स्वतंत्र मन के प्राचीर से..!!!
इन राजनीतिक घोषणाओं से मन अब ऊब चूका था। ठगे जाने के विष से आखीर निजात जो पाना था.. जवान, किसान व विज्ञान का द्वंद अपने ही ग्रह में मानो जय एलियंस की हुंकार भर रहा था। ..शायद इस बार न सही अगले बार तो जरुर कुछ न कुछ होके रहेगा। गाँव बदलेगा.. शहर बदलेगा.. देश बदलेगा.. सबकुछ बदल जाएगा.. मंगल बदल जाएगा.. शनि बदल जाएगा.. मगर भालू नाच व बंदर नाच वही रहेगा। कॉलेज वाले रेलवे प्लेटफॉर्म पे उतरते ही.. एक बूढे बाबा एक हाथ में तिरंगा तो दुसरे हाथ रेडियो लिए हँसे जा रहे थे। मानो उन्होंने ने एक बार फिर नए जमाने का बंदर नाच देख रखा हो..। कहते..रहने.. पढने और लिखने वाले तो निकल लिए.. अब बिजली देकर क्या करोगे.. गाँव बैठ बस टीवी देखे के काम आवेगी.. जो कछु बचा औऱ चली जाएगी। राजा-रजवाङो का राज भला था.. नजदीक तो थे सारे.. अब तो बस दिखते ये दूधिया टिमटिमाते तारे.. आज दिखे कल टूट जाऐंगे.. फिर कहीं किसी नुक्कड़ में नजर आऐंगे.. गले लटकी तमगे-पदवियों को बेच खाऐंगे.. थोङे नाचेंगे.. कुछ नचाऐंगे। फिर कुछ नए मदारी.. नए जमाने के जो बन जाऐंगे..। ये गाँव के उस वृद्ध का एक स्वतंत्र मन था..।
www.vipraprayag.blogspot.in
इन राजनीतिक घोषणाओं से मन अब ऊब चूका था। ठगे जाने के विष से आखीर निजात जो पाना था.. जवान, किसान व विज्ञान का द्वंद अपने ही ग्रह में मानो जय एलियंस की हुंकार भर रहा था। ..शायद इस बार न सही अगले बार तो जरुर कुछ न कुछ होके रहेगा। गाँव बदलेगा.. शहर बदलेगा.. देश बदलेगा.. सबकुछ बदल जाएगा.. मंगल बदल जाएगा.. शनि बदल जाएगा.. मगर भालू नाच व बंदर नाच वही रहेगा। कॉलेज वाले रेलवे प्लेटफॉर्म पे उतरते ही.. एक बूढे बाबा एक हाथ में तिरंगा तो दुसरे हाथ रेडियो लिए हँसे जा रहे थे। मानो उन्होंने ने एक बार फिर नए जमाने का बंदर नाच देख रखा हो..। कहते..रहने.. पढने और लिखने वाले तो निकल लिए.. अब बिजली देकर क्या करोगे.. गाँव बैठ बस टीवी देखे के काम आवेगी.. जो कछु बचा औऱ चली जाएगी। राजा-रजवाङो का राज भला था.. नजदीक तो थे सारे.. अब तो बस दिखते ये दूधिया टिमटिमाते तारे.. आज दिखे कल टूट जाऐंगे.. फिर कहीं किसी नुक्कड़ में नजर आऐंगे.. गले लटकी तमगे-पदवियों को बेच खाऐंगे.. थोङे नाचेंगे.. कुछ नचाऐंगे। फिर कुछ नए मदारी.. नए जमाने के जो बन जाऐंगे..। ये गाँव के उस वृद्ध का एक स्वतंत्र मन था..।
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