ की दुपहरी से लेकर पूस की कोहरे से जमीं रातें.. सावन की बरसात या हेमंत का प्रेम पुष्प.. हिन्दी साहित्य के पिकासो के शब्द चित्र कहीं रुके नहीं। ग्रामीण संस्करणों से निकलती जीवंत उत्कटताओं की व्यथा भी जैसे सुन्दर हो निखर से गए। खटिये को चारपाई न बनने दिया.. मचानों के गर्भ विन्यास को बीच खेतों में पक्के मकानों से कोसों दुर रखा। पंच परमेश्वरों की पंचायत मन की आस्था को लोकहित में बनाऐ रखी तो निर्मला खुशरंग हो निकली। महान कथाशिल्प प्रेमचंद को उनके जन्मदिवस पे शत शत नमन..। #Premchand
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