Friday, 14 September 2018

..क्यों मिल गए ना शरतचन्द्र...!!!

..क्यों मिल गए ना शरतचन्द्र...!!!

 बक्सर बिहार के डुमरॉव रेलवे स्टेशन पे सुबह-सुबह ट्रेन से उतरते वक्त ऐसे ही भावों से मैं घिरने लगा था। हुआ यूँ कि बक्सर के अपने इंजीनियरिंग कॉलेज को जाने के क्रम में दानापुर रेलवे स्टेशन से इलाहाबाद को जाती हावड़ा से आने वाली विभूति एक्सप्रेस को पकङ़ा। एसी बॉगी में बैठते ही कलकत्ता से आ रही एक सज्जन महिला से कुछ बांग्ला भाषा के बोल सुनाई देने लगे। वो अपने छोटे पुत्र कलकत्ता हाई-कोर्ट मे कार्यरत कुशल चटर्जी के साथ बनारस को जा रहीं थी। बातों-बातों में मेरे मूख से निकले भागलपुर शब्द ने तो जैसे हमें हमारे पूराने रिश्तों को और थोड़ा करीब ला खङा किया। सहसा उनके मुख से निकले वे शब्द " आमरा शरतचोंन्दरेर फैमिली तेके..." ही मेरे लिए सबकुछ थे मानो। फिर उस एक-सवा घंटे के सफर में भागलपुर से जुङी ढेर सारी बातें हुई..। मैं अपने सामने शरतचंद्र की तीसरी और चौथी पीढी को देख पा रहा था। ...फेसबुक की दुनियाँ भी मेरी इस साहित्यीक भावों को मरहम लगाती कुछ यूँ नजर आयी की इसी फेसबुक के माध्यम से पूर्णियॉ के जागोरी फेम्ड प्रथम रविन्द्र पुरस्कार अवार्डी साहित्यकार सतिनाथ भादुङी की चौथी पीढी सोहम भादुङी और सप्तर्शी भादुङी भी मिल गए।

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 www.vipraprayag.blogspot.in

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