Friday, 14 September 2018

ये कलम फिर से चलने चाहिए..

....कैसे हैं आप लोग !!! हिन्दी पढ ठहर गए ना..। ऐसे भी दिनभर के न्यूज अपडेट.. और शेयरींग्स के बीच हिन्दी से लिखे शब्दों को देख लेना.. ठंडी फुहार से कुछ कम तो नहीं..। हाँ.. वर्षो बाद एन्ड्रोएड मोबाईल में हिन्दी एडिटर का साथ जो मिला.. जैसे कब की खोयी साँस मिल सी गयी। वैसे भी अब.. लिखता कौन है.. सारी बातें और खबरें तो मोबाईल के जरीए ही हो जाया करतें हैं..। लिखने के भावों की आंतरिकता ही मृतप्राय सी हो गयी है.. मानो हम खुद को ही समय देने को तैयार नहीं..। हाल के दिनों में अपने घर के आलमारी में रखे.. कुछ ऐसे भावों के दस्तावेज मिले..। हिन्दी में लिखे कुछ ऐसे पत्र जिसे मेरे दादाजी ने बङे जतन से संभाले रखा था..। इन्हें पढते ही आप बीते दिनों के.. उन भावों में दुबारा जी उठते हैं.. जिन्हें हमारे परिजनों ने बङी ही तल्लीनता के साथ सींचा.. और आज हम उन्हीं उन्मुक्त भावों की वृष्टि-छाया में खुद को सहेजे व भिंगो रहे हैँ..। मन में बस एक ही इच्छा जगी कि ये कलम फिर से चलने चाहिए.. हिंदी के शब्द फिर से दिखने चाहिए..।
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