१० पैसे की भक्कागीरी...।
..आज फिर एक नया साल आ गया ..लेकिन बचपन के दिनों का वो #स्वाद नहीं मिला। ..चौंक लगे मुस्लिम की वो भक्के वाली #दुकान नहीं मिली ..जलती अंगिठियों में पानी के भाप पे पकती ..बचपन की वो #मुकाम नहीं मिली। ..जब हम नए साल एक जनवरी के दिन जेबों में दस पैसियों को लेकर पास लगे चौंक की ओर दौड़ जाया करते ..सुलगते चूल्हों पर पिसे चावल के गरमागरम भक्के को पकता देखते। उस कङाके की ठंड व घने कोहरों के बीच.. जमीन पे बैठ कभी बुढा मुस्लिम तो कभी उसकी बीबी.. बङे जतन से भक्के को पकाते..। आस-पास पङोस के सारे बच्चे बस खिंचे चले आते.. पास बैठ घंटो ये नजारा देखते रहते..। कभी ठंड से ठिठुरते हाथों को पॉकिट से निकाल.. उन अंगीठियों से हाथ भी सेंकते.. तो कभी पीठ पे गर्म सेंक लगाते.. सब एक साथ..। ना धर्म की दिवार.. न ऊँच-नीच.. मजहब तो बस गुङ लगे भक्के की स्वाद का होता ..मीठा स्वाद ..नए साल के आरंभ का एक मीठा #संवाद..।
www.vipraprayag.blogspot.in
..आज फिर एक नया साल आ गया ..लेकिन बचपन के दिनों का वो #स्वाद नहीं मिला। ..चौंक लगे मुस्लिम की वो भक्के वाली #दुकान नहीं मिली ..जलती अंगिठियों में पानी के भाप पे पकती ..बचपन की वो #मुकाम नहीं मिली। ..जब हम नए साल एक जनवरी के दिन जेबों में दस पैसियों को लेकर पास लगे चौंक की ओर दौड़ जाया करते ..सुलगते चूल्हों पर पिसे चावल के गरमागरम भक्के को पकता देखते। उस कङाके की ठंड व घने कोहरों के बीच.. जमीन पे बैठ कभी बुढा मुस्लिम तो कभी उसकी बीबी.. बङे जतन से भक्के को पकाते..। आस-पास पङोस के सारे बच्चे बस खिंचे चले आते.. पास बैठ घंटो ये नजारा देखते रहते..। कभी ठंड से ठिठुरते हाथों को पॉकिट से निकाल.. उन अंगीठियों से हाथ भी सेंकते.. तो कभी पीठ पे गर्म सेंक लगाते.. सब एक साथ..। ना धर्म की दिवार.. न ऊँच-नीच.. मजहब तो बस गुङ लगे भक्के की स्वाद का होता ..मीठा स्वाद ..नए साल के आरंभ का एक मीठा #संवाद..।
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Bhakka is 💞
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