Thursday, 13 September 2018

पूर्णियाँ भट्टा बाजार का मछली बाजार और मामा जी प्यार..


 पूर्णियाँ भट्टा बाजार का मछली बाजार और मामा जी प्यार..

   आज बङे दिनों बाद भट्टा बाजार की ओर निकल पङा..। रविवार देख तो यहाँ के मछली बाजार का जोश देखते ही बनता है.. तरह-तरह की मछलियाँ.. रोहू, कतला, सिंही, मांगुर के साथ सौङा.. कबय भी.. और भी अनगिनत नामों की मछलियाँ। मछली लेकर बाजार से ज्यों निकला.. साहित्य-कोष का तेज समा सा गया। ..अपने मनोभावों को टटोल अपने साहित्य व कलाप्रेमी मामाजी से मिलने उनके आवास पे जा पहुंचा। इस क्रम में ठीक उनके आवास से पहले जो मार्ग आया.. सतीनाथ भादुङी लेन.. उसकी लेख-पट्टिका को देख मन थोङा रुक सा गया..। मानों एक विस्तृत साहित्य-संदर्भ.. अपनी चिरंत दशाओं में थोङा भटका हुआ। सतीनाथ भादुङी की पहचान बांग्ला साहित्य में किसी की मोहताज तो नहीं.. लेकिन इन उत्कृष्ट जङ-स्तंभों को आज भी सहेजने की जरुरत है। 

...ये मुखर व स्पष्ट है कि फनिश्वरनाथ रेणु के भी आदर्श प्रणेता सतीनाथ भादुङी ही थे। भारतीय आजादी के समय इनकी सुप्रसिद्ध कृतियों "जागरी" व "ढोराय चरित-मानस" ने ही तत्कालीन मनोदशाओं में व्याप्त भ्रष्ट-प्रवृत्तियों के खिलाफ व पिछङे-शोषितों के संरक्षण का सशक्त चित्रण साहित्य के माध्यम से किया था। "जागरी" का अन्य भाषाओं में रुपांतरण कर जहाँ युनेस्को जैसी सर्वोच्च संस्था ने इसका मान बढाया.. वहीं "ढोराय चरित-मानस" आज भी कलकत्ता यूनिवर्सिटी की कोर्स में आज भी पढाई जाती है।
...दिनों बाद मामा जी के साथ के पल भी बङे मर्मस्पर्शी रहे। पिछले दिनों कैंसर से जूझते.. उनकी बनाई पेंसिल स्केचों ने मन मोह लिया.. और तो औऱ उन्होंने भी मेरी साहित्यिक मुखरता का दिल से अभिज्ञान लिया। ..फिर मामी जी के हाथों से बनी गरमा-गरम फिश फ्राई को खाने के बाद ही घर को लौटा।
 #SatinathBhaduri  #Jagori 

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